जब से स्त्री विमर्श प्रारंभ हुआ है तब से हर स्त्री विमर्श चिंतक ने यही प्रयास किया है कि किस तरह से समाज में चली आ रही रुढ़िवादी सोच को बदला जाए और नारी को सम्मान तथा समानता के महत्व को स्थापित किया जाए एवं नारी जाति को उसका अधिकार दिलाया जाए और वर्तमान में देश में केन्द्र तथा राज्यों कि सरकारों द्वारा प्रदत्त महिला आरक्षण इसी का फल है और कई तरह के कानूनी अधिकार जैसे तलाक के बाद पति से भरण पोषण का अधिकार इसी का हिस्सा है मगर अब ये आधुनिक स्त्री विमर्ष में किस तरह का पागलपन है माफ करिएगा मेरे पास इससे उपयुक्त कोई शब्द नहीं है इसे लिखने के लिए की एक स्त्री अगर कमाती है तो उस पर पुरा हक मात्र उस स्त्री का होना चाहिए क्या आज तक किसी पुरुष ने ये कहा है कि मैं जो कमाता हूं वो तो पुरुष धन है वो सब का सब मेरा होना चाहिए?, नही उसकी कमाई पर तो पत्नी का हक है, बच्चों का हक है, मां बाप का हक है, तो धर में यदि कोई स्त्री कमाती है तब भी पुरे परिवार का हक क्यों नहीं होना चाहिए।
अब मैं जानता हूं कि इस पर कुछ लोग तर्क देंगे कि ये तो समाज हमेशा पुरुषवादी रहा स्त्रियां उपेक्षित रहीं शोषित रही तो स्त्री धन होना चाहिए और परिवार चलाना पुरुष की जिम्मेदारी है ,तो इस पर मेरा एक सीधा सा प्रश्न है कि क्या परिवार केवल पुरुष का ही होता है स्त्री की उसमें कोई जिम्मेदारी नहीं?, क्या वो अपने बच्चों की मां नहीं है?, क्या पति के मां बाप उसके लिए कोई नही?, जब परिवार दोनों का है तो जिम्मेदारियां भी दोनों की होनी चाहिए। स्त्री पुरुष एक समान हैं समाज मे इसी को स्थापित करने कि आवयश्कता है ना।
पति-पत्नी को गाड़ी के दो पहियों की संज्ञा दी जाती है और दोनों संतुलित रहकर ही परिवार की गाड़ी को चलाते हैं तो फिर एक पहिया एक तरफा अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त कैसे हो सकता है क्या इससे जीवन रुपी गाड़ी चल पाएगी, एकदम नहीं। मेरा मानना है कि आधुनिक स्त्री विमर्श को संशोधित करते हुए स्त्री धन के लक्ष्यों को पुरी तरह से समावेशी और जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए ताकि समाज और परिवार में समानता के मुल्कों को स्थापित किया जा सके।
स्त्री धन समाज में एक नए तरह की असमानता है जो परिवार को बनाएं रखने का सारा बोझ अकेले पुरुष के कंधे पर लाद देता है। स्त्री विमर्श पर बात करने वाली हर एक स्त्री को ये ध्यान रखना चाहिए कि यदि आप समाज में समानता चाहती हैं तो आपको अपने समानान्तर एक असमानता का विचार लेकर नही चलना चाहिए।
स्त्री धन का पुरा विचार ही मुलरुप से असमानता का पर्याय है और यही कारण है कि जब भी कोई पारिवारिक स्त्री चाहे वो कितनी भी शिक्षित हो और चाहे उसका जीवनसाथी कितना भी अधिक धन अर्जित करता हो या कितने भी प्रगतिशील विचारों वाला हो वो स्त्री धन के एकाधिकार से जनित असमानता को सह नही पाता और फिर वो परिवार बिखर जाता है। स्त्रियां को ये स्वीकार करना चाहिए कि स्त्री धन उनका एकाधिकार नही हो सकता जिस तरह से पुरुष धन जैसा कोई विचार समाज में नही है। स्त्री विमर्श को आगे लेकर चलने वाले सभी को यह स्वीकार करना होगा कि समानता कि बात असमानता का पक्षधर होकर नही की जा सकती।
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