Friday, September 25, 2020

अप्रकाशित सत्य 6 , जनसंख्या नियंत्रण के सख्त कानुन की लगातार बढ़ रही है मांग |

       यू तो जनसंख्या नियंत्रण कानुन की मांग बहुत पुरानी है मगर 2019 में मोदी सरकार के फिर से केन्द्र में आने के बाद से यह मांग और बलवती होती जा रही है | इस मुद्दे पर ज्यादा बात करने से पहले हम यह समझ लेते हैं कि आखिर इस कानुन की मांग हो क्यों रही है और क्या सख्त जनसंख्या नियंत्रण कानुन भारत देश के लिए आवश्यक या नही ?

     हसे समझने के लिए हमे कुछ तथ्यों को समझना चाहिए पहला यह की 2001 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी करीब 111 करोड़ थी जो 2011 में बढ़कर 121 करोड़ हो गयी नयी जनगणना रिपोर्ट जो 2021 में आनी थी अब वह कोरोना महामारी के वजह से 2022 में आएगी | एक अंदाजे के अनुसार इस नयी जनगणना रिपोर्ट में भारत की जनसंख्या लगभग 135 से 140 करोड़ हो सकती है | और यह कोई छुपा हुआ तथ्य नही है कि किसी देश में बेरोजगारी , गरीबी , भुखमरी , कुपोषण , अपराध , अशिक्षा जैसी जितनी भी समस्याएं होती है वह उस देश की लगातार बढ़ती जनसंख्या की ही देन होती हैं | यही वजह है कि दुनिया की सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देश चीन ने अपने देश में एक बच्चा नीति सख्ती से लागु कर रखी है जबकी चीन एक विकसित अर्थव्यवस्था है और भारत तो लगातार जनसंख्या विस्फोट झेल रहा है तो भारत जैसी विकासशिल अर्थव्यवस्था वाले देश के लिए अपनी जनसंख्या बृद्धी को काबु करना बहुत आवश्यक हो जाता है |

     यहां देश और जनसंख्या को क्षेत्रफल के हिसाब से भी देखने की जरुरत है जिससे किसी देश का जनसंख्या घनत्व तय किया जाता है | अगर हम दुनिया के सबसे विकसित अर्थव्यवस्था संयुक्त राज्य अमेरिका की बात करें तो वह दुनिया का चौथा सबसे बडा़ देस है और उनकी जनसंख्या मात्र 33 करोड़ के करिब है वही दुनिया के सबसे बडे़ देश रुस की जनसंख्या मात्र 15 करोड़ के करीब है कनाडा़ जो दुनिया का दुसरा सबसे बडा़ देश है वहा कि जनसंख्या केवल 4 करोड़ के आस पास है | यहां हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह सारे देश विकसित रास्ट्र है |

      इन सभी तुलनाओं से यह स्पस्ट हो जाता है कि भारत को एक सख्त जनसंख्या नियंत्रण कानुन की कितनी आवश्यक्ता है | ऐसा नही है कि पिछली केन्द्र सरकारों ने इसके लिए प्रयास नहीं किया , प्रयास किए गए मगर वह उतने प्रभावी नही रहे जितने की होने चाहिए थे मगर जब से मोदी सरकार ने बडे़ फैसले करने शुरु किए जैसे तिन तलाक को रोकने वाला कानुन , धारा 370 को हटाना , नागरिक्ता संसोधन बिल हो आदि तो लोगों को लगने लगा है की इस सरकार में बडे़ और कडे़ फैसले करने की हिम्मत भी है और मंसा भी है यही वजह है कि जनसंख्या नियंत्रण कानुन को लेकर लोगों कि उम्मीदें इस सरकार से बढ़ गई है |


Friday, September 18, 2020

अप्रकाशित सत्य 5 , बैंग्लौर दंगे को ऐसे समझिए |

     क्या आपको याद है कि पिछले महिने में बैग्लौंर में दंगा फसाद हुआ था ? यदि यह याद है तो आपको ये भी याद होगा कि यह दंगा क्यों हुआ था ? यदि आप यह भी जानते है तो बहुत बेहोंतर है वर्ना कुछ लोग तो अपनी नीजि जिंदगी में इतने व्यस्त हैं कि उन्हे ये भी पता नही है की फेसबुक पर किसी बाद विबाद में फंसकर अगर आपने जवाब में कुछ कह दिया चाहे वह सत्य ही क्यों न हो तो एक समुदाय विशेष कि हथियारबंद भीड़ सड़कों पर उतर जाएगी और आपका घर जला देगी या शायद आपको पिट पिट कर मार ही डाले |

     मगर यहां सोचने वाली बात तो यह है कि एक फेसबुक कमेंट को पढ़कर इतनी जल्दी भीड़ आयी कहां से वो भी खास एक शांती प्रिय समुदाय विशेष की जो भारत कि मुख्य मिडिया कि नजरों में हमेशा बगुसंख्यकों के द्वारा सताई ही गयी है | मुझे यह लगता है कि ये समझने के लिए आपको दिल्ली दंगों को समझना पडे़गा | जी हां यदि आपकी स्मृति से यह बात निकल गई हो तो मै आपको याद दिलाना चाहुंगा कि दिल्ली में भी दंगे हुए थे हिंन्दु विरोधी दंगे जिसमें पचास से ज्यादा लोग मारे गए थे | दिल्ली के हिंन्दु विरोधी दंगों के बारे में मैने अपने इसी लेख सिरीज अप्रकाशित सत्य में विस्तार पुर्वक चर्चा कि है आप चाहें तो पढ़ सकते हैं |

      अब आप कहेंगे के दिल्ली के हिन्दु विरोधी दंगे और  बैंग्लौर दंगे के मध्य क्या संबंध है तो वह संबंध है मजहबी कट्टरपंधी विचारधारा का मजहबी उन्माद का और देश विरोधी षणयंत्र का वर्ना यू हि एक छोटा सा फेसबुक कमेंट जो आमतौर पर महिनों में भी हजारों लोगो तक नही पहुचता वह कुछ ही घंटों में हजारों कि विभिन्न तरीके की हथियारबंद भींड़ को कैसे इकट्ठा कर सकता है | क्या आपको नही लगता कि इसमें 'कुछ तो गड़बड़ है दया , कुछ तो गड़ब़ड़ है' |

    और इसमें एक परिदृश्य यह भी है कि मजहब विशेष के कथित चोर की मॉब लिचिंग पर ,  मजहब विशेष की एक बच्ची के मंदिर में बलात्कार पर पुरे हिन्दुओ को कटघरें में खडा़ करने वाले , रेप इन देविस्तान कहने वाले ,  असहिष्णुता बढ़ गई है कहने वाले , प्रस्तावित एनआरसी तथा सीएए का विरोध करने वाले वालीबुड के कुछ लोग तथा मिडिया वर्ग बैग्लौर दंगे पर खामोंश रहे तथा किसी ने भी अपना पुरस्कार वापस नही किया या किसी की पतंनी ने शायद उनसे देश छोड़कर जाने के लिए नही कहा तथा यहा किसी कि अभिव्यक्ति की आजादी भी नही छीनी गई और सबसे बडी़ बात लोकतंत्र कि हत्या भी नही हुई |


Friday, September 11, 2020

अप्रकाशित सत्य 4 , कंगना कि ललकार और बॉलीवुड की हिंदू घृणा का कारण और विश्लेषण


       कहा जाता है कि भारत में हर साल करीब 1000 फिल्में रिलिज होती हैं जो विभिन्न भाषाओं कि होती हैं पर एक भाषा है जो देश में सर्वाधिक बोली जाती है और वो है 'हिंदी' | इस भाषा की फिल्में बनाने वाली ईकाइयों को एक रुप में बॉलीवुड कहा जाता हैं | यहां तरह तरह की फिल्में बनती हैं और बनाते हैं कुछ खास फिल्मी घराने जिन्हे बैनर भी कहा जाता है जैसे आपने नाम सुना होगा कपुर्स , खांस , चोपडा़स आदि | और इन फिल्मों में जो मुख्य अभिनेता या अभिनेत्री होती हैं अमुमन इन्ही घरानों के बच्चे होते हैं "यहां आप इस बात का ध्यान रखें के यहां फिल्मों कि बात हो रही है टीवी पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों की नही" | 

        हां यह भी संभव है कि कभी कोई गैर फिल्मी परिवार का अभिनेता या अभिनेत्री भी फिल्मों में मुख्य भुमिका में दिख सकते है मगर यह बहुत कम देखने को मिलता है | और इन गैर फिल्मी परिवार के अभिनेताओं और अभिनेत्रीयों को बॉलीवुड में एक शब्द से संबोधित किया जाता है वो है 'आउटसाइडर्स' , जिसका मतलब है बाहर से आया हुआ | ये कुछ इसी तरह का संबोधन है जैसे आप ये कह रहे हो कि तुम में और मुझमें बहुत अंतर है | यदि आप कहना चोहें तो बॉलीवुड को परिवारवाद का सबसे अच्छा उदाहरण कह सकते हैं | और आज कंगना रनोत जो सुशांत के लिए इंसाफ की मांग कर रहीं हैं और लगातार मुंबई पुलिस के महाराष्ट सरकार की मंसा पर सवाल उठा रहीं हैं बॉलीवुड में ड्रग्स के चलन की बात पुरजोर तरिके से रख रहीं हैं वह इसे परिवारवाद पर प्रहार कि तरह देखा जा रहा है | और जब से सुशांत के हत्या कि जांच सीबीआई को गयी है तब से महाराष्ट की सरकार कंगना से बदले कि कार्यवाही कर रहें हैं और इसी कडी़ में 9 सितंबर को कंगना का ऑफिस तोडा़ जा चुका है और महाराष्ट सरकार के इशारे पर बीएमसी की यह कार्यवाही बहुत निंदनीय हैं |

       बॉलीवुड कि ज्यातर फिल्मों कि कहानी में प्रेम अलगाव और हिंसा दिखाई जाती है पर इसमें भी जो मुख्य रुप से एक चीज दिखाई जाती है वो है हिन्दु धर्म और उसके प्रति घृणा | इस तथ्य को समझने के लिए आपको अपने मस्तिष्क पर थोडा़ जोर डालना होगा और ये सोचना होगा के क्या आपने ये दृश्य नही देखा जहां एक आदमी माथे पर चंदन लगाए एक युवती का शारिरीक शोषण करने कि कोशिश कर रहा है , कोई साधु कहीं एक महिला का बलात्कार कर रहा है , एक अमिर साहुकार है और वह बच्चों से काम करवा रहा है या किसी विधवा लाचार महिला से पैसे उधार देने के बदले कंगन गिरवी रखवा रहा है और वही एक खान चाचा है जो बच्चें को खाना खिला रहा है ,  कोई अब्दुल भाई है जो गरिबों का मुफ्त में इलाज कर रहा है | यह सारे दृश्य हिंदी फिल्मों में आम बात है और यही वो तरिका है जिससे लगातार हिन्दु धर्म का अत्याचारी और धोखेवाज तथा एक मजहब को महान प्रस्तुत करने कि कोशिश हो रही है |

      अब आप स्वयं सोचकर देखें कि इन दृश्यों मे से कितने दृश्य सही लगते हैं और कितने गलत ? पर फिर भी लगातार ऐसे दृश्य दिखाए जा रहें हैं | और वही दुसरी तरफ आतंकवाद , जबरन धर्मांतरण और लव जिहाद आज के समाज की सच्चाई हैं | पर ये दृश्य फिल्मों और वेब सिरिजों से गायब मिलते हैं |

      हम यदि इसी वर्ष की बात करें तो 2020 में हि ऐसी कई फिल्में और बेव सिरिज हैं जो हिन्दु घृणा से भरे पडे़ हैं जैसे एमएक्स प्लेयर पर रिलीज हुई बेव सिरिज 'पाताल लोक' , डिज्नी प्लस हाटस्टार पर रिलिज फिल्म सड़क 2 , एमएक्स प्लेयर पर रिलीज हुई बेव सिरिज 'आश्रम' आदि | ये तो बस कुछ ही नाम हैं और ऐसी न जाने कितनी चीजे रोज युवाओ के सामने आ रही हैं और युवा इन्हे ही देखकर अपना नजरिया हिन्दु धर्म के बारे में बनाने के लिए विवश हैं क्योंकि उनके पास सही हिन्दुत्व की अवधारणा पहुच ही नही रही है |

  अब सवाल ये खडा़ होता है कि ऐसा किया क्यों जा रहा है तो इसकी बहुत सी बजहें हो सकती हैं | पहला तो ये है कि यह एक तरह के तुष्टीकरण की राजनीति है जो देश की सबसे पुरानी पार्टी से प्रभावित लोग करते हैं और दुसरी और सबसे बडी़ वजय है मजहबी कारण , क्योंकि सत्तर से अस्सी प्रतिशत बॉलीवुड एक विशेष मजहब को मानने वाला है तो उनकी विचारधारा ये है कि हम संख्यां में पुरे देश में हिन्दुओ से कम हैं और हम गजवा-ए-हिंद जो इनका वर्षों पुराना ख्वाब है कर नही सकते तो हमें इन्हें इसी तरह से निचा दिखाते रहना है ताकि इनकी युवा पीढी़ स्वयं ही अपने धर्म से शर्मिंदा हो और खुद ही अपना धर्म छोड़कर उन्हीं के मजहब को अपना ले | और तिसरी वजय हिन्दुओ का अत्याधिक उदासिन होना भी हो सकता है जिससे इन्हे इस बात का विश्वास है कि चाहे हम हिन्दु धर्म के बारे में कुछ भी दिखा दें कोई हमसे सवाल पुछनेवाला नही है |


Saturday, September 5, 2020

अप्रकाशित सत्य 3 , आतंकवादीयों , अलगाववादीयों और अपराधियों को टीवी चैनलों की सहानुभुति और मिडिया ट्रायल का सच

     पिछले कुछ वर्षो से हम देख रहें है कि कुछ टीवी चैनल आतंकवादीयों , अलगाववादीयों और अपराधियों को पत्रकारिता के नाम पर अपना मंच प्रदान करते आए हैं और न शिर्फ मंच प्रदान करते हैं बल्कि बाकायदा उनका महिमामंडन भी करते है राष्ट की जन भावना के साथ खिलवाड़ करते आए हैं तथा अपराधियों के अपराथ को सामान्यीकृत करने का प्रयास करते आए हैं और इसका हालिया उदाहरण सुशांत सिंह राजपुत के केस में देखने को मिला जब एक तथाकथित बडे़ चैनल ने इस केस कि मुख्य आरोपी को बैठाकर हास्यास्पद सवाल पुछे और मुख्य आरोपी को पुरा समय दिया जिससे वह पिड़ित पर ही संगीन आरोप लगा सके और उसका चरित्र हनन कर सके और न सिर्फ पिड़ित बल्की उसके पुरे परीवार पर आरोप लगा सके और उनका भी चरित्र हनन कर सके | यह बहुत दुर्भाग्यपुर्ण है |


     अब यदी हम इस बारे में और चर्चा करें तो कुछ ही दिन पहले दिल्ली दंगे के मुख्य आरोपियों में से एक को उसी तथाकथित बड़े टीवी चैनल ने स्थान दिया था यही नहीं इसी टीवी चैनल ने कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा मारे गए एक आतंकवादी के बारे में बताया था की वह गणित का शिक्षक था और भी कई घटनाएं बताकर उसके आतंकवादी होने के गुनाह को सामान्यीकृत करने का प्रयास किया | मुझे याद है कि जब निर्भया के दोषियों को फांसी पर चढ़ाया गया था तो एक इसी तरह के न्युज चैनल और उसके पत्रकार ने अपराधियों की रात से लेकर सुबह फांसी पर चढने तक की कहानी बताई थी जिसमें वह यही भी बता रहा था की किस तरह से फांसी वाली रात को किसने खाना खाया था नही खाया था या उन्हे फांसी पर चढा़ने ले जाते वक्त वो फुट फुट कर रो रहे थे | यहां मेरा सवाल इन टीवी चैनलों से ये है कि आप ये बताकर साबित क्या करना चाहते है कि देश उन बलात्कारियों कि फांसी पर रोए या न्यायालय नें उन्हें फांसी कि सजा देकर कोई गुनाह कर दिया है | मुझे यह लगता है कि इन टीवी चैनलों से ऐसे सवाल पुछे जाने चाहिए |


      इसलिए अब समय आ गया है कि इन टीवी चैनलों का पुर्णतय बहिस्कार करके इन्हे सत्य से और राष्ट की जन भावना से अवगत कराया जाए | वरना ये टी आर पी के भुखे चैनल इसी तरह से सत्य को एवं राष्ट को हानी पहुचाते रहेंगे | सच तो ये है कि ऐसे चैनल केवल अपनी वामपंथी विचारधार और अपनी टी आर पी के लिए पत्रकारिता के नाम पर केवल अपना हित साध रहे हैं| | यही वजह है कि पहले सुशांत की कथित हत्या को आत्महत्या कहकर छोड़ देने वाले लोग आज जब एक चैनल ने अपनी मेंहनत , लगन और सत्य के दम पर जब एक मुहिम बना दी है तो इसे मिडिया ट्रायल कहकर आलोचना कर रहें है |


     जिस तरह से घने अंधेरे को रोशनी की एक किरण चिर देती है उसी तरह से टीवी पत्रकारिता में भी कुछ चैनल ऐसे है जो रोशनी की वही किरण हैं और वो दिन रात मेहनत करके सच दिखाने कि कोशिश कर रहे हैं तो उन पर ये आरोप लगाया जा रहा है कि वह मिडिया ट्रायल कर रहे है | इन आरोपों को इस बात से समझिए कि ये वही लोंग हैं जो आतंतवादियों , अलगाववादियों और कातिलों के टीवी इंटरव्यू को सोसल मिडिया पर यह कहते हुए साझा करते हैं कि यही तो अभिव्यक्ति की असली स्वतंत्रता है |

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     इस लेख को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |