Thursday, November 26, 2020

अप्रकाशित सत्य 13 , अनुच्छेद 44 क्या है ? समान सिविल संहिता क्या है ? भारत में समान सिविल संहिता लागु न हो पाने के क्या कारण है ? समान सिविल संहिता की विशेषताएं |

सिविल संहिता क्या होती है ?

     अनुच्छेद 44 को पुर्ण रुप सं समझने के पहले हमे यह समझना चाहिए की सिविल संहिता क्या होती है ? | सिविल संहिता कानुनों का एक ऐसा संग्रह है जिसमें पारिवारिक विवादों से जुडे़ मामले के निपटारे के लिए प्रबन्ध वर्णित किए जाते हैं | सिविल संहिता के तहत निम्न विवादों की स्थिति में न्यायालय में जाकर न्याय मांगा जा सकता है जैसे विवाह , तलाक , गुजाराभत्ता , बच्चा गोद लेना , अत्तराधिकार , भुमि विवाद आदि |

अनुच्छेद 44 क्या है ?

     अनुच्छेद 44 भारतीय संविधान के भाग 4 राज्य की नीति के निर्देशक तत्व में सम्मिलित 17 अनुच्छेदो में से एक है | यह अनुच्छेद राज्यों को एक निर्देश है | अनुच्छेद 44 के अनुसार 'राज्य , भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरीकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा' |

समान सिविल संहिता (UCC) क्या है ?

     समान नागरिक संहिता या समान सिविल संहिता कानुनों का एक ऐसा समुह है जो पुरे देश में रहने वाले नागरिको पर एक समान रुप से लागु होता है बिना किसी लिंग , मुलवंश , जाति , पंथ , सम्प्रदाय , भाषा , जन्म स्थान का विभेद किए हुए | समान नागरिक संहिता को एक आदर्श कानुन कहा जा सकता है जो पुरे देश के नागरिको को एक समान होने का एहसास दिलाता है |

भारत में समान सिविल संहिता लागु न हो पाने के क्या कारण है ? 

     भारत में सिविल मामलों के लिए विभिन्न सम्प्रदायों के लिए विभिन्न कानुन है जैसे हिन्दुओ के लिए जिसमे सिख , जैन तथा बौद्ध भी आते हैं हिन्दु कोड बिल है जिसमें चार कानुन हिन्दु मैरिज एक्ट 1655 , हिन्दु सक्सेशन एक्ट 1956 , हिन्दु मायनोरिटी एण्ड गार्जियनशिप एक्ट 1956 तथा हिन्दु एडप्सन एण्ड मेंटेनेंश एक्ट 1956 सामिल है इसके अलावा ईसाईयों के लिए क्रिश्चन मैरिज एक्ट 1872 , इंडियन डिबोस एक्ट 1869 , इंडियन सक्सेसन एक्ट 1925 तथा गार्जियन एवं वार्ड्स एक्ट 1890 है इसके अलावा पारसियों एवं यहुदियोॉं के लिए भी इसी तरह के अलग अलग कानुन हैं | साथ ही 1954 में लागु हुआ स्पेसल मैरिज एक्ट भी है जो अन्तर जातिय तथा अन्तर पंथिय विवाह को स्वीकार करता है एवं इनसे जुडे़ अन्य मामलों के लिए भी प्रावधान करता है |

     यहां गौर करने वाली बात यह है कि बाकी पंथों में तो फिर भी विवाह , तलाक , गुजाराभत्ते , गोद लेने तथा उत्तराधिकार को लेकर कानुन हैं मगर मुस्लिम पंथ में इनमें से किसी भी विषय पर कोई कानुन नही था जब तक की तिन तलाक को निषेध करने वाला कानुन केन्द्र सरकार ने पिछले वर्ष नही बनाया था | तो आप पुछेंगे कि अभी तक मुस्लिम परिवारों के इन विवादों का निपटारा कैसे होता आ रहा है तो इसका जबाब है शरीया कानुनों से जो मुस्लिमों का मजहबी कानुन है और यही वजह है कि अभी तक मुस्लिमों के लिए विवाह  , गोद लेने , गुजारा भत्ता , उत्तराधिकार को लेकर केन्द्रीय या राज्य के स्तर पर भी कोई कानुन नही हैं |

समान सिविल संहिता की विशेषताएं ?

समान सिविल संहिता की निम्न विशेषताए हो सकती हैं :-

1. यह महिलाओ को समान अधिकार पाने में मदद करेगा जैसे हम बात करें तो पुरे देश में यदि कोई हिन्दु , सिख , जैन , बौद्ध दुसरी शादी करता है तो उसे हिन्दु मैरिज एक्ट केे तहत सजा दिलायी जा सकती है कोई पारसी करता है तो उसे पारसी मैरिज एक्ट के तहत कोई ईसाई करता है तो उसे  ईसाई मैरिज एक्ट के तहत सजा दिलाई जा सकती है मगर यदि कोई मुस्लिम पुरुष दुसरा निकाह करता है तो उसकी पहली बेगम उसे चाह कर भी सजा नही दिला सकती क्योंकि उसके लिए कोई कानुन ही नही है |

2, समान सिविल संहिता सभी महिला एवं पुरुषों के हितों कि रक्षा करेगा जैसे यदि कोई हिन्दु महिला अपनी पैत्रीक सम्पत्ति में अधिकार पाना चाहे तो वह हिन्दु सक्सेसन एक्ट के तहत पा कसती है और अन्य पंथों कि महिलाए जैसे पारसी , ईसाई , यहुदी आदी मगर यहां भी एक मुस्लिम महिला को वह अधिकार नही मिलेगा क्योंकि इसके लिए भी कोई केन्द्रीय स्तर पर या राज्यों के स्तर पर कानुन नही है | 

3. समान सिविल संहिता पुख्ता तौर पर यह निश्चित करेगी की किसी भी महिला या पुरुष से उसके पंथ , लिंग , मुलवंश , जन्मस्थान , सम्प्रदाय तथा भाषा के आधार पर भेदभाव नही किया जाएगा जैसे की आज मुस्लिम महिलाओ के साथ हो रहा है कि दुसरे धर्मों की महिलाए तो दुसरी शादी करने पर अपने पतियों को सजा दिला सकती हैं पर मुस्लिम महिलाए नही दिला सकती चाहे उनका पति चार शादियां ही क्यों ना कर ले क्योंकि इसके लिए कोई कानुन ही नही है | 

     समान सिविल संहिता के पुरे देश में लागु न हो पाने की कई वजहो में से सबसे बडी़ वजह यह है कि हमारा देश भारत विभिन्नताओं का धनी देश है जहां हजारों बोलिया , रिति रिवाज , मान्यताए , उपासना पद्धतिया , सम्प्रदाए आदि है तो सब के लिए एक कानुन का समुह बनाना मुस्किल है तथा इससे भी ज्यादा मुस्किल इन कानुन को सभी का स्वीकार कर लेना है | समान सिविल संहिता को मध्यस्थ के रुप मे भी लाया जा सकता है | खैर अभी तो हम बस आशा ही कर सकते बै की हमारी सरकार जल्द से जल्द समान सिविल संहिता लेकर आए |


 

Sunday, November 22, 2020

अप्रकाशित सत्य 12 , संविधान का अनुच्छेद 30 क्या है ? , भारत में मदरसे और मिशनरी विद्यालय किस अनुच्छेद के तहत खुलते है ? , अनुच्छेद 30 कैसे है समानता के अधिकार के खिलाफ ? , आइए चर्चा करें |

 संविधान का अनुच्छेद 30 क्या है ?

     भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 में लागु होने के बाद से 395 अनुच्छेदों के साथ विश्व का सबसे बडा़ संविधान बना हुआ है | दुनियां के अन्य किसी देश के पास इतना बडा़ संविधान नही है | अनुच्छेद 30 हमारे भारत के इसी संविधान के भाग 3 मूल अधिकार के संस्कृति एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार में वर्णित 3 अनुच्छेदों में से एक है | इसका शिर्शक है 'शिक्षा संस्थाओं की स्थापना तथा प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार' |

क्या कहता है अनुच्छेद 30 ?

     अनुच्छेद 30 के खण्ड 1 के अनुसार 'धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों कों अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना एवं प्रशासन का अधिकार होगा' वही इसी खण्ड 1 (क) के अनुसार 'किसी भी अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा प्रशासित शिक्षा संस्थान की सम्पत्ति के अनिवार्य अर्जन के लिए उपबन्ध करने वाली विधि बनाते समय राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी सम्पत्ति के अर्जन के लिए ऐसी विधि द्वारा नियत या उसके अधीन अवधारित रकम इतनी ना हो की उस खंण्ड के अधिन प्रत्यभुत अधिकार निर्बन्धित या निराकृत न हो जाए' |

   इसी तरह खण्ड 2 के वर्णानुसार 'शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्थान के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नही करेगा की वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबन्ध में है' |

भारत में मदरसे और मिशनरी विद्यालय किस अनुच्छेद के तहत खुलते है ? 

     भारत में मदरसे और मिशनरी विद्यालय इसी अनुच्छेद 30 के तहत खुलते है क्योंकि हमारे भारत देश में कुल जनसंस्खया का लगभग 19 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय तथा 1 प्रतिशत ईसाई समुदाय अल्पसंख्यक वर्ग में आते है | यदि जनसंख्या के लिहाज से देखा जाए तो मुस्लिम समुदाय भारत का दुसरा सबसे बडा़ बहुसंख्यक समुदाय है जिनकी जनसंख्या लगभग 21-22 करोड़ के करीब है जो पुरे पाकिस्तान की जनसंख्या के बराबर है और वही दुसरी ओर भारत की सबसे छोटी अल्पसंख्यक आबादी पारसीयों की है जिनकी जनसंख्या लगभग 60-90 हजार के बिच में है | मगर आप तलाशेंगे तो पाएंगे की पुरे देश में पारसीयों के लिए विशेष शिक्षा संस्थान नाममात्र के हैं या नही हैं कम से कम मैने तो नही देखे मगर मदरसे और मिशनरी विद्यालय भारत के कोने कोने में हैं जबकी ईसाइयों की जनसंख्या भारत में 3 करों से ज्यादा है | 

अनुच्छेद 30 की आलोचनाएं

     अनुच्छेद 30 की कुछ निम्नलिखित आलोचनाएं हो सकती हैं :-

1. अनुच्छेद 30  हमारे संविधान के समानता के अधिकार अनुच्छेद 15 के खिलाफ हैं जिसमें लिखा गया है की धर्म , मूलवंश , जाति , लिंग या जन्मस्थान के आधार पर किसी से विभेद नही किया जाएगा |

2. यह किसी बहुसंख्यक व्यक्ति के अपने धर्म के बारे में उसे पढ़ाने से केवल इस आधार पर ही रोक देता है की वह बहुसंख्यक परिवार में जन्मा है तथा वह अपने धर्म को पढ़ाने के लिए किसी संस्थान को चला नही सकता है |

3. सन् 1976 के 42वे संविधान संसोधन के तहत हंमारे संविधान की प्रस्तावना में 'पंथनिरपेक्ष' शब्द लिख दिया गया है जिसका अर्थ यह होता है कि भारत राष्ट्र का कोई धर्म विशेष नही है तो फिर धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक कहां रह जाते हैं | और यदि राय्ट्र में संविधान के अनुसार कोई अल्पसंख्यक बहुसंख्यक नही है सब बराबर हैं तो फिर अलग से धार्मिक शिक्षण संस्थानों कि जरुरत कहां रह जाती है |

4. अनुच्छेद 30 में घर्म के साथ साथ भाषायी अल्पसंख्यकों का भी जिक्र है मगर पुरे भारत देश में भाषायी अल्पसंख्यकें के लिए शिक्षण संस्थान ना के बराबर हैं | उदाहरण स्वरुप बात करुं तो संस्कृत संविधान की आठवी अनुसूची में सामिल 22 भाषाओं मे से एक है इसके बोलने वालों कि संख्या पुरे देश में कुछ हजारों में होगी | संस्कृत भारत में बोली जाने वाली सबसे पुरानी भाषाओ मे से एक है पर आज इसे भारत में मृत भाषा कहा जाता है और इसके प्रचार प्रसार एवं संरक्षण के लिए पुरे देश में वर्तमान में कितने शिक्षण संस्थान हैं आप स्वयं पता कर लिजिए |


Sunday, November 15, 2020

अप्रकाशित सत्य 11 , क्या आप डॉक्टर भीमराव रामजी अंबेडकर के बारे में ये तथ्य जानते हैं ?


     क्या आप डॉ बी आर अंबेडकर का पुरा नाम डॉक्टर भीमराव रामजी अंबेडकर जानते हैं ? यदि हां तो आपको ये बात भी पता होगी की डॉ बी आर अंबेडकर को भारत रत्न 1990 में मरणोप्रांत दिया गया था जबकी भारत रत्न देने कि शुरुआत भारत सरकार ने 1954 में ही कर दी थी , है तो बहोत आश्चर्यजनक बात पर क्या कीजिएगा सियासत है |

     डॉ बी आर अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को जन्म स्थान महु , मध्यप्रदेश जो (Central Province , CP) के नाम से जाना जाता था गुलाम भारत में हुआ था | डॉ साहब का निधन 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में हुआ | पिता का नाम रामजी सकपाल तथा माता का नाम भीमा सकपाल था | परिवार रत्नागिरी के महार जाती का रहनेवाला था | डॉ बी आर अंबेडकर ने लगभग 32 डिग्रीयां धारण कीं , अंबेडकर साहब 14 भाई बहनों में सबसे छोटे थे | डॉ अंबेडकर के गुरु ब्राम्हण कृष्ण केशव अंबेडकर थे | गांव का नाम अंम्बदाबेकर था | डॉ अंबेडकर साब को 9 भाषाओं का ज्ञान था | 

      डॉ बी आर अंबेडकर की दो शादीयां हुई थी | पहली पत्नी का नाम रामाबाई 1906-1935 (निधन) तथा दुसरी पत्नी का नाम डॉ सविता अंबेडकर 1948 था | 1956 में डॉ अंबेडकर साहब ने बौद्ध धर्म अपना लिया था तथा इनके साथ साथ 5 लाख इनके समुदाय या दलित समुदाय के लोगों ने भी बौद्ध धर्म अपना लिया था | 1920 में कोल्हापुर के साहू महाराजा की सहायता से डॉ अंबेडकर साहब ने 'मुकनायक' नाम से साप्ताहीक अखबार प्रकाशित करना आरंभ किया | 1920 में ही बहिष्कृत हितकराणी सभा नाम के संगठन की स्थापना की | डॉ साहब ने अपनी आत्मकथा लिखी है 'वेटिंग फार अ विजा' नाम से , इसके अलावा भी कई अन्य किताबें लिखी हैं |

     डॉ अंबेडकर साहब ने 1946 में एक किताब लिखी जिसका नाम था 'ह्यु वर द शुद्रा' | के वी राव जी ने कहा था डॉ साहब संविधान के जनक एवं जननी दोनों हैं | 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा की प्रारुप समिति जिसमें 7 सदस्य थे के अध्यक् बनाए गए | थाट्स ऑन पाकिस्तान और रिडल्स ऑफ हिन्दूइज्म डॉ साहब की दो मशहूर किताबें हैं | डॉ अंबेडकर साहब ने तीनो गोलमेज सम्मेलनों में हिस्सा लिया था | 25 सितंबर 1932 को पुणे की यरवदा जेल में दलित आरक्षण को लेकर हॉ अंबेडकर साहब और गॉधीजी के बीच में पुना समझौता हुआ था जिस पर डॉ अंबेडकर और मदन मोहन मालविय के हस्ताक्षर हुए थे | डॉ अंबेडकर साहब भारत के पहले कानुन एवं न्याय मंत्री भी थे |

डॉ बी आर अंबेडकर ने भारत के बंटवारे भारत और पाकिस्तान उसमें मुस्लिमों तथा कॉग्रेस की भुमिका को लेकर कई कठोर सत्य लिखे है यही नही डॉ अंबेडकर ने गांधीजी को लेकर भी खुलकर बात की है जो उनकी किताबों साक्षात्कारों तथा लेखों में पढ़ने को मिलती है | डॉ बी आर अंबेडकर ने दर्जनभर से ज्यादा किताबें लिखी हैं | भारत में जाती प्रथा तथा हिन्दुत्व के विषय में भी अपनी कई किताबों में विस्तारपुर्वक चर्चा की है | मगर अाज के समय में भारत में डॉ बी आर अंबेडकर कि वह सच्ची बाते चर्चाओं तथा पठन पाठन में नही हैं जो उन्होने अपनी किताबों में कही हैं इसी का परिणाम है की कई राजनीतिक दलों ने उनके नाम को राजनीतिक स्वार्थ के लिए ध्रुवीकरण का जरिया बना रखा है |