Wednesday, November 8, 2023

निबंध , जाती जनगणना की हवामिठाई का सच |


आपने कभी न कभी हवामिठाई तो खायी ही होगी कुछ ऐसी ही वोट बैक की राजनीति का सबसे बड़ा और मजबूत आधार रही है जाती जनगणना की हवामिठाई यानी अंग्रेजी में कास्ट आइडैंटिटी और इस पूरे राजनीतिक परिदृश्य को अंग्रेजी में ही आइडैंटिटी पालिटिक्स कहा जाता है जो भारत में कोई नयी बात नहीं है यह भारत की पहली जनगणना से ही अंग्रेजों ने डिवाइड एण्ड रुल की नीति से हम पर थोप दी और जब तक वो भारत छोड़कर नही गए इसे करते रहे हालाकि स्वतंत्रता के बाद जाती जनगणना तो नहीं होती मगर सरकार तो इसका डाटा रखती ही है | मंडल कमीशन की रिपोर्ट के बाद से जाती की राजनीति का असल उदय समझना चाहिए क्योंकि उसी के बाद से स्पष्ट रुप से कुछ जातिगत राजनीति करने वाले दल अस्तित्व में आए कुछ ने स्वयं को समाजवादी कहा तो कुछ ने स्वयं को जनता का दल कहा तो कुछ ने स्वयं को बहुजन समाज से जोड़कर प्रस्तुत किया और यह मिला जुला सिलसिला चलता रहा | 


जाती जनगणना करवाने का जो प्रमुख मक़सद है वो ये कि सामाजिक और आर्थिक विकास की दौड़ में पीछे छूट गई जातीयो को देश के साथ विकास में जोड़ना और विकास के अवसर देना और आरक्षण इसी का परिणाम रहा है मगर अब यह अपने मूल अर्थ से पूर्ण रुप से भटक गया है | कारण यह है कि जिन अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ी जातियों को आरक्षण मिला है उसका एक तरफा लाभ अब मात्र उन्हीं जातियों के लोगों को मिल रहा है जिन्हें इसका लाभ लंबे समय से मिलता आ रहा है और बहुत हद तक इन्ही कुछ जातियों ने जिनकी संख्या ज्यादा है उन्होंने ही इस पूरे आरक्षण पर एकाधिकार कर रखा है चाहे इसमें आप अनुसूचित जातियों की बात करें अनुसूचित जनजातियों की बात करें या फिर पिछड़ी जातियों की | हर वर्ग की वही दशा है | 


यदि सही अर्थों में आरक्षण को सर्वाधिक उपयोगी बनाना है तो आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए जो अब इकोनामिक बिकर सेक्शन यानी ईडब्लुएस के रुप में सवर्ण वर्ग को मिल रहा है लेकिन यह भी कुछ समय के बाद कुछ ही सवर्ण जातियों तक सीमित रह जाएगा आप देख लीजिए गा , वजह यही है कि एक बार हमारे देश में किसी जाति या वर्ग को आरक्षण देने के बाद फिर उसकी अवस्था तथा आरक्षण से प्राप्त लाभों का कोई मुआयना नही किया जाता और इसका नतिजा यह निकलता है की एक पूरे वर्ग को मिला आरक्षण कुछ मजबूत जातियों तक ही सीमित होकर रह जाता है और वोट बैक खोने का सरकारों और राजनीतिक पार्टियों में ऐसा डर है कि इसका आकलन करना तो छोड़ीए आकलन करने की बात कहने तक की हिम्मत किसी में नही है फिर चाहे वो सत्ताधारी पक्ष हो या विपक्ष | 


यदि जातिगत आरक्षण का आकलन किया जाए तो सत्य खुद ब खुद सबके सामने आजाएगा कि जिस आरक्षण को प्राप्त करने के लिए आंदोलन किए जाते हैं जाती को आरक्षण देने की बात करने वाली पार्टी तथा नेताओं को अपना वोट देते हैं वो आरक्षण वास्तव में आपके जीवन पर कोई फर्क डालता भी है कि बस हवामिठाई ही है | अब आने वाले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर फिर से बिहार सरकार ने जाति जनगणना करवाई है और आरक्षण की तय सीमा को बढ़ाकर 75% कर सकते हैं साथ ही कुछ और भी गैर भाजपा शासित राज्यों ने इसे कराने की बात कही है खासकर जिनमें अभी चुनाव प्रकिया चल रही है मगर चाहे किसी राज्य मे जातिगत जनगणना हो या देश के स्तर पर सवाल अब भी वही है कि इसका लाभ किसे मिले यह कौन सुनिश्चित करेगा और किन जातियों को अब इसकी जरुरत नहीं है यह कौन तय करेगा ? प्रश्न बड़ा है और मैं चाहूंगा की आप स्वयं इसका उत्तर तलाश करें | 


अंत में सबसे जरुरी बात यह की अपना वोट बैक साध रहे इन नेताओं को क्या इस बात का अंदाजा भी है कि जाति जनगणना के बाद अगर हर जाती आरक्षण की मांग करने लगे और अपनी मांग को लेकर आंदोलनरत हो जाए तो इससे देश में किस तरह का माहौल निर्मित होगा और फिर ऐसे हालात में क्या देश का भाईचारा सुरक्षित रह पाएगा | असल में मेरे अनुसार जाति जनगणना का दाव विशुद्ध रूप से राज्यों के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में वोट बैक को साधने का एक हथकंडा मात्र प्रतीत होता है और कुछ भी नहीं | 

Tuesday, January 24, 2023

निबंध, मतदान हर भारतीय नागरीक का प्रथम कर्तव्य है |


प्रस्तावना - 26 जनवरी 1950 को जब भारत का संविधान पूर्ण रुप से सम्पूर्ण देश में अमल में आया तो विश्व के सामने भारतीय लोकतंत्र का एक नवीन उदाहरण प्रस्तुत हुआ | हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत के प्रत्येक नागरीक को एक समान रुप से बीना लिंग , समुदाय , जाति या पंथ का भेद किए अपना मत देने का अधिकार प्रदान किया , यह अधिकार हमारे संविधान का वह उपहार है जो यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्र एवं राज्य के सम्मुख प्रत्येक नागरीक एक समान है और उसके दिए मत का मूल्य भी एक समान ही है तथा वह देश एवं राज्य के प्रतिनिधियों को चुनने का हक एक समान ही रखता है जिसे उससे कोई नही ले सकता है |


लोकतंत्र में मतदान का योगदान - दुनिया ने बहुत लंबे दौर तक राजशाही देखी थी तथा इसी का क्रुर रुप तानाशाही भी अपने भयावह परिणाम दिखा चूका था और इसकी मूल वजह एक ही थी कि सत्ता पर बैठने वाला व्यक्ति किसी के प्रति उत्तरदायी नही था बस यहीं से लोकतंत्र का जन्म हुआ | प्राचीन रुप में लोकतंत्र भारतीय विचार है जिसकी रुपरेखा बहुत कुछ कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलती है पर लोकतंत्र का नवीन व वर्तमान स्वरुप यूरोप में विकसित हुआ | नवीन लोकतंत्र में सत्ता पर बैठने वाला व्यक्ति पूर्ण रुप से जनता के प्रति उत्तरदायी होगा जिसका चुनाव जनता ही करेगी और यदि वह अपने दायित्व का निर्वाह सफलतापूर्वक नही कर पाता तो जनता ही उसे मतदान के माध्यम से सत्तामुक्त भी कर देगी | अत: अब सत्ता विरासत में नही बल्कि बहुमत से मिलने लगी यहि कारण है कि लोकतंत्र में मतदान ही वह एकमात्र तरिका है जो लोकतंत्र को बचाएं रख सकता है |


मतदान का अधिकार किसे है - भारत में रहने वाला हर वह व्यक्ति जो 18 वर्ष की आयु पुर्ण कर चूका है भारत में वोट डाल सकता है | मतदान करने के लिए उसके पास मतदाता पहचान पत्र होना अनिवार्य है | यदि भारत में कोई युवा 18 वर्ष की आयु पुर्ण कर चूका है तो उसे अपना नाम निर्वाचन नामावली में जुड़वाना होता है वह इस कार्य के लिए निर्वाचन आयोग में ऑफलाइन या अब ऑनलाइन भी आवेदन कर सकता है तथा उसका नाम जुड़ने के पश्चात उसे मतदाता पहचान पत्र प्रदान कर दिया जाता है |


भारतीय लोकतंत्र में मतदान - भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है | भारत में प्रत्येक पांच वर्ष में चुनाव कराया जाना अनिवार्य है , भारत निर्वाचन आयोग भारत में लोकसभा , राज्यसभा , राष्ट्रपति , उपराष्ट्रपति तथा विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव कराने के लिए उत्तरदायी है तथा राज्यों में स्थित राज्य निर्वाचन आयोग त्रिस्तरीय नगरपालिकाओं तथा पंचायतों का चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार है | जब भी देश में या राज्य मे कोई चुनाव होता है तो देश का नागरीक अपने संबंधित क्षेत्र में वोट डाल सकता है |


मतदान करना क्यों आवश्यक है - भारत देश जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र में प्रतिनिधियों का चुनाव वोटिंग के माध्यम से होता है और एक बार चुनकर आया प्रतिनिधि पांच वर्ष के लिए प्रभावी रहता है | जब भी हमारे राज्य के विधानमण्डल या फिर देश में लोकसभा के सदस्यों का चुनाव होता है तो हमे अपने क्षेत्र के विधायक या सांसद को चुनने का अवसर वोट के माध्यम से होता है और हमे इस अवसर का सदुपयोग बढ़-चढ़ कर करना चाहिए जिससे क्षेत्र को एक उत्तम प्रतिनिधित्व मिल सके जो क्षेत्र और देश के विकास में सकारात्मक योगदान दे सके |


मतदाता के मूल कर्तव्य - जब भी भारत में चुनाव संपन्न हो जाता है तो चुनाव आयोग वोटिंग का प्रतिशत जारी करता है इससे यह पता चलता है कि देश में कितने वोटर हैं और कितने लोगों ने अपने वोट देने के अधिकार का प्रयोग किया और यह बहुत ही चिंतनीय विषय है की यह प्रतिशत कभी भी 100 प्रतिशत नही होता | तात्पर्य यह कि कभी भी पूरे वोटरों ने अपने अधिकार का प्रयोग नही किया जो कि किसी भी लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है | देश के हर वोटर को वोट डालने को अपना मौलिक कर्तव्य समझना चाहिए तथा लोकतंत्र में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए | 


लोकतंत्र में एक जागरुक मतदाता का महत्व - जब राज्य मे या देश में किसी भी चुनाव का विभिन्न दल अपने उम्मीदवारों का प्रचार प्रसार करते हैं तो यह देखा जाता है की बहुत से दल वोटर को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देते हैं तथा धर्म एवं जाति के मुद्दे को उठाकर मतदाता को बरगलाने का प्रयास करते हैं मगर एक जागरुक वोटर ना तो किसी तरह के लालच में आता है और ना ही जाति , पंथ एवं भाईभतिजावाद जैसे अनरगल प्रयोजनों में फंसता है तथा वह निष्पक्ष एवं तटस्थ रहकर अपने वोट का प्रयोग करता है एवं एक योग्य कर्मठ एवं प्रभावशाली उम्मीदवार का चयन करता है | सही मायने में एक जागरुक मतदाता ही एक स्वस्थ एवं मजबूत लोकतंत्र का आधार स्तंभ है |


उपसंहार - लोकतांत्रिक ढांचे में मतदान का योगदान सर्वोपरि है और मतदाता ही इसका रक्षक है | प्रत्येक वोटर का यह प्रथम कर्तव्य है कि वह मतदान करे | भारत में भारत का प्रत्येक नागरीक मतदान करने का अधिकार है और वह इसका प्रयोग निर्बाधरूप से कर सकता है | हर वोटर को प्रत्येक चुनाव में पुरी गरिमा एवं जागरुकता के साथ मतदान करने को राष्ट्र के प्रति अपना प्रथम कर्तव्य समझते हुए मतदान करना चाहिए |


Saturday, October 29, 2022

असंपादित सत्य 06 , धर्म ग्रंथों के भिन्नतापूर्ण अनुवादों से उत्पन्न हुई भ्रम की स्थिति पर एक परिचर्चा |


    कुछ दिनों पहले मैने पुरी श्रीमद्भगवत् गीता पढ़ी और अब भागवत पुराण पढ़ रहा हूं | पढ़ने के दौरान कुछ श्लोकों का हिन्दी अनुवाद मैं ने इंटरनेट पर देखा तो कुछ अनुवाद मैं जो पुस्तक पढ़ रहा था उससे थोड़े अलग मिले और जब मैने विडियोज देखे तो उनमें भी कुछ हद तक यही मिला | यही वजह है कि कहीं-कहीं भ्रम की सी स्थिति उत्पन्न हो गयी | पर ज्यादा ढूढ़ने पर स्थिति साफ हो गयी | फिर तो बस एक सिलसिले की तरह युट्युब पर डिबेट देखने लगा तब जाकर पता चला कि इस स्थिति ने तो भयावह रुप ले लिया है और ये स्थिति केवल विधर्मीयों की ही नही है समधर्मीयों की भी है | जिस पर मुझे लगता है कि एक विस्तृत परिचर्चा की जरुरत है | इसके लिए मेरे मत में इन तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए |


     हमारे कुछ धार्मिक ग्रंथों के बारे में कहा जाता है की वो लगभग 6000 BCE से भी ज्यादा पुराने हैं और इस बात पर गौर करें के ऐसा कहा जाता है इसकी असली डेट क्या है ये किसी को पता नहीं है और ये डेट्स भी संवतों के अनुसार अलग-अलग मानी जाती है | जैसे युधिष्ठिर संवत के अनुसार लगभग 8000 BCE विक्रम संवत के अनुसार 6000 BCE शक संवत के अनुसार 5000 से 4000 BCE शकांत संवत के अनुसार 3000 से 2500 BCE | वर्तमान की हमारी जो इतिहास की किताबें हैं उनमें ऐतिहासिक घटनाओं की जो डेटींग यानी की कालक्रम है वह शकांत संवत के अनुसार हैं जिसे शक संवत समझा जाता है ऐसा कुछ इतिहासकारों का मत हैं | इससे भी कालक्रम में बहुत सी अनियमितताए उत्पन्न हुई होंगी माना जा सकता है |


     अब हम यदि सबसे आखिर का संवत ले तो भी ये ग्रंथ आज के हिसाब से 5000 से लेकर 4500 साल पुराने हैं | अब हम अगर इनके अनुवाद की बात करें तो हमे समझना चाहिए कि इनका इन 4-5 हजार सालों में अब तक हजारों बार ट्रांसलेशन यानी की अनुवाद हुआ होगा और हमे इस तथ्य पर भी ध्यान देना चाहिए की किसी भाषा को जैसी वो आज हमारे समय में हैं वैसी होने में हजारों वर्ष का समय लगा है | जैसे मैं अपनी बात हिन्दी भाषा का उदाहरण देकर ही समझाना चाहूंगा | प्रारंभ में जो हिन्दी थी करीब 1000 वर्ष पूर्व वो प्राकृत के नाम से जानी जाती है आज इतिहास में , फिर यही आगे चलकर देशभाषा हुई , पिंगल हुई , सधुक्कडी़ हुई तब कही जाकर आज इस स्वरुप में हम तक पहुच पाई है | तो बदलाव के 1000 वर्षों में भी इन सभी परिवर्तित भाषा कालखण्डो में भी अनुवाद आदी कार्य होते रहें हैं | तो यह सब बदलाब भी आज सम्मिलित हो गए हैं | 


     जैसा की हम सब जानते हैं कि भारतवर्ष पर पिछले 2-3 हजार वर्ष से बाहरी आक्रमण होते रहे हैं और हमारे बहुत से मंदिर एवं विश्वविद्यालय बर्बर आक्रांताओं द्वारा तोड़ दिए गए हैं आग के हवाले कर दिए गए हैं जिसमें सहेज कर रखा गया हमारे पूर्वजों का हजारों साल का ज्ञान नष्ट कर दिया गया है | जिसमें नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास हम सब को पता है जिसे जब आक्रांता बख्तियार खिलजी ने आग लगा कर जलाया तो उसमें 30 लाख फस्ट हैड बुक यानी की जिनकी प्रतिलिपि नही है थी जिन्हें पुरा जलने में तीन माह का समय लगा था | तो इन सब में भी हमने अपमे बहुत से अनमोल ग्रंथ खोए हैं या आज जिनके कुछ भाग मिले हैं उनके कुछ भाग खो दिए हैं , हमें यह भी ध्यान में रखना होगा | 


     पर सबसे महत्वपूर्ण ये बात है जिसे अनदेखा नही करना चाहिए कि आज कल ही किसी एक ग्रंथ की ही किसी एक भाषा में सैकड़ों अनुवादकों का कार्य उपलब्ध है | तो किसी एक अनुवादक का अनुवाद लेकर फिर इस तरह की डिबेट करना मुझे तो पानी में लाठी पीटने जैसा ही लगता है |