Tuesday, June 21, 2022

असंपादित सत्य 05 , बॉलीवुड का अंधा गोरी प्रेम और भारतीय समाज पर इसके घातक परिणाम |


     गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा मै तो गया मारा आके यहा रे , गोरे रंग पे इतना गुमान कर गोरा रंग दो दिन में ढल जाएगा , गोरे गोरे मुखडे पे काला काला चश्मा , गोरिया चुराना मेरा जिया गोरिया , तैनु काला चश्मा जंचता है जंचता हैं गोरे मुखडे पे , गोरी हैं कलाईया तू लादे मुझे हरी हरी चूड़ीयां अपना बनाले मुझे बालमा और ऐसे अनगिनत गाने हैं जिसमें गोरे रंग का भाव भर भर कर प्रकट हो रहा है और यही नही ये तो हम सब ने बॉलीवुड की फिल्मों में देखा ही है की हीरोइन का रंग गोरा होना कितना आवश्यक है | अगर मैं आपसे पूछू कि किसी ऐसी फिल्म का नाम बताइए जो आपने देखी हो जिसमें हीरोइन का रंग काला या सांवला हो तो आप नही बता पाएंगे क्योंकि ऐसी कोई फिल्म तलाश कर पाना लगभग असंभव है | बॉलीवुड का ये अंधा गोरा प्रेम या गोरी प्रेम यू ही नही है इसके पीछे सौंदर्य प्रसाधन सामग्री बनाने बाली कंपनियों का मोटा पैसा है | बॉलीवुड की लगभग हर फिल्म में इन कंपनियों का पैसा लगा होता है और ये बॉलीवुड सितारों को प्रचार करने का पैसा अलग से देते हैं | और इसमें टीवी सीरियल बाले और आजकल ओटीटी बाले भी कोई पीछे नहीं हैं | संक्षेप में कहे तो बॉलीवुड ने ये जो गोरी शब्द को लड़की का पर्यायवाची बना दिया है इसके पीछे केवल और केवल पैसा है | 


     इससे पहले कि आप ये कहे कि केवल बॉलीवुड ही इस गोरे रंग के प्रति अंधे प्रेम की एकमात्र वजह नही है तो मै भी मानता हूं कि केवल बॉलीवुड ही इस अंधे प्रेम की एकमात्र वजह नही है इसका कुछ भाग हमारी गोरों की गुलामी से भी प्रभावित है मगर सबसे बड़ी वजह बॉलीवुड ही है क्योंकि फिल्में और टीवी सीरियल ये बहुत बड़े माध्यम हैं | अगर बॉलीवुड पैसों का भक्त न होकर देशहित और समाजहित में कार्य करता तो आज हम ये काले गोरे रंग से उपजे भेदभाव को भरने में कामयाब हो गए होते मगर बॉलीवुड ने तो अपने लालच में काले गोरे रंग के भेदभाव को एवं गोरे रंग के प्रति अंधे प्रेम को और परवान चढा दिया | अब गोरे रंग के प्रति लोगों की दीवानगी इस हद तक हो गयी है कि वो अपना चेहरा या शरीर गोरा करने के लिए कितना भी पैसा खर्च करने के लिए तैयार हैं कोई भी दर्द सहने के लिए तैयार हैं कोई भी प्रयोग करने के लिए तैयार हैं |


     आज ये गोरे रंग के प्रति अंधा प्रेम ही हमारे वर्तमान समाज को कहा तक ले आया है कि विडंबना देखिए हम अपने घर की मंदिर में श्याम श्री कृष्ण की पुजा करते हैं मगर हमें न अपना बेटा श्याम वर्ण में चाहिए ना दामाद | हम भले ही अपने घर की मंदिर में मां काली की पुजा करते हो मगर हमे न अपनी बेटी काली चाहिए ना बहू | किसी काले व्यक्ति या महिला को देखते ही हम ये अंदाजा लगाना शुरू कर देते हैं कि ये फला जाती से होगा ये देहाती होगा ये फला काम करता होगा ये कम पढ़ा लिखा या अनपढ़ होगा और फिर हम उससे व्यवहार भी उसके प्रति बनाई गई अपनी धारणा के अनुसार ही करते हैं |


     अगर हम ये गर्व करते हैं की हम दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है जो अब भी कायम हैं तो हमें ये समझना पड़ेगा की वो क्या मूल्य थे जो हमारे पूर्वजों ने पालन किए और उन्हें हम तक पहुँचाया तो मुझे लगता है कि वो सबसे बड़ा मूल्य है किसी व्यक्ति को उसके रंग या शरीर की बनावट के आधार पर न देखकर उसके गुणों के आधार पर उसके कर्मों के आधार पर देखना यही वजह है कि हम आज भी अपने घर की मंदिर में श्याम योगेश्वर श्री कृष्ण और मां काली की पुजा करते हैं जब की ये भी काले रंग के हैं |