क्या मध्यप्रदेश की मोहन यादव सरकार के द्वारा ओबीसी आरक्षण के लिए उच्चतम न्यायालय में पैरवी करने से भाजपा को बिहार के विधानसभा चुनाव में कोई बड़ा नुक्सान हो सकता है या फिर इसका कोई लाभ हो सकता है इस पर चर्चा होनी चाहिए। कुछ सवर्ण बुद्धजीवी ऐसा कह रहे हैं कि इसका नुकसान होगा भाजपा को और दुसरे पक्ष यानी ओबीसी समाज के चिंतक लाभ होना बता रहे हैं मेरा मानना है इसका प्रभाव बहुत सीमित होगा चाहे भाजपा के पक्ष मे हो या खिलाफ हो।
मैं इन बुद्धिजीवियों से असहमत होते हुए ये कहता हूं कि बिहार का चुनाव समीप है तो आप ऐसा कह सकतें हैं लेकिन बाकि और कहीं अगर फायदा नहीं होगा तो नुकसान नहीं होगा।
2026 की जनगणना और 2027 का परिसीमन ध्यान में हैं बीजेपी के शायद और कहीं न कहीं संघ को भी होगा ही। 2024 के लोकसभा चुनावा परिणामों से विशेष समुदाय के वोट बैक का भ्रम टूट गया है। भाजपा को यह यकिन हो गया है लगता कि 2029 का लोकसभा चुनाव सवर्ण वोटबैंक का भ्रम भी तोड़ देगा और तब तो 33% महिला आरक्षण भी होगा और सभी वर्गों की महिलाओं के लिए होगा। परिसीमन के बाद लोकसभा और विधानसभा साथ ही राज्यसभा कि सदस्य संख्या बढ़ना तय है और यह एससी एसटी वर्ग में तो बढ़ेगी ही साथ ही ओबीसी प्रभावित क्षेत्रों में भी बढ़ेगी तो जो भी दल इन क्षैत्रो कि जनसंख्या को साध पाएगा वही सत्ता पर काबिज होगा और अगर ऐसे मे यदि भाजपा अब भी सवर्ण वोटबैंक के दबाव मे आकर ओबीसी समाज के मांगों और भावनाओं कि उपेक्षा करती है तो यह राजनीतिक रुप से आत्मघाती हो सकता है और यह भी ध्यान मे रखना चाहिए कि केंद्र सरकार ने स्वयं जाती जनगणना कराने को स्वीकार किया है।
मोहन यादव कैबिनेट तीन बच्चों को स्वीकार्यता देने वाली है मध्यप्रदेश में और यही बात संघ प्रमुख ने पिछले दिनों कही थी तो ये तालमेल कैसे बन रहा है ये भी पुछा जाना चाहिए। ताली एक ही हाथ से बज रही हैं या दोनों हाथों से ये भी पुछा जाना चाहिए। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा खुद को और अपने वोटबैंक को विविधता प्रदान करने का प्रयास कर रही है और मेरा मानना है कि यह बहुत ही उत्तम है हर लिहाज से चाहे राजनीतिक रुप से हो या सामाजिक रुप से यदि आप लगातार सत्ता में बने रहना चाहते हैं तो।
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