Saturday, October 29, 2022

असंपादित सत्य 06 , धर्म ग्रंथों के भिन्नतापूर्ण अनुवादों से उत्पन्न हुई भ्रम की स्थिति पर एक परिचर्चा |


    कुछ दिनों पहले मैने पुरी श्रीमद्भगवत् गीता पढ़ी और अब भागवत पुराण पढ़ रहा हूं | पढ़ने के दौरान कुछ श्लोकों का हिन्दी अनुवाद मैं ने इंटरनेट पर देखा तो कुछ अनुवाद मैं जो पुस्तक पढ़ रहा था उससे थोड़े अलग मिले और जब मैने विडियोज देखे तो उनमें भी कुछ हद तक यही मिला | यही वजह है कि कहीं-कहीं भ्रम की सी स्थिति उत्पन्न हो गयी | पर ज्यादा ढूढ़ने पर स्थिति साफ हो गयी | फिर तो बस एक सिलसिले की तरह युट्युब पर डिबेट देखने लगा तब जाकर पता चला कि इस स्थिति ने तो भयावह रुप ले लिया है और ये स्थिति केवल विधर्मीयों की ही नही है समधर्मीयों की भी है | जिस पर मुझे लगता है कि एक विस्तृत परिचर्चा की जरुरत है | इसके लिए मेरे मत में इन तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए |


     हमारे कुछ धार्मिक ग्रंथों के बारे में कहा जाता है की वो लगभग 6000 BCE से भी ज्यादा पुराने हैं और इस बात पर गौर करें के ऐसा कहा जाता है इसकी असली डेट क्या है ये किसी को पता नहीं है और ये डेट्स भी संवतों के अनुसार अलग-अलग मानी जाती है | जैसे युधिष्ठिर संवत के अनुसार लगभग 8000 BCE विक्रम संवत के अनुसार 6000 BCE शक संवत के अनुसार 5000 से 4000 BCE शकांत संवत के अनुसार 3000 से 2500 BCE | वर्तमान की हमारी जो इतिहास की किताबें हैं उनमें ऐतिहासिक घटनाओं की जो डेटींग यानी की कालक्रम है वह शकांत संवत के अनुसार हैं जिसे शक संवत समझा जाता है ऐसा कुछ इतिहासकारों का मत हैं | इससे भी कालक्रम में बहुत सी अनियमितताए उत्पन्न हुई होंगी माना जा सकता है |


     अब हम यदि सबसे आखिर का संवत ले तो भी ये ग्रंथ आज के हिसाब से 5000 से लेकर 4500 साल पुराने हैं | अब हम अगर इनके अनुवाद की बात करें तो हमे समझना चाहिए कि इनका इन 4-5 हजार सालों में अब तक हजारों बार ट्रांसलेशन यानी की अनुवाद हुआ होगा और हमे इस तथ्य पर भी ध्यान देना चाहिए की किसी भाषा को जैसी वो आज हमारे समय में हैं वैसी होने में हजारों वर्ष का समय लगा है | जैसे मैं अपनी बात हिन्दी भाषा का उदाहरण देकर ही समझाना चाहूंगा | प्रारंभ में जो हिन्दी थी करीब 1000 वर्ष पूर्व वो प्राकृत के नाम से जानी जाती है आज इतिहास में , फिर यही आगे चलकर देशभाषा हुई , पिंगल हुई , सधुक्कडी़ हुई तब कही जाकर आज इस स्वरुप में हम तक पहुच पाई है | तो बदलाव के 1000 वर्षों में भी इन सभी परिवर्तित भाषा कालखण्डो में भी अनुवाद आदी कार्य होते रहें हैं | तो यह सब बदलाब भी आज सम्मिलित हो गए हैं | 


     जैसा की हम सब जानते हैं कि भारतवर्ष पर पिछले 2-3 हजार वर्ष से बाहरी आक्रमण होते रहे हैं और हमारे बहुत से मंदिर एवं विश्वविद्यालय बर्बर आक्रांताओं द्वारा तोड़ दिए गए हैं आग के हवाले कर दिए गए हैं जिसमें सहेज कर रखा गया हमारे पूर्वजों का हजारों साल का ज्ञान नष्ट कर दिया गया है | जिसमें नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास हम सब को पता है जिसे जब आक्रांता बख्तियार खिलजी ने आग लगा कर जलाया तो उसमें 30 लाख फस्ट हैड बुक यानी की जिनकी प्रतिलिपि नही है थी जिन्हें पुरा जलने में तीन माह का समय लगा था | तो इन सब में भी हमने अपमे बहुत से अनमोल ग्रंथ खोए हैं या आज जिनके कुछ भाग मिले हैं उनके कुछ भाग खो दिए हैं , हमें यह भी ध्यान में रखना होगा | 


     पर सबसे महत्वपूर्ण ये बात है जिसे अनदेखा नही करना चाहिए कि आज कल ही किसी एक ग्रंथ की ही किसी एक भाषा में सैकड़ों अनुवादकों का कार्य उपलब्ध है | तो किसी एक अनुवादक का अनुवाद लेकर फिर इस तरह की डिबेट करना मुझे तो पानी में लाठी पीटने जैसा ही लगता है |

Tuesday, June 21, 2022

असंपादित सत्य 05 , बॉलीवुड का अंधा गोरी प्रेम और भारतीय समाज पर इसके घातक परिणाम |


     गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा मै तो गया मारा आके यहा रे , गोरे रंग पे इतना गुमान कर गोरा रंग दो दिन में ढल जाएगा , गोरे गोरे मुखडे पे काला काला चश्मा , गोरिया चुराना मेरा जिया गोरिया , तैनु काला चश्मा जंचता है जंचता हैं गोरे मुखडे पे , गोरी हैं कलाईया तू लादे मुझे हरी हरी चूड़ीयां अपना बनाले मुझे बालमा और ऐसे अनगिनत गाने हैं जिसमें गोरे रंग का भाव भर भर कर प्रकट हो रहा है और यही नही ये तो हम सब ने बॉलीवुड की फिल्मों में देखा ही है की हीरोइन का रंग गोरा होना कितना आवश्यक है | अगर मैं आपसे पूछू कि किसी ऐसी फिल्म का नाम बताइए जो आपने देखी हो जिसमें हीरोइन का रंग काला या सांवला हो तो आप नही बता पाएंगे क्योंकि ऐसी कोई फिल्म तलाश कर पाना लगभग असंभव है | बॉलीवुड का ये अंधा गोरा प्रेम या गोरी प्रेम यू ही नही है इसके पीछे सौंदर्य प्रसाधन सामग्री बनाने बाली कंपनियों का मोटा पैसा है | बॉलीवुड की लगभग हर फिल्म में इन कंपनियों का पैसा लगा होता है और ये बॉलीवुड सितारों को प्रचार करने का पैसा अलग से देते हैं | और इसमें टीवी सीरियल बाले और आजकल ओटीटी बाले भी कोई पीछे नहीं हैं | संक्षेप में कहे तो बॉलीवुड ने ये जो गोरी शब्द को लड़की का पर्यायवाची बना दिया है इसके पीछे केवल और केवल पैसा है | 


     इससे पहले कि आप ये कहे कि केवल बॉलीवुड ही इस गोरे रंग के प्रति अंधे प्रेम की एकमात्र वजह नही है तो मै भी मानता हूं कि केवल बॉलीवुड ही इस अंधे प्रेम की एकमात्र वजह नही है इसका कुछ भाग हमारी गोरों की गुलामी से भी प्रभावित है मगर सबसे बड़ी वजह बॉलीवुड ही है क्योंकि फिल्में और टीवी सीरियल ये बहुत बड़े माध्यम हैं | अगर बॉलीवुड पैसों का भक्त न होकर देशहित और समाजहित में कार्य करता तो आज हम ये काले गोरे रंग से उपजे भेदभाव को भरने में कामयाब हो गए होते मगर बॉलीवुड ने तो अपने लालच में काले गोरे रंग के भेदभाव को एवं गोरे रंग के प्रति अंधे प्रेम को और परवान चढा दिया | अब गोरे रंग के प्रति लोगों की दीवानगी इस हद तक हो गयी है कि वो अपना चेहरा या शरीर गोरा करने के लिए कितना भी पैसा खर्च करने के लिए तैयार हैं कोई भी दर्द सहने के लिए तैयार हैं कोई भी प्रयोग करने के लिए तैयार हैं |


     आज ये गोरे रंग के प्रति अंधा प्रेम ही हमारे वर्तमान समाज को कहा तक ले आया है कि विडंबना देखिए हम अपने घर की मंदिर में श्याम श्री कृष्ण की पुजा करते हैं मगर हमें न अपना बेटा श्याम वर्ण में चाहिए ना दामाद | हम भले ही अपने घर की मंदिर में मां काली की पुजा करते हो मगर हमे न अपनी बेटी काली चाहिए ना बहू | किसी काले व्यक्ति या महिला को देखते ही हम ये अंदाजा लगाना शुरू कर देते हैं कि ये फला जाती से होगा ये देहाती होगा ये फला काम करता होगा ये कम पढ़ा लिखा या अनपढ़ होगा और फिर हम उससे व्यवहार भी उसके प्रति बनाई गई अपनी धारणा के अनुसार ही करते हैं |


     अगर हम ये गर्व करते हैं की हम दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है जो अब भी कायम हैं तो हमें ये समझना पड़ेगा की वो क्या मूल्य थे जो हमारे पूर्वजों ने पालन किए और उन्हें हम तक पहुँचाया तो मुझे लगता है कि वो सबसे बड़ा मूल्य है किसी व्यक्ति को उसके रंग या शरीर की बनावट के आधार पर न देखकर उसके गुणों के आधार पर उसके कर्मों के आधार पर देखना यही वजह है कि हम आज भी अपने घर की मंदिर में श्याम योगेश्वर श्री कृष्ण और मां काली की पुजा करते हैं जब की ये भी काले रंग के हैं |

Friday, February 11, 2022

असंपादित सत्य 04 , क्या आप ज्योतिषशास्त्र और वास्तुशास्त्र के बारे में जानते हैं ? , इससे भी बड़ा सवाल ये की क्या आप इनमें विश्वास करते हैं ? , हां या नही , अगर नही' , बॉलीवुड नही करता इसीलिए ना |

      'क्या मां दुनियां चांद पर जा रही है और आप हैं कि कुण्डली में अटकी हुई हैं' इस डायलौग को हम सब ने टीवी और फ़िल्मों में सुना है , जब भी किसी टीवी सीरियल या फिल्म में विवाह के लिए मां लड़की की कुण्डली मिलाने को कहती है तो हीरो की तरफ से बोला गया सबसे पहला संवाद यही होता है | इस संवाद को कहकर हीरो यह दिखाने की कोशिश करता है कि वह आधुनिक युग का है और वह इस पुराने अंधविश्वास को नही मानता उसके हिसाब से कोई पंडित यह कैसे बता सकता है कि आगे आने वाली जिंदगी में उसके लिए कौन अच्छा रहेगा कौन नही | 


     अगर उपरी तौर पर देखा जाए तो यह हमारे उस बहुत बड़े आयु वर्ग और जनसंख्या वर्ग के लिए हैं जिन्होंने ज्योतिषशास्त्र के बारे में कभी सुना ही नहीं है जिसे केवल वैदिकशास्त्र जानने वाले कुछ ज्योतिषाचार्य ही जानते हैं | क्योंकि बॉलीवुड के मूल में सनातन विरोध रहा है जो अब साबित हो रहा है इसलिए वह बीना सच जाने या सामान्य जन मानस को इसकी सच्चाई बताए इसे नकार देता है और इसके विरुद्ध प्रचार करता है जो की बहुत ही तर्कहीन और सतही है | 


किसी भी बात को स्वीकारने या नकारने से पहले हमे ये जानना चाहिए कि आखिर ज्योतिषशास्त्र और वास्तुशास्त्र होता क्या है 


ज्योतिषशास्त्र क्या होता है? 


     जैसा की हम जानते हैं कि ज्योतिष शास्त्र एक बहुत ही वृहद ज्ञान है। सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों, नक्षत्रों , तारों आदि की गति, परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है।


     ज्योतिष शास्त्र की व्युत्पत्ति 'ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्‌' की गई है। हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का अंग है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति 'द्युत दीप्तों' धातु से हुई है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है।


वास्तुशास्त्र क्या होता है?


     वास्तु का शाब्दिक अर्थ निवासस्थान होता है। इसके सिद्धांत वातावरण में जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश तत्वों के बीच एक सामंजस्य स्थापित करने में मदद करते हैं। जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश इन पाँचों तत्वों का हमारे कार्य प्रदर्शन, स्वभाव, भाग्य एवं जीवन के अन्य पहलुओं पर पड़ता है। यह विद्या भारत की प्राचीनतम विद्याओं में से एक है जिसका संबंध दिशाओं और ऊर्जाओं से है। इसके अंतर्गत दिशाओं को आधार बनाकर आसपास मौजूद नकारात्मक ऊर्जाओं को कुछ इस तरह सकारात्मक किया जाता है, ताकि वह मानव जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव ना डाल सकें। 


     विश्व के प्रथम विद्वान वास्तुविद् विश्वकर्मा के अनुसार शास्त्र सम्मत निर्मित भवन विश्व को सम्पूर्ण सुख, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। जगत और वास्तु शिल्पज्ञान परस्पर पर्याय है।वास्तु एक प्राचीन विज्ञान है। हमारे ऋषि मनीषियो ने हमारे आसपास की सृष्टि मे व्याप्त अनिष्ट शक्तियो से हमारी रक्षा के उद्देश्य से इस विज्ञान का विकास किया। वास्तु का उद्भव स्थापत्य वेद से हुआ है, जो अथर्ववेद का अंग है। इस सृष्टि के साथ साथ मानव शरीर भी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है और वास्तु शास्त्र के अनुसार यही तत्व जीवन तथा जगत को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक है |


     इस तरह हम ये देख सकते हैं की ज्योतिषशास्त्र और वास्तुशास्त्र पुर्ण रुप से प्राचीन भारतीय ज्ञान और विज्ञान का हिस्सा हैं इसमें कुछ भी कल्पना या अंधविश्वास नही है | यह वैदिक ज्ञान की विरासत है और यह पुर्ण रुप से वैज्ञानिक है | 

Wednesday, February 2, 2022

असंपादित सत्य 03 , मेरी नजर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बो बातें जो उन्हें अपने समय के बाकी सभी नेताओं से श्रेष्ठ बनाती हैं |


     हालही में भारत सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर कुछ अहम फैसले किए हैं जिससे नेताजी को लेकर पूरे देश में चर्चाएं हो रही हैं | जिनमें से पहला फैसला ये है कि अब से गणतंत्र दिवस की शुरुआत नेताजी की जन्म जयंती यानी की 23 जनवरी से होगी और दुसरा और सबसे बड़ा फैसला ये है कि इंडिया गेट के सामने की कनोपी जहां 1968 तक महाराजा जार्ज पंचम की मूर्ति लगी थी वहां अब ग्रेनाइट की नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगेगी अभी वहा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया गया है |


     नेताजी से जुड़े तथ्यों पर बात की जाय तो उनके कांग्रेस के अध्यक्ष पद त्यागने से लेकर फिर आईएनए (इंडिया नेशनल आर्मी) और फिर प्लेन क्रैश में उनके निधन तक सब जानते हैं और अब तो इस पर बहुत बातें हो भी रही हैं | यहां मै ये बताता चलूं की उनकी प्लेन क्रैश में निधन होने की सत्यता पर काफी विवाद हैं और बहुत बड़ी तादाद में लोग इसे नही मानते जिनमें से मै भी हूं और इस पर काफी किताबें भी लिखी जा चुकी हैं | मगर आधिकारिक तौर पर भारत सरकार अब तब प्लेन क्रैश में उनकी मौत हो जाने को ही मानती है तो हम भी अपनी बात वही तक सीमित रखते हैं |


     हमारे भारतीय समाज में त्याग करने वाले की सर्वथा स्वीकार्यता और सम्मान मिला है प्रभु श्री राम भी शायद इसी लिए पूजनीय हैं कि उन्होंने त्याग किया और जब अपनी पत्नी की सुरक्षा का प्रश्न आया तो सन्यासी होने के बावजूद भी युद्ध किया है और शक्तिशाली और अतातायी राक्षसों का अंत किया | ये गुण नेताजी में भी पल्लवित होते हैं | नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी कई त्याग किए जिसमें उनका आईसीएस जो आज के आईएएस के समान थी पास करने के बाद भी त्याग देना और देश सेवा में संलग्न होना या फिर कांग्रेस के अध्यक्ष पद का त्याग करना हो आदि और जब उन्हें लगा कि अपनी भारत माता की स्वतंत्रता अहिंसा के बल पर मिल पाना संभव नहीं है तो फिर युद्ध का मार्ग चुनते हुए अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लड़ने का निर्णय करना |


     सब को साथ लेकर परस्पर आपसी सहयोग की भावना का गुण और प्रेरणादायी विचारों के साथ जनसामान्य से संवाद स्थापित कर लेने का वो गुण ही था जिससे प्रवासी भारतीययों ने नेताजी की आईएनए को धन का दान दिया और 1944 के समय में भी उनकी आईएनए में रानी झींसी ब्रिगेड बनी | यह कुछ ऐसे गुण हैं जो शायद नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अलावा किसी समकालीन नेता में नही थे यह मै अपने अब तक के अध्ययन के आधार पर लिख रहा हूं यह हो सकता है कि मेरे अध्ययन का दायरा अभी बहुत छोटा हो या आप मुझसे सहमत ना हो मै आपकी असहमति को सहर्ष स्वीकार करता हूं |


Sunday, January 16, 2022

असंपादित सत्य 02 , क्या सनातनी मुसलमान या स्वदेशी मुसलमान जैसी कोई चीज होती है ? और ये अल्लाह का इस्लाम मुल्ला का इस्लाम क्या है ? आइए चर्चा करें |


     पिछले दो तीन साल से जब से मैने इसमें रुचि ली है मै टीवी डिबेट में या फिर सोशल मीडिया पर अक्सर कुछ शब्द पढ़ता एवं सुनता रहता हूं जैसे सनातनी मुसलमान ,  स्वदेशी मुसलमान या अल्लाह का इस्लाम मुल्ला का इस्लाम आदि | यह सारे शब्द या यह लेख पढ़कर शायद कुछ लोग असहज महसूस करें तो मेरी उनसे गुज़ारिश है कि वो ये लेख आगे न पढ़े और यदि आप भी इन शब्दों को लेकर स्पष्टता चाहते हैं तो आगे पढ़े | आपका स्वागत है |


     जब मैने इसके बारे में पढ़ना और रिसर्च करना प्रारंभ किया तो मुझे कुछ हैरान करने वाले तथ्य पता चले जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं क्योंकि मुझे लगता है कि आप को भी यह लगता होगा की शायद यह सारे शब्द वाकई इसलाम में या इसलामी दुनिया में अस्तित्व में होंगे मगर ऐसा कुछ भी नहीं है इन सारे शब्दों का वास्तविकता से दूर-दूर तक कोई संबंध नही है और ना ही इनकी कहीं कोई स्वीकार्यता है ये सारे शब्द कुछ लोगों ने अपने निजी स्वार्थ साधने के लिए बना रखें हैं और वो कौन लोग हैं मुझे लगता है कि आप भी ये जानते होंगे | इस लेख के माध्यम से मेरा मक़सद किसी के मन में किसी के लिए द्वेष पैदा करना नही है बल्कि सत्य को आगे लाना है |


     तो भगवान के लिए यह संशय अपने मन में मत रखिए , एक मुसलमान या तो मुसलमान है या नहीं है | अगर वह पैगम्बर साहब को पैगम्बर मानता है , अगर वह कुरान को पाक अल्ला की किताब मानता है तो वह मुसलमान है और अगर वह यह नही मानता तो वह मुसलमान नही है , इस्लाम और सारी इस्लामी दुनिया में यही स्वीकार्य है | और इसका कोई दुसरा विकल्प नहीं है |


     इस्लाम मे इंडोनेशियन मुसलमान , बांग्लादेशी मुसलमान , पाकिस्तानी मुसलमान जैसी कोई चीज नही होती और न ही इसाइ मुसलमान , यहूदी मुसलमान , सिख मुसलमान जैसी कोई चीज होती है तो ये सनातनी मुसलमान या स्वदेशी मुसलमान जैसी कोई चीज कैसे हो सकती है यह इस्लाम मे रहकर संभव ही नहीं है | और यदि आप इसकी सत्यता को स्वयं परखना चाहते हैं तो आप इसके लिए स्वतंत्र हैं |


     कृपया अल्लाह का इस्लाम मुल्ला का इस्लाम या फिर ये सनातनी मुसलमान या स्वदेशी मुसलमान इस तरह के भ्रम अपने मन एवं बुद्धि में न पाले | इस्लाम एक है और मुसलमान भी एक ही है जिसका सबसे बड़ा भुक्तभोगी हजार साल से भारत है | अब डिजिटल क्रांति की वजह से इस्लाम और मुसलमान को लेकर जो स्पष्टता भारत के सनातनीयों में आ रही है कृपया इसे फिर गुमराह ना करें | 


     सत्य को सत्य की तरह ही पढ़ना , लिखना , देखना , बोलना एवं समझना चाहिए और यदि हम ऐसा नही कर पा रहे हैं या किसी स्वार्थ के कारण ऐसा नही कर रहे हैं तो मुझे लगता है कि हम अपराध कर रहें हैं ना केवल अपने साथ अपितु अपने पूरे राष्ट्र के साथ |


Thursday, January 13, 2022

असंपादित सत्य 01 , भारत का नवीन नारीवाद और उसकी नारी |


     भारत एक ऐसा देश जो कृषि प्रधान तो है ही साथ ही साथ नारी प्रधान भी है | नारी प्रधान मै इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इस राष्ट्र के कोने-कोने में नारी के प्रभाव की छाप मिलती है , हिन्दू धर्म में नारी के हर रुप की पुजा की जाती है चाहे वह बेटी के रुप में हो या मां के रुप में | अगर यह अतिशयोक्ति न हो तो हर भारतीय के लिए भारत एक जमीन का टुकडा न होकर उसकी मातृभूमि है उसकी भारत माता है |


     जितना मेरा अध्ययन है महिलाओं को शोषण से बचाने और उनके सभी तरह के नागरिक और मानवीय अधिकारों की बात करना मूल रुप से नारीवाद माना जाता है | यू तो नारीवाद मूलत: पश्चिम की विचारधारा है क्योंकि उनके समाज में एक बहुत बड़े कालखण्ड में महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहा है और वह आज भी हो रहा है जैसे उदाहरण के लिए अनेक युरोपियम देशों में महिलाओं के साथ बलात्कार को सामान्य सी घटना समझा जाता है और इस पर आधुनिकीकरण का पर्दा डाले रखा गया है | 


     यदि हम भारत की बात करें तो प्राचीन भारत महिलाओं के अनेकों योगदानों से भरा पड़ा है जिसमें महिलाएं लेखन , शिक्षा , तपस्या , व्यापार , रक्षा , अनुसंधान , सेवा आदि हर क्षेत्र में उत्कर्ष पर रही हैं | मगर बीच के इसलामीक आक्रमण के कालखण्ड में महिलाओं के इस चेतना का हास हुआ जिसे आज के भारत में यह समझा जाने लगा है कि भारत सदैव से ऐसा ही था इसीलिए रेप इन देविस्तान जैसी बातें कही जाती हैं | आज के भारत में नारी की जो मूल समस्याए हैं वो है अच्छी शिक्षा , स्वास्थ्य , वित्तीय आत्मनिर्भरता , रोजगार के समान अवसर , जागरुकता आदि | मगर आज भारत की नारीवादी महिलाओं के लिए यह मुद्दे गौण हैं उनके लिए नारीवाद का मतलब हो गया है कपडे न पहनना या छोटे पहनना या बड़े पहनना , शादीशुदा होते हुए भी गैर मर्दों से संबंध बनाने की समाज में स्वीकार्यता लाना या चरमसुख की प्राप्ति के लिए अधिक से अधिक पुरुषों से संबंध बनाने की स्वीकार्यता पाना , पुरुषों की अंधी बराबरी करना आदि | 


     जिस देश की करोड़ों की आबादी गरीबी रेखा से नीचे हो जिनके पास दो वक्त का भोजन भी सरकार के अनुदान पर हो , महिलाओं में अशिक्षा , संवैधानिक और कानूनी जागरुकता का आभाव  , महिला आधारिक स्वास्थ्य सुविधाओं का आभाव हो उस देश की नारीवादी महिलाओं के ऐसे विषय न केवल हास्यास्पद हैं बल्कि भारतीय नारीवाद पर भी सवाल खड़े करते हैं | सबसे पहले तो यही की क्या भारत में नारीवाद सही पथ पर है? और क्या इसके विषय वास्तव में समस्त भारत की नारियों के लिए प्रासंगिक है? आदि |


     मुझे निजी तौर पर किसी भी नारीवादी महिला या पुरुष के किसी भी विचार से कोई आपत्ति नही है यह उनकी निजी प्राथमिकता हो सकती है और वह उन विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए स्वतंत्रत हैं | मेरा आशय समस्त भारतीय नारीवादी परिचर्चा से है जो स्वयं को नारी के बेहतरी के लिए सार्थक होना चाहता है |