Monday, December 7, 2020

अप्रकाशित सत्य 14 , भारत में अल्पसंख्यकों की परिभाषा क्या है ? अल्पसंख्यक आयोग तथा अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय क्या है तथा संविधान का कौन सा अनुच्छेद इनके लिए प्रावधान करता है ? अल्पसंख्यक की परिभाषा क्यों तय की जानी चाहिए ? विश्लेषण |

       अल्पसंख्यकों पर बात करने से पहले हमें यह जान लेना चाहिए की अल्पसंख्यक कहा किसे जाता है | अल्पसंख्यक उन धर्मों के लोगों को कहा जाता है जो किसी देश में बहुसंख्यक नही होते या उनकी जनसंख्या कम होती है जैसे बांग्लादेश तथा पाकिस्तान में हिन्दु , बौद्ध , सिख आदि धर्मों के लोग अल्पसंख्यक हैं क्योंकि इन देशों का एक धर्म है | भारत एक पंथनिरपेक्ष राष्ट्र है जिसका अर्थ यह है की भारत देश का कोई पंथ(धर्म) नही है तो इस आधार पर देश में ना तो कोई अल्पसंख्यक हो सकता है और ना ही कोई बहुसंख्यक सब बराबर के नागरीक है | मगर फिर भी आज देश में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग है अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय है तथा देश के हर राज्य में अल्पसंख्यक आयोग हैं |

     26 नवंबर 1949 को संविधान पर हस्ताक्षर होने तथा 26 जनवरी 1950 को संविधान लागु होने से लेकर आज तक हमारे संविधान में सौ से ज्यादा बार संविधान संसोधन किए गए है | हमारे संविधान में 395 अनुच्छेदों मे से केवल तीन ही अनुच्छेद हैं जिसमे अल्पसंख्यक शब्द का जिक्र मिलता है | पहला अनुच्छेद 29 जिसमें 'अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण' दुसरा अनुच्छेद 30 जिसमें 'शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अघिकार' तथा 350क जिसमें 'प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ' एवं 350ख जिसमें 'भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए विशेष अधिकारी' का उल्लेख है |

भारत में अल्पसंख्यकों की परिभाषा क्या है ?

     भारत के संविधान में अल्पसंख्यक की कोई परिभाषा नही दी गई है यही नही अभी तक किसी अधिनियम में भी अल्पसंख्यक शब्द को परिभाषित नही किया गया है | परन्तु 1992 के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम से अक्टूबर 1993 में ततकालीन केन्द्र सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करके पांच समुदायों सिख , पारसी , ईसाई , मुस्लिम तथा बौद्ध को अल्पसंख्यक का दर्जा दे दिया तथा 2014 में सिख समुदाय को भी यह दर्जा दे दिया गया | 

अल्पसंख्यक आयोग तथा अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय क्या है तथा संविधान का कौन सा अनुच्छेद इनके लिए प्रावधान करता है ?

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग :-

     केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 की सहायता से 1993 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया तथा उसके पश्चात सभी राज्यों ने भी राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया | यदि बात की जाए भारत के संविधान कि तो भारत के संविधान में इसके गठन के लिए कोई अनुच्छेद नही हैं जबकि संघ एवं राज्य के लोक सेवा आयोग के गठन के लिए अनुच्छेद वर्णित हैं |

अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय :-

     अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय का गठन 29 जनवरी 2006 को सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता मंत्रालय में से किया गया | वर्तमान में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री श्री मुख्तार अब्बास नख्वी जी हैं |

अल्पसंख्यक की परिभाषा क्यों तय की जानी चाहिए ? 

     जनसंख्या एवं पंथ(धर्म) के आधार पर केन्द्र सरकार ने यह मान लिया है कि बौद्ध , जैन , सिख , पारसी , ईसाई तथा मुस्लिम सम्पुर्ण भारत देश में अल्पसंख्यक हैं जबकि मुस्लिम समुदाय पुरे भारत की जनसंख्या का 19-20 प्रतिशत है | यही नही 6 राज्य तथा 2 केंद्र शासित प्रदेश ऐसे है जिनमें कथित बहुसंख्यक माना जाने वाला हिन्दु समुदाय अल्पसंख्यक है जैसे लक्षदीप में 96.20 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या है और केवल 3 प्रतिशत हिन्दु जनसंख्या है और जम्मु कश्मीर में 70 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या है और केवल 30 प्रतिशत हिन्दु और अन्य जनसंख्या है मगर फिर भी यहां हिन्दुओ को ही बहुसंख्यक माना जाता है और मुस्लिमों को अल्पसंख्यक | 

     इसी तरह पंजाब में सिख समुदाय बहुसंख्यक हैं और हिन्दु समुदाय अल्पसंख्यक मगर यहां भी हिन्दु समुदाय ही बहुसंख्यक माना जाता है | वही मिजोरम , मेघालय तथा नागालैण्ड मे ईसाई समुदाय बहुसंख्यक और हिन्दु समुदाय अल्पसंख्यक है मगर वही हाल इन राज्यों में भी है यहां भी हिन्दु समुदाय ही बहुसंख्यक माना जाता है | यही हाल देश में भाषाई अल्पसंख्यकों का भी भी है | इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि देश में अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा तय की जानी चाहिए |


Thursday, November 26, 2020

अप्रकाशित सत्य 13 , अनुच्छेद 44 क्या है ? समान सिविल संहिता क्या है ? भारत में समान सिविल संहिता लागु न हो पाने के क्या कारण है ? समान सिविल संहिता की विशेषताएं |

सिविल संहिता क्या होती है ?

     अनुच्छेद 44 को पुर्ण रुप सं समझने के पहले हमे यह समझना चाहिए की सिविल संहिता क्या होती है ? | सिविल संहिता कानुनों का एक ऐसा संग्रह है जिसमें पारिवारिक विवादों से जुडे़ मामले के निपटारे के लिए प्रबन्ध वर्णित किए जाते हैं | सिविल संहिता के तहत निम्न विवादों की स्थिति में न्यायालय में जाकर न्याय मांगा जा सकता है जैसे विवाह , तलाक , गुजाराभत्ता , बच्चा गोद लेना , अत्तराधिकार , भुमि विवाद आदि |

अनुच्छेद 44 क्या है ?

     अनुच्छेद 44 भारतीय संविधान के भाग 4 राज्य की नीति के निर्देशक तत्व में सम्मिलित 17 अनुच्छेदो में से एक है | यह अनुच्छेद राज्यों को एक निर्देश है | अनुच्छेद 44 के अनुसार 'राज्य , भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरीकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा' |

समान सिविल संहिता (UCC) क्या है ?

     समान नागरिक संहिता या समान सिविल संहिता कानुनों का एक ऐसा समुह है जो पुरे देश में रहने वाले नागरिको पर एक समान रुप से लागु होता है बिना किसी लिंग , मुलवंश , जाति , पंथ , सम्प्रदाय , भाषा , जन्म स्थान का विभेद किए हुए | समान नागरिक संहिता को एक आदर्श कानुन कहा जा सकता है जो पुरे देश के नागरिको को एक समान होने का एहसास दिलाता है |

भारत में समान सिविल संहिता लागु न हो पाने के क्या कारण है ? 

     भारत में सिविल मामलों के लिए विभिन्न सम्प्रदायों के लिए विभिन्न कानुन है जैसे हिन्दुओ के लिए जिसमे सिख , जैन तथा बौद्ध भी आते हैं हिन्दु कोड बिल है जिसमें चार कानुन हिन्दु मैरिज एक्ट 1655 , हिन्दु सक्सेशन एक्ट 1956 , हिन्दु मायनोरिटी एण्ड गार्जियनशिप एक्ट 1956 तथा हिन्दु एडप्सन एण्ड मेंटेनेंश एक्ट 1956 सामिल है इसके अलावा ईसाईयों के लिए क्रिश्चन मैरिज एक्ट 1872 , इंडियन डिबोस एक्ट 1869 , इंडियन सक्सेसन एक्ट 1925 तथा गार्जियन एवं वार्ड्स एक्ट 1890 है इसके अलावा पारसियों एवं यहुदियोॉं के लिए भी इसी तरह के अलग अलग कानुन हैं | साथ ही 1954 में लागु हुआ स्पेसल मैरिज एक्ट भी है जो अन्तर जातिय तथा अन्तर पंथिय विवाह को स्वीकार करता है एवं इनसे जुडे़ अन्य मामलों के लिए भी प्रावधान करता है |

     यहां गौर करने वाली बात यह है कि बाकी पंथों में तो फिर भी विवाह , तलाक , गुजाराभत्ते , गोद लेने तथा उत्तराधिकार को लेकर कानुन हैं मगर मुस्लिम पंथ में इनमें से किसी भी विषय पर कोई कानुन नही था जब तक की तिन तलाक को निषेध करने वाला कानुन केन्द्र सरकार ने पिछले वर्ष नही बनाया था | तो आप पुछेंगे कि अभी तक मुस्लिम परिवारों के इन विवादों का निपटारा कैसे होता आ रहा है तो इसका जबाब है शरीया कानुनों से जो मुस्लिमों का मजहबी कानुन है और यही वजह है कि अभी तक मुस्लिमों के लिए विवाह  , गोद लेने , गुजारा भत्ता , उत्तराधिकार को लेकर केन्द्रीय या राज्य के स्तर पर भी कोई कानुन नही हैं |

समान सिविल संहिता की विशेषताएं ?

समान सिविल संहिता की निम्न विशेषताए हो सकती हैं :-

1. यह महिलाओ को समान अधिकार पाने में मदद करेगा जैसे हम बात करें तो पुरे देश में यदि कोई हिन्दु , सिख , जैन , बौद्ध दुसरी शादी करता है तो उसे हिन्दु मैरिज एक्ट केे तहत सजा दिलायी जा सकती है कोई पारसी करता है तो उसे पारसी मैरिज एक्ट के तहत कोई ईसाई करता है तो उसे  ईसाई मैरिज एक्ट के तहत सजा दिलाई जा सकती है मगर यदि कोई मुस्लिम पुरुष दुसरा निकाह करता है तो उसकी पहली बेगम उसे चाह कर भी सजा नही दिला सकती क्योंकि उसके लिए कोई कानुन ही नही है |

2, समान सिविल संहिता सभी महिला एवं पुरुषों के हितों कि रक्षा करेगा जैसे यदि कोई हिन्दु महिला अपनी पैत्रीक सम्पत्ति में अधिकार पाना चाहे तो वह हिन्दु सक्सेसन एक्ट के तहत पा कसती है और अन्य पंथों कि महिलाए जैसे पारसी , ईसाई , यहुदी आदी मगर यहां भी एक मुस्लिम महिला को वह अधिकार नही मिलेगा क्योंकि इसके लिए भी कोई केन्द्रीय स्तर पर या राज्यों के स्तर पर कानुन नही है | 

3. समान सिविल संहिता पुख्ता तौर पर यह निश्चित करेगी की किसी भी महिला या पुरुष से उसके पंथ , लिंग , मुलवंश , जन्मस्थान , सम्प्रदाय तथा भाषा के आधार पर भेदभाव नही किया जाएगा जैसे की आज मुस्लिम महिलाओ के साथ हो रहा है कि दुसरे धर्मों की महिलाए तो दुसरी शादी करने पर अपने पतियों को सजा दिला सकती हैं पर मुस्लिम महिलाए नही दिला सकती चाहे उनका पति चार शादियां ही क्यों ना कर ले क्योंकि इसके लिए कोई कानुन ही नही है | 

     समान सिविल संहिता के पुरे देश में लागु न हो पाने की कई वजहो में से सबसे बडी़ वजह यह है कि हमारा देश भारत विभिन्नताओं का धनी देश है जहां हजारों बोलिया , रिति रिवाज , मान्यताए , उपासना पद्धतिया , सम्प्रदाए आदि है तो सब के लिए एक कानुन का समुह बनाना मुस्किल है तथा इससे भी ज्यादा मुस्किल इन कानुन को सभी का स्वीकार कर लेना है | समान सिविल संहिता को मध्यस्थ के रुप मे भी लाया जा सकता है | खैर अभी तो हम बस आशा ही कर सकते बै की हमारी सरकार जल्द से जल्द समान सिविल संहिता लेकर आए |


 

Sunday, November 22, 2020

अप्रकाशित सत्य 12 , संविधान का अनुच्छेद 30 क्या है ? , भारत में मदरसे और मिशनरी विद्यालय किस अनुच्छेद के तहत खुलते है ? , अनुच्छेद 30 कैसे है समानता के अधिकार के खिलाफ ? , आइए चर्चा करें |

 संविधान का अनुच्छेद 30 क्या है ?

     भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 में लागु होने के बाद से 395 अनुच्छेदों के साथ विश्व का सबसे बडा़ संविधान बना हुआ है | दुनियां के अन्य किसी देश के पास इतना बडा़ संविधान नही है | अनुच्छेद 30 हमारे भारत के इसी संविधान के भाग 3 मूल अधिकार के संस्कृति एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार में वर्णित 3 अनुच्छेदों में से एक है | इसका शिर्शक है 'शिक्षा संस्थाओं की स्थापना तथा प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार' |

क्या कहता है अनुच्छेद 30 ?

     अनुच्छेद 30 के खण्ड 1 के अनुसार 'धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों कों अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना एवं प्रशासन का अधिकार होगा' वही इसी खण्ड 1 (क) के अनुसार 'किसी भी अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा प्रशासित शिक्षा संस्थान की सम्पत्ति के अनिवार्य अर्जन के लिए उपबन्ध करने वाली विधि बनाते समय राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी सम्पत्ति के अर्जन के लिए ऐसी विधि द्वारा नियत या उसके अधीन अवधारित रकम इतनी ना हो की उस खंण्ड के अधिन प्रत्यभुत अधिकार निर्बन्धित या निराकृत न हो जाए' |

   इसी तरह खण्ड 2 के वर्णानुसार 'शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्थान के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नही करेगा की वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबन्ध में है' |

भारत में मदरसे और मिशनरी विद्यालय किस अनुच्छेद के तहत खुलते है ? 

     भारत में मदरसे और मिशनरी विद्यालय इसी अनुच्छेद 30 के तहत खुलते है क्योंकि हमारे भारत देश में कुल जनसंस्खया का लगभग 19 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय तथा 1 प्रतिशत ईसाई समुदाय अल्पसंख्यक वर्ग में आते है | यदि जनसंख्या के लिहाज से देखा जाए तो मुस्लिम समुदाय भारत का दुसरा सबसे बडा़ बहुसंख्यक समुदाय है जिनकी जनसंख्या लगभग 21-22 करोड़ के करीब है जो पुरे पाकिस्तान की जनसंख्या के बराबर है और वही दुसरी ओर भारत की सबसे छोटी अल्पसंख्यक आबादी पारसीयों की है जिनकी जनसंख्या लगभग 60-90 हजार के बिच में है | मगर आप तलाशेंगे तो पाएंगे की पुरे देश में पारसीयों के लिए विशेष शिक्षा संस्थान नाममात्र के हैं या नही हैं कम से कम मैने तो नही देखे मगर मदरसे और मिशनरी विद्यालय भारत के कोने कोने में हैं जबकी ईसाइयों की जनसंख्या भारत में 3 करों से ज्यादा है | 

अनुच्छेद 30 की आलोचनाएं

     अनुच्छेद 30 की कुछ निम्नलिखित आलोचनाएं हो सकती हैं :-

1. अनुच्छेद 30  हमारे संविधान के समानता के अधिकार अनुच्छेद 15 के खिलाफ हैं जिसमें लिखा गया है की धर्म , मूलवंश , जाति , लिंग या जन्मस्थान के आधार पर किसी से विभेद नही किया जाएगा |

2. यह किसी बहुसंख्यक व्यक्ति के अपने धर्म के बारे में उसे पढ़ाने से केवल इस आधार पर ही रोक देता है की वह बहुसंख्यक परिवार में जन्मा है तथा वह अपने धर्म को पढ़ाने के लिए किसी संस्थान को चला नही सकता है |

3. सन् 1976 के 42वे संविधान संसोधन के तहत हंमारे संविधान की प्रस्तावना में 'पंथनिरपेक्ष' शब्द लिख दिया गया है जिसका अर्थ यह होता है कि भारत राष्ट्र का कोई धर्म विशेष नही है तो फिर धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक कहां रह जाते हैं | और यदि राय्ट्र में संविधान के अनुसार कोई अल्पसंख्यक बहुसंख्यक नही है सब बराबर हैं तो फिर अलग से धार्मिक शिक्षण संस्थानों कि जरुरत कहां रह जाती है |

4. अनुच्छेद 30 में घर्म के साथ साथ भाषायी अल्पसंख्यकों का भी जिक्र है मगर पुरे भारत देश में भाषायी अल्पसंख्यकें के लिए शिक्षण संस्थान ना के बराबर हैं | उदाहरण स्वरुप बात करुं तो संस्कृत संविधान की आठवी अनुसूची में सामिल 22 भाषाओं मे से एक है इसके बोलने वालों कि संख्या पुरे देश में कुछ हजारों में होगी | संस्कृत भारत में बोली जाने वाली सबसे पुरानी भाषाओ मे से एक है पर आज इसे भारत में मृत भाषा कहा जाता है और इसके प्रचार प्रसार एवं संरक्षण के लिए पुरे देश में वर्तमान में कितने शिक्षण संस्थान हैं आप स्वयं पता कर लिजिए |