Wednesday, June 23, 2021

अप्रकाशित सत्य 22 , क्या कन्या भ्रूण हत्या , बाल विवाह , पर्दा प्रथा , सती प्रथा जैसी कुप्रथाएं वास्तव में प्राचीनकाल से भारतवर्ष में प्रचलित कुप्रथाएं थी या भारतीय स्त्रीयों को विदेशी आक्रमणकारीयों से बचाव का तरीका थी ? आइए विस्तार से जाने |


     जैसा कि हम सब ने अपनी प्राथमिक शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा के दौरान शीर्षक में वर्णित सभी कुप्रथाओं के बारे में पढ़ा है और यह भी पढ़ा है कि किस तरह से समय-समय पर कुछ समाज सुधारकों के द्वारा इनका अंत किया गया | मगर क्या यह कुप्रथाएं भारतवर्ष में हमेशा से विद्यमान थी ? मतलब क्या यह सभी कुप्रथाएं प्राचीन भारत में भी थी ? , तो इसका जबाब है , नही | कई शोधी इतिहासकारों ने इस बात को पूरे प्रमाण के साथ साबित किया है कि यह सभी कुप्रथाएं प्राचीन भारत में नही थी |

     अब यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि आखिर जब यह कुप्रथाएं प्राचीन भारत में नही थी तो फिर यह सभी कुप्रथाएं मध्यकालीन भारत में कैसे उत्पन्न हो गयी | इसे समझने के लिए आपको भारत पर हुए बर्बर इस्लामीक आक्रमणों को समझना पड़ेगा | भारत पर सबसे पहला सफल इस्लामीक हमला अरबों का था | 712 ईसवी में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला तब किया जब सिंध के राजा दाहिर सेन ने पैगम्बर मोहम्मद साहब के परिवारजनों को अपने राज्य में शरण दिया | मोहम्मद बिन कासिम ने 17वी बार में सिंध पर सफलता प्राप्त की और राजा दाहिर सेन को मार डाला तथा राजा के पूरे परिवार के मर्दों को भी मार डाला जिसमें बच्चे भी सम्मिलित थे मगर उसने राजा कि सभी रानीयों तथा उसकी बेटियों को अपना यौन गुलाम बना लिया | यही नही उसने राजा दाहिर की कुछ बेटियों को अमिर अरबों को बेच दिया | यह भी इतिहास है कि जब वह सिंध विजय करने के बाद वापस लौट रहा था तो बहुत अधिक संख्या में धन के साथ-साथ कई हजार सिंधी महिलाओं को भी अपना यौन गुलाम बनाकर ले जा रहा था | कुछ लेखों में इसकी संख्या चार हजार तो कुछ में चालिस हजार तक बताई जाती है |

     तब के बाद से आगे भारत में जितने भी अरब , मंगोल , तुर्क , अफगान या मुगल आक्रमणकारीयों ने आक्रमण किए सब में यही दोहराया जाता रहा जिसमें कि राजा के युद्ध में हार जाने के बाद ये बर्बर आक्रमणकारी न केवल राजा कि रानीयों बेटियों बल्कि युद्ध में मारे गए सैनिकों की पत्नीयों और बेटियों को भी अपना यौन गुलाम बना लेते थे | इतिहास में सैकड़ों बार आपको यह भी देखने को मिलेगा की यह बर्बर आक्रमणकारी पूरे गांव भर के मर्देों एवं दस वर्ष से बड़े लड़को को और बूढी महिलाओं को मार डालाते थे और बाकी सभी औरतों और लड़कीयों को अपना यौन गुलाम और दासीयां बना लेते थे | 

     जब हम बात करते हैं कन्या भ्रूण हत्या की तो यह सबसे पहले भारत के उन क्षेत्रों में प्रारंभ हुई मानी जा सकती है जिस पर इन बर्बर इस्लामीक आक्रांताों ने कब्जा कर लिया | इसकी पर्याप्त संभावना थी की आम जन ने यह सोचकर कन्या भ्रूण हत्या करना आरंभ कर दिया होगा कि ना तो बेटी पैदा होगी या बड़ी होगी और ना ही इसे किसी मलेच्छ की यौन गुलाम बनकर पुरा जीवन जीना पड़ेगा | और अधिक पढ़ने के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

     बाल विवाह भी इसी तरह का बेटियों की अस्मिता की रक्षा का एक प्रयास लगता है जिसमें बेटी को जल्द से जल्द विवाह करके ससुराल भेज दिया जाता था ताकि यदि गांव या नगर पर इन बर्बर आक्रमणकारीयों का हमला हो और यदि पिता को कुछ हो जाए या उसे मार डाला जाए तो कम से कम बेटियों को बचाने के लिए उनका पति और ससुराल पक् के लोग जिम्मेदार हो | भारत के कुछ क्षेत्रों में बहुत कम मात्रा में बाल विवाह आज भी होता है जिसमें बंगाल विहार झारखंड छत्तीसगढ़ समेत कई अन्य राज्य भी सम्मिलित हैं | और अधिक पढ़ने के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

     आप इसी प्रकार के बचाव की भावना सती प्रथा में भी देख सकते हैं जहां स्त्रीयां स्वेच्छा से पति की चिता के साथ जलकर भस्म हो जाती थी ताकि कोई मलेच्छ जीवन भर उनकी अस्मिता से ना खेल सके जो वास्तव में महारानी पद्मावती के जौहर से प्रचलित और प्रेरित मानी जा सकती है और महारानी पद्मावती ने जौहर क्यों किया था आप ये भली भाँति जानते हैं | हां इस बात से इंकार नही है कि शुरुआत में जो बचाव के तरीके थे बाद में वो प्रथा बन गए और फिर इन्होने एक कुरीति का रुप धर लिया |और अधिक पढ़ने के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

     राजस्थान के कुछ जिलों में आज भी घूँघट की परंपरा है यह पर्दा प्रथा का ही एक रुप समझा जा सकता है जिसका मक़सद अनजान पुरुषों से अपने मुख को छुपाना है | इसके मूल में भी यही कट्टर बर्बर इस्लामीक आक्रमणकारीयों से बचाव का उद्देश्य है | दरअसल ये बर्बर इस्लामीक आक्रमणकारी ये करते थे कि जिस क्षेत्र में यह अधिकार स्थापित कर लेते थे वहा अपने सैनिकों को आदेश देते थे की जाओ और पुरा नगर घुमों और जितनी भी सुन्दर स्त्रीयां मिलें उन्हें उठाकर हरम (जहां ये आक्रमणकारी बादशाह अपनी बेगमों और यौन गुलामों को रखते थे) में पहुंचा दो | मैने किसी पुराने लेख में पढ़ा था की मुगल बादशाह जहांगीर के हरम में उसकी 300 बेगमें 5000 यौन गुलाम बनाई गई महिलाएं (रखैलें) और 1000 से ज्यादा कमसिन लड़के रखें गए थे | यह आंकड़े यह बताने के लिए काफी है कि यह बर्बर मुगल आक्रमणकारी किस तरह से हारे हुए राज्य की महिलाओं और यौन गुलाम बनाई महिलाओं को रखते थे | और अधिक पढ़ने के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

     ऐसा ही एक कृत्य आपने सुना होगा जिसमें आक्रांता मुगलों का एक बादशाह अकबर दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में औरतों का अंतरंग मीना बाजार लगाया करता था जिसमें औरतों को यह कहा जाता था की वह अपना चेहरा बीना ढके आए | दरअसल मीना का मतलब सुराही होता है तो मीना बाजार का मतलब सुराहीयों का बाजार या सुराही जैसी महिलाओं का बाजार | कहा तो यह भी जाता है कि इस मीना बाजार में अकबर स्वयं महिला बनकर रहता था और अपने सैनिकों को कहकर अपने पसंद की महिलाओं को अपने हरम तक पहुंचवाता था | इतना जानने के बाद यह समझना बहुत कठिन नही होना चाहिए की आखिर क्यों पर्दा या घूँघट जैसी प्रथाएं प्रचलन में आयी होंगी | और अधिक पढ़ने के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

     आज के आधुनिक समाज में इस तरह की प्रथाओं का कोई स्थान नही हेना चाहिए और यह बहुत सुखद बात है कि इन में से कुछ कुप्रथाएं पुर्ण रुप से समाप्त हो चुकी है और जो थोड़ी बहुत हैं भी वह भी समाप्ति कि ओर बढ़ रही हैं | मगर इन सभी प्रथाओं के हर पहलु को जाने बीना इसे किसी समाज के सम्पूर्ण अस्तित्व पर नही थोपा जाना चाहिए | 







Thursday, June 17, 2021

अप्रकाशित सत्य 21 , शेक्सपियर ने कहा था 'नाम में क्या रखा है', तो आइए चर्चा करते हैं कि नाम में क्या रखा है | आखिर शहरों के नाम बदले जाने पर क्यों होता है विरोध |

अप्रकाशित सत्य 21 , शेक्सपियर ने कहा था 'नाम में क्या रखा है', तो आइए चर्चा करते हैं कि नाम में क्या रखा है | आखिर शहरों के नाम बदले जाने पर क्यों होता है विरोध |


     अक्सर आपने लोगों को ये कहते हुए सुना होगा की शेक्सपियर ने कहा था नाम में क्या रखा है , जब उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद का नाम बदलकर उसका पुराना नाम प्रयागराज रखा था तब हमारे देश में तमाम लोगों ने उत्तर प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री का विरोध करते हुए यही बात कही थी की नाम क्यों बदल रहें हैं नाम में क्या रखा है , ये तो हिन्दूवादी सरकार है जो इतिहास को खत्म करना चाहती हैं आदी आदी |

     अब जो मुख्य बात है वो यह है कि क्या सच में नाम में कुछ नही रखा | हम सब ने बचपन में संज्ञा कि परिभाषा में यह पढ़ा है कि किसी व्यक्ति वस्तू या स्थान के नाम को संज्ञा कहा जाता है | इसे और अधिक विस्तार देने के लिए मैं आपसे एक प्रश्न पुछना चाहता हूं कि यह जो कोट है 'नाम में क्या रखा है' वो किसका है ? , मै जानता हूं के आप जबाब देंगे यह कोट मशहूर कवि लेखक एवं चिंतक शेक्सपियर का है | अब आप स्वयं सोचीए कि नाम में क्या रखा है आप यह बात उस व्यक्ति के नाम से जानते हैं जिसने इसे कहा है यानी यदि नाम में कुछ नही रखा होता तो शेक्सपियर ने ये कोट लिखने के बाद नीचे ऑथर के रुप में अपना नाम नही लिखा होता |

     एक बार इसी बात को लेकर मेरी एक मित्र के साथ चर्चा हो रही थी तभी उसने भी यही बात कही कि शेक्सपियर ने कहा था की 'नाम में क्या रखा है' तभी मैने तुरंत इसके जबाब में यह बात कहा की तुम्हारा नाम आदित्य है मगर अब से मै तुम्हें बेवकूफ कहूंगा | मेरे इतना कहते ही वह नाराज हो गया और मुझ पर झल्लाने लगा , तब मैने उसे शांति से ये बात कहा कि मेरे दोस्त अभी तुम ही तो कह रहे थे की नाम में क्या रखा है तो फिर मै तुम्हें आदित्य कहूं या बेवकूफ क्या रखा है दोनों नाम ही तो हैं | तब तुम आदित्य कि जगह बेवकूफ को अपना नाम स्वीकार करलो इसके बाद वह कहने लगा के ऐसा कैसे हो सकता है ऐसा हो ही नहीं सकता |

     जी बिलकुल सत्य है ऐसा नही हो सकता गधे को हाथी और हाथी को गधा नही कहा जा सकता जबकि दोनों ही जाति वाचक संज्ञा यानी की नाम ही हैं | यही तर्क है जिसकी वजह से इतिहास में हुई गलतियों को सुधार जा रहा है और सुधारा जाना भी चाहिए | अब तक फैजाबाद को अयोध्या 

इलाहाबाद को प्रयागराज 

गुड़गांव को गुरुग्राम और 

आदी स्थानों के नामों को उनके पुराने या प्रचीन नाम लौटाएं जा चूके है मगर अभी और बहुत कुछ बाकी है जिसे उसकी असली पहचान नही मिली है |

      हमारे देश में बहुत अधिक संख्या में शहरों और कस्बों के नाम बाहर से आए अरब , मंगोल , तुर्क , अफगानी और मुगल आक्रमणकारी के नाम पर हैं जो अब भी उनके किए नरसंहार , बलात्कार और अत्याचारों की अनुभूति कराते है मगर अब समय आ गया है कि हमें इन नामों को बदलना चाहिए और भारत की आजादी की लड़ाई में अपना जीवन बलिदान करने वाले लाखों महान क्रांतिकारीयों के नाम पर रखना चाहिए जिससे हमारे भारत देश की आने वाली पीढ़ीयां इनसे प्रेरणा ले सकें |