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सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

लेख - स्वयं सम्पादकीय 04, सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की चाहत और डॉ भीमराव अम्बेडकर के नाम का दुरुपयोग और भारतीय राजनीति पर एक आलोचना।

 

        डॉ अंबेडकर साहब ने खुद एक जगह कहा है कि संविधान बनाने का पुरा श्रेय मेरा नही है इसमे बीएन राव की महत्वपूर्ण भूमिका है और जब संविधान बनकर तैयार हो गया था तब संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने डॉ अम्बेडकर का विशेष धन्यवाद किया था संविधान निर्माण मे उनके अहम योगदान के लिए यह भी तध्य है जिसे कोई नकार नहीं सकता। बाबा साहब डॉ अंबेडकर के नाम की राजनीति करने वालों ने इनका स्तर इतना नीचे गिरा दिया है कि हर ऐरा गैरा उनकी आलोचना करने लगा या स्पष्ट कहें तो अपशब्द कहने लगा है सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए। 


     बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर जितना खुला और बेबाक सच बोलने वाला व्यक्ति आधुनिक भारत के इतिहास में उनके अलावा दुसरा नहीं मिलेगा ये बात मैं पुरे विश्वास से कह सकता हूं। बाबा साहब डॉ अंबेडकर ने जो भी सोचा उसे लिखा और बोला चाहे वो गांधी को लेकर हो, दलितों को लेकर हो,मुसलमानों को लेकर हो, हिन्दू धर्म छोड़ने और बौद्ध धर्म अपनाने को लेकर हो या भारत के विभाजन को लेकर हो। 


     हर बार जब भी कोई हिन्दू धर्म को लेकर विवाद होता है तो तुरंत ये कहा जाता है कि डॉ भीमराव अंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई थी लेकिन कोई ये नहीं बताता की जब 1953-54 में हिन्दू कोड बिल लाया गया था तो इसके विरोध में बाबा साहब अंबेडकर ने कैबिनेट छोड़ दिया था क्योंकि उनका मानना था कि सुधारों की जरुरत हर समाज में है मुसलमानों में भी, लेकिन हिन्दू कोड बिल केवल हिन्दुओं के लिए लाया जा रहा है और इसे पारित भी नही करवाया जा सका। यही नहीं बाबा साहब अंबेडकर ने एक जगह यह भी कहा है कि उन्हें संस्कृत पढ़ने में महारत नही है लेकिन वह पढ़ सकते हैं उन्होंने जो अपनी किताबें लिखी है या जितना हिन्दू धर्म को समझा है वो अंग्रेजी के अनुवादों के अनुसार भी समझा है और इसके बारे मे लिखा और पढ़ा जा सकता है। 


     संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़ने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था बाबा साहब ने। कुछ ही दिनों के बाद जो संविधान बना था उससे बाबा साहब स्वयं नाखुश हो गए थे और इसकी आलोचना की थी। 32 डिग्रियां हासिल करने वाला और 12 से अधिक किताबों की रचना करने वाला विलक्षण और बहुमुखी प्रतिभा का धनी वो भारत रत्न महापुरुष कुछ राजनैतिक स्वार्थों के लालची नेताओं के कारण इन अनायास आलोचना का शिकार हो रहा है। 


     जो भी लोग डॉ भीमराव अंबेडकर को लेकर कोई धारणा बना रहे हैं या कोई आलोचना कर रहे हैं या फिर उन्हें समझना चाहते हैं तो मेरा उनसे विनम्रता से आग्रह है कि पहले अच्छी तरह से डॉ भीमराव अंबेडकर को पढ़िए और फिर कोई धारणा बनाइये अब तो उनका पुरा कलेक्टिव वर्क हिन्दी अंग्रेजी समेत कई भाषाओं में उपलब्ध है और वो भी नहीं कर पा रहे हैं तो चैटजीपीटी से पुछ लिजिए।

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025

लेख - स्वयं सम्पादकीय 03, मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण को बढ़ाने का मुद्दा बिहार चुनाव और सवर्ण वोटबैंक की नाराज़गी का डर के हर पहलू पर एक चर्चा।


क्या मध्यप्रदेश की मोहन यादव सरकार के द्वारा ओबीसी आरक्षण के लिए उच्चतम न्यायालय में पैरवी करने से भाजपा को बिहार के विधानसभा चुनाव में कोई बड़ा नुक्सान हो सकता है या फिर इसका कोई लाभ हो सकता है इस पर चर्चा होनी चाहिए। कुछ सवर्ण बुद्धजीवी ऐसा कह रहे हैं कि इसका नुकसान होगा भाजपा को और दुसरे पक्ष यानी ओबीसी समाज के चिंतक लाभ होना बता रहे हैं मेरा मानना है इसका प्रभाव बहुत सीमित होगा चाहे भाजपा के पक्ष मे हो या खिलाफ हो। 


मैं इन बुद्धिजीवियों से असहमत होते हुए ये कहता हूं कि बिहार का चुनाव समीप है तो आप ऐसा कह सकतें हैं लेकिन बाकि और कहीं अगर फायदा नहीं होगा तो नुकसान नहीं होगा। 


2026 की जनगणना और 2027 का परिसीमन ध्यान में हैं बीजेपी के शायद और कहीं न कहीं संघ को भी होगा ही। 2024 के लोकसभा चुनावा परिणामों से विशेष समुदाय के वोट बैक का भ्रम टूट गया है। भाजपा को यह यकिन हो गया है लगता कि 2029 का लोकसभा चुनाव सवर्ण वोटबैंक का भ्रम भी तोड़ देगा और तब तो 33% महिला आरक्षण भी होगा और सभी वर्गों की महिलाओं के लिए होगा। परिसीमन के बाद लोकसभा और विधानसभा साथ ही राज्यसभा कि सदस्य संख्या बढ़ना तय है और यह एससी एसटी वर्ग में तो बढ़ेगी ही साथ ही ओबीसी प्रभावित क्षेत्रों में भी बढ़ेगी तो जो भी दल इन क्षैत्रो कि जनसंख्या को साध पाएगा वही सत्ता पर काबिज होगा और अगर ऐसे मे यदि भाजपा अब भी सवर्ण वोटबैंक के दबाव मे आकर ओबीसी समाज के मांगों और भावनाओं कि उपेक्षा करती है तो यह राजनीतिक रुप से आत्मघाती हो सकता है और यह भी ध्यान मे रखना चाहिए कि केंद्र सरकार ने स्वयं जाती जनगणना कराने को स्वीकार किया है। 


मोहन यादव कैबिनेट तीन बच्चों को स्वीकार्यता देने वाली है मध्यप्रदेश में और यही बात संघ प्रमुख ने पिछले दिनों कही थी तो ये तालमेल कैसे बन रहा है ये भी पुछा जाना चाहिए। ताली एक ही हाथ से बज रही हैं या दोनों हाथों से ये भी पुछा जाना चाहिए। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा खुद को और अपने वोटबैंक को विविधता प्रदान करने का प्रयास कर रही है और मेरा मानना है कि यह बहुत ही उत्तम है हर लिहाज से चाहे राजनीतिक रुप से हो या सामाजिक रुप से यदि आप लगातार सत्ता में बने रहना चाहते हैं तो।

सोमवार, 6 अक्टूबर 2025

लेख - स्वयं सम्पादकीय 02, ओबीसी आरक्षण को बढ़ाने का प्रयास सवर्णों के एक वर्ग कि नाराजगी और मध्यप्रदेश की मोहन यादव सरकार के मध्य बने त्रिकोण का विष्लेषण।

     कुछ दिनों से मध्यप्रदेश में ओबीसी समाज के आरक्षण को बढ़ाने के लिए किए जाने वाले प्रयास के तहत मध्यप्रदेश सरकार के द्वारा उच्चतम न्यायालय में पेश किये गए हलफनामे के बाद सोशल मीडिया पर कुछ सवर्ण बुद्धजीवी ने भाजपा को 2019 में सवर्ण रोष के कारण हार का सामना करना पड़ा था ऐसा लिख रहे हैं तो मैं उन्हें एक सच से अवगत कराना चाहता हूं की 2019 में बीजेपी 5-7% सवर्णों के रोष के कारण नहीं हारी थी बल्कि कांग्रेस पार्टी और कमलनाथ के किसानों के कर्ज माफ और बिजली का बिल माफ के वादे पर जीती थी और जो वादा कमलनाथ ने पुरा किया था जमीनी स्तर पर भी वो अमल में आया था तो गलतफहमी नही पालनी चाहिए खासकर मध्यप्रदेश को लेकर। और हां 2019 में भाजपा राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी हारी थी तो वहा कौन से आरक्षण को लेकर सवर्ण नाराज़ थे। 


    अब यही स्वघोषित सवर्ण भाजपा हितैषी जिस ओबीसी महासभा को एकदम से कांग्रेस समर्थक कह दे रहें हैं उसी ओबीसी महासभा ने पुरे राज्य में 2014 में और उसके बाद सभी लोकसभा चुनावों में मोदीजी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए हजारों ब्लाक स्तर की सभाएं की हैं और 2024 के परिणाम आपके सामने हैं मध्यप्रदेश कि 29 की 29 लोकसभा सीटें भाजपा ने जीती। और एक तथ्य शिवराज सिंह चौहान लगातार मध्यप्रदेश में इसलिए भी जितते रहे क्योंकि मध्यप्रदेश में वो स्वयं को ओबीसी समाज का हितैषी ऐसा जताते रहे थे और मध्यप्रदेश के लोग दिग्विजय सिंह के कुप्रसासन और उनके समर्थकों के अत्याचारों से त्रस्त थे और दिग्विजय सिंह सवर्ण हैं मुझे लगता है मुझे ये बतानें कि आवयश्कता नही है।  गुजरात में मोदीजी को भी तथ्य में रखना चाहिए वो भी गुजरात में लगातार जीतते रहे ओबीसी समाज से आते हैं। 


    पता नही हर सवर्ण बुद्धजीवी और चिंतकों को ये भ्रम या कहें कि अहंकार क्यों हों जाता है कि हम नहीं तों भाजपा कुछ नहीं। यहां मैं लिखना नहीं चाह रहा था लेकिन जब मैंने इन बुद्धिजीवियों से भाजपा के 2019 का मध्यप्रदेश का चुनाव हारने का कारण सवर्ण रोष बताते हुए पढ़ा तो मुझे लगा मुझे सच्चाई लिखनी चाहिए। एक तथ्य और इन बुद्धिजीवियों को नहीं भुलना चाहिए कि 2014 से पहले भाजपा को ब्राह्मण बनिया पार्टी कहा जाता था और उससे पहले जब केन्द्र सरकार में थे तो कितनी सीटों के साथ थे ये हम सब जानतें हैं और जब एक ओबीसी के व्यक्ति यानी मोदीजी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया तो उसके बाद का परिणाम भी हम सब जानतें हैं। रही बात 2024 की तों भाजपाई ये जानतें हैं कि उत्तरप्रदेश और राजस्थान में क्या हुआ था। मैं किसी भी तरह से सवर्ण विरोधी नहीं हूं और ना इसकी कोई आवश्यकता समझता हूं। मध्यप्रदेश में ओबीसी समाज 55-60% है और 14% का आरक्षण इसके लिए ऊट के मूंह में जीरा बराबर भी नहीं है तो इसे हर हाल में बढ़ाया जाना ही चाहिए। 


     कुछ सवर्ण चिंतक और स्वघोषित हितैषी लगातार ये दुष्प्रचार कर रहे हैं या दुसरे शब्दों में कहें तो धमकी दे रहे हैं कि सवर्ण तो भाजपा को 80-90% वोट देता है भाजपा को अपने कोर वोटर को नारज करके बहुत बुरा परिणाम मध्यप्रदेश में भुगतान पड़ सकता है तो उन लोगों को मैं सामान्य गणित समझाना चाहूंगा कि 20% का 90% भी मात्र 18 वोट ही होगा और 50% का 50% भी 25 वोट होगा। तो 25 वोट अधिक हैं या 18 वोट। भारत में चुनाव संख्या बल से जीता जाता है ना कि मत प्रतिशत से तो ये तर्कहीन बात करना बंद कर देना चाहिए सवर्ण बुद्धजीवी को। मुझे यकिन है कि भाजपा का केन्द्रीय नेत्तृत्व भी यह सामान्य गणित समझता होगा और राज्य का भी पर सवर्ण बुद्धिजीवियों को अभी भी भाजपा का कोर वोटर होने का अहम है या वो ऐसा दिखावा करते हैं लेकिन सच्चाई इससे उलट है। मुझे लगता है कि राज्य सरकार को इस दबाव में आए बीना ओबीसी समाज को उसका हक दिलाने का प्रयास जारी रखना चाहिए। 


     वर्तमान में ओबीसी आरक्षण को लेकर मध्यप्रदेश में जो व्यवस्था है इससे लाखों कि संख्या में ओबीसी छात्र प्रभावित हो रहें हैं तो इसका समाधान निकालना ही चाहिए। अपेक्षा कि जा रही है कि माननीय उच्चतम न्यायालय एक सकारात्मक पथ प्रदान करें जो लाखों लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करे।

शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025

लेख - स्वयं संपादकीय 01, मध्यप्रदेश कि मोहन यादव सरकार और ओबीसी आरक्षण विवाद पर विष्लेषण।

मध्यप्रदेश कि मोहन यादव सरकार और ओबीसी आरक्षण विवाद पर विष्लेषण। 


     मध्यप्रदेश में ओबीसी की जनसंख्या लगभग 55-60% हैं लेकिन आरक्षण मात्र 14% प्रभावी है बाकी के 13% पर रोक है लेकिन सवर्ण मात्र 10-12% होंगे तो उनके लिए जनरल का 40% और ईडब्ल्यूएस का 10% हैं कुल मिलाकर सवर्णों के पास 50% उपलब्ध है तो बहुत तर्कों की बात करने वाले ये बताएं कि ये कौन से आधार पर सही है। वर्तमान में देश में जातिगत आरक्षण ही है ना। 


     मैं जिसकी जीतनी जनसंख्या उसका उतना हक की बात नहीं कर रहा लेकिन जो लोग मध्यप्रदेश की जनसंख्या का 15% भी नहीं हैं उनके लिए सिधे 50% है तो ये बाकि लोगों के साथ घोर अन्याय है। इससे तो अच्छा है कि आरक्षण आर्थिक आधार पर कर दिया जाए। पर जब तक ये नहीं हो रहा है ओबीसी समाज को उसका हक मिलना चाहिए। 


     आज मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव जी को वो लोग गाली दे रहे हैं जो लोग सुबह साम हिन्दू एकता का गाना गाते हैं और बटोगे तो कटोगे समझाते रहते हैं। मैं महाजन आयोग की प्रभु श्रीराम को लेकर जो बात है उसका पुरा विरोध करता हूं इसमें कोई किन्तु परन्तु नहीं है। ना मैं किसी भी तरह से सवर्ण विरोधी हूं और ना इसकी कोई आवश्यकता समझता हूं और ना मुझे समझा जाना चाहिए। 


     आज जो लोग श्री मोहन यादव जी पर निजी हमले कर रहे हैं उन्हें याद रखना चाहीए की ये सब कुछ मध्यप्रदेश और पुरे देश का ओबीसी समाज देख रहा है। आप मोहन यादव की आलोघना नहीं कर रहें हैं बल्कि पिछड़ी जातियों के लिए आपके मन मे जो अंतर्निहित घृणा है उसका प्रदर्शन कर रहे हैं। 


     मैं निजी तौर पर मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव सरकार का हर संभव समर्थन करता हूं कि आखिर वो प्रयास तो कर रहे हैं ओबीसी समाज का उनका वास्तविक प्रतिनिधित्व दिलाने के लिए। शिवराज सिंह चौहान जी जैसे रीड विहीन नेता से मध्यप्रदेश को छुटकारा मिल गया जो चुनाव के दौरान खुद को ओबीसी समाज का मसीहा होने का दिखावा कर ओबीसी का वोट तो प्राप्त कर लेते थे लेकिन हक देने की बात पर नाग की तरह कुंडली मारकर बैठे थे।


     शिवराज सिंह चौहान के कई कार्य बहुत उत्तम थे लेकिन उन्होंने ओबीसी समाज की अनदेखी की यह बात सर्वथा सत्य है। आज कम से कम मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव के रुप में एक उम्मीद तो जगी है कि शायद वो हजारों अभ्यार्थि अपना हक प्राप्त करले जो कई वर्षों से चयनित होने के बाद भी प्रतिक्षा कर रहे हैं।

शनिवार, 29 अक्टूबर 2022

असंपादित सत्य 06 , धर्म ग्रंथों के भिन्नतापूर्ण अनुवादों से उत्पन्न हुई भ्रम की स्थिति पर एक परिचर्चा |


    कुछ दिनों पहले मैने पुरी श्रीमद्भगवत् गीता पढ़ी और अब भागवत पुराण पढ़ रहा हूं | पढ़ने के दौरान कुछ श्लोकों का हिन्दी अनुवाद मैं ने इंटरनेट पर देखा तो कुछ अनुवाद मैं जो पुस्तक पढ़ रहा था उससे थोड़े अलग मिले और जब मैने विडियोज देखे तो उनमें भी कुछ हद तक यही मिला | यही वजह है कि कहीं-कहीं भ्रम की सी स्थिति उत्पन्न हो गयी | पर ज्यादा ढूढ़ने पर स्थिति साफ हो गयी | फिर तो बस एक सिलसिले की तरह युट्युब पर डिबेट देखने लगा तब जाकर पता चला कि इस स्थिति ने तो भयावह रुप ले लिया है और ये स्थिति केवल विधर्मीयों की ही नही है समधर्मीयों की भी है | जिस पर मुझे लगता है कि एक विस्तृत परिचर्चा की जरुरत है | इसके लिए मेरे मत में इन तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए |


     हमारे कुछ धार्मिक ग्रंथों के बारे में कहा जाता है की वो लगभग 6000 BCE से भी ज्यादा पुराने हैं और इस बात पर गौर करें के ऐसा कहा जाता है इसकी असली डेट क्या है ये किसी को पता नहीं है और ये डेट्स भी संवतों के अनुसार अलग-अलग मानी जाती है | जैसे युधिष्ठिर संवत के अनुसार लगभग 8000 BCE विक्रम संवत के अनुसार 6000 BCE शक संवत के अनुसार 5000 से 4000 BCE शकांत संवत के अनुसार 3000 से 2500 BCE | वर्तमान की हमारी जो इतिहास की किताबें हैं उनमें ऐतिहासिक घटनाओं की जो डेटींग यानी की कालक्रम है वह शकांत संवत के अनुसार हैं जिसे शक संवत समझा जाता है ऐसा कुछ इतिहासकारों का मत हैं | इससे भी कालक्रम में बहुत सी अनियमितताए उत्पन्न हुई होंगी माना जा सकता है |


     अब हम यदि सबसे आखिर का संवत ले तो भी ये ग्रंथ आज के हिसाब से 5000 से लेकर 4500 साल पुराने हैं | अब हम अगर इनके अनुवाद की बात करें तो हमे समझना चाहिए कि इनका इन 4-5 हजार सालों में अब तक हजारों बार ट्रांसलेशन यानी की अनुवाद हुआ होगा और हमे इस तथ्य पर भी ध्यान देना चाहिए की किसी भाषा को जैसी वो आज हमारे समय में हैं वैसी होने में हजारों वर्ष का समय लगा है | जैसे मैं अपनी बात हिन्दी भाषा का उदाहरण देकर ही समझाना चाहूंगा | प्रारंभ में जो हिन्दी थी करीब 1000 वर्ष पूर्व वो प्राकृत के नाम से जानी जाती है आज इतिहास में , फिर यही आगे चलकर देशभाषा हुई , पिंगल हुई , सधुक्कडी़ हुई तब कही जाकर आज इस स्वरुप में हम तक पहुच पाई है | तो बदलाव के 1000 वर्षों में भी इन सभी परिवर्तित भाषा कालखण्डो में भी अनुवाद आदी कार्य होते रहें हैं | तो यह सब बदलाब भी आज सम्मिलित हो गए हैं | 


     जैसा की हम सब जानते हैं कि भारतवर्ष पर पिछले 2-3 हजार वर्ष से बाहरी आक्रमण होते रहे हैं और हमारे बहुत से मंदिर एवं विश्वविद्यालय बर्बर आक्रांताओं द्वारा तोड़ दिए गए हैं आग के हवाले कर दिए गए हैं जिसमें सहेज कर रखा गया हमारे पूर्वजों का हजारों साल का ज्ञान नष्ट कर दिया गया है | जिसमें नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास हम सब को पता है जिसे जब आक्रांता बख्तियार खिलजी ने आग लगा कर जलाया तो उसमें 30 लाख फस्ट हैड बुक यानी की जिनकी प्रतिलिपि नही है थी जिन्हें पुरा जलने में तीन माह का समय लगा था | तो इन सब में भी हमने अपमे बहुत से अनमोल ग्रंथ खोए हैं या आज जिनके कुछ भाग मिले हैं उनके कुछ भाग खो दिए हैं , हमें यह भी ध्यान में रखना होगा | 


     पर सबसे महत्वपूर्ण ये बात है जिसे अनदेखा नही करना चाहिए कि आज कल ही किसी एक ग्रंथ की ही किसी एक भाषा में सैकड़ों अनुवादकों का कार्य उपलब्ध है | तो किसी एक अनुवादक का अनुवाद लेकर फिर इस तरह की डिबेट करना मुझे तो पानी में लाठी पीटने जैसा ही लगता है |

मंगलवार, 21 जून 2022

असंपादित सत्य 05 , बॉलीवुड का अंधा गोरी प्रेम और भारतीय समाज पर इसके घातक परिणाम |


     गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा मै तो गया मारा आके यहा रे , गोरे रंग पे इतना गुमान कर गोरा रंग दो दिन में ढल जाएगा , गोरे गोरे मुखडे पे काला काला चश्मा , गोरिया चुराना मेरा जिया गोरिया , तैनु काला चश्मा जंचता है जंचता हैं गोरे मुखडे पे , गोरी हैं कलाईया तू लादे मुझे हरी हरी चूड़ीयां अपना बनाले मुझे बालमा और ऐसे अनगिनत गाने हैं जिसमें गोरे रंग का भाव भर भर कर प्रकट हो रहा है और यही नही ये तो हम सब ने बॉलीवुड की फिल्मों में देखा ही है की हीरोइन का रंग गोरा होना कितना आवश्यक है | अगर मैं आपसे पूछू कि किसी ऐसी फिल्म का नाम बताइए जो आपने देखी हो जिसमें हीरोइन का रंग काला या सांवला हो तो आप नही बता पाएंगे क्योंकि ऐसी कोई फिल्म तलाश कर पाना लगभग असंभव है | बॉलीवुड का ये अंधा गोरा प्रेम या गोरी प्रेम यू ही नही है इसके पीछे सौंदर्य प्रसाधन सामग्री बनाने बाली कंपनियों का मोटा पैसा है | बॉलीवुड की लगभग हर फिल्म में इन कंपनियों का पैसा लगा होता है और ये बॉलीवुड सितारों को प्रचार करने का पैसा अलग से देते हैं | और इसमें टीवी सीरियल बाले और आजकल ओटीटी बाले भी कोई पीछे नहीं हैं | संक्षेप में कहे तो बॉलीवुड ने ये जो गोरी शब्द को लड़की का पर्यायवाची बना दिया है इसके पीछे केवल और केवल पैसा है | 


     इससे पहले कि आप ये कहे कि केवल बॉलीवुड ही इस गोरे रंग के प्रति अंधे प्रेम की एकमात्र वजह नही है तो मै भी मानता हूं कि केवल बॉलीवुड ही इस अंधे प्रेम की एकमात्र वजह नही है इसका कुछ भाग हमारी गोरों की गुलामी से भी प्रभावित है मगर सबसे बड़ी वजह बॉलीवुड ही है क्योंकि फिल्में और टीवी सीरियल ये बहुत बड़े माध्यम हैं | अगर बॉलीवुड पैसों का भक्त न होकर देशहित और समाजहित में कार्य करता तो आज हम ये काले गोरे रंग से उपजे भेदभाव को भरने में कामयाब हो गए होते मगर बॉलीवुड ने तो अपने लालच में काले गोरे रंग के भेदभाव को एवं गोरे रंग के प्रति अंधे प्रेम को और परवान चढा दिया | अब गोरे रंग के प्रति लोगों की दीवानगी इस हद तक हो गयी है कि वो अपना चेहरा या शरीर गोरा करने के लिए कितना भी पैसा खर्च करने के लिए तैयार हैं कोई भी दर्द सहने के लिए तैयार हैं कोई भी प्रयोग करने के लिए तैयार हैं |


     आज ये गोरे रंग के प्रति अंधा प्रेम ही हमारे वर्तमान समाज को कहा तक ले आया है कि विडंबना देखिए हम अपने घर की मंदिर में श्याम श्री कृष्ण की पुजा करते हैं मगर हमें न अपना बेटा श्याम वर्ण में चाहिए ना दामाद | हम भले ही अपने घर की मंदिर में मां काली की पुजा करते हो मगर हमे न अपनी बेटी काली चाहिए ना बहू | किसी काले व्यक्ति या महिला को देखते ही हम ये अंदाजा लगाना शुरू कर देते हैं कि ये फला जाती से होगा ये देहाती होगा ये फला काम करता होगा ये कम पढ़ा लिखा या अनपढ़ होगा और फिर हम उससे व्यवहार भी उसके प्रति बनाई गई अपनी धारणा के अनुसार ही करते हैं |


     अगर हम ये गर्व करते हैं की हम दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है जो अब भी कायम हैं तो हमें ये समझना पड़ेगा की वो क्या मूल्य थे जो हमारे पूर्वजों ने पालन किए और उन्हें हम तक पहुँचाया तो मुझे लगता है कि वो सबसे बड़ा मूल्य है किसी व्यक्ति को उसके रंग या शरीर की बनावट के आधार पर न देखकर उसके गुणों के आधार पर उसके कर्मों के आधार पर देखना यही वजह है कि हम आज भी अपने घर की मंदिर में श्याम योगेश्वर श्री कृष्ण और मां काली की पुजा करते हैं जब की ये भी काले रंग के हैं |

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

असंपादित सत्य 04 , क्या आप ज्योतिषशास्त्र और वास्तुशास्त्र के बारे में जानते हैं ? , इससे भी बड़ा सवाल ये की क्या आप इनमें विश्वास करते हैं ? , हां या नही , अगर नही' , बॉलीवुड नही करता इसीलिए ना |

      'क्या मां दुनियां चांद पर जा रही है और आप हैं कि कुण्डली में अटकी हुई हैं' इस डायलौग को हम सब ने टीवी और फ़िल्मों में सुना है , जब भी किसी टीवी सीरियल या फिल्म में विवाह के लिए मां लड़की की कुण्डली मिलाने को कहती है तो हीरो की तरफ से बोला गया सबसे पहला संवाद यही होता है | इस संवाद को कहकर हीरो यह दिखाने की कोशिश करता है कि वह आधुनिक युग का है और वह इस पुराने अंधविश्वास को नही मानता उसके हिसाब से कोई पंडित यह कैसे बता सकता है कि आगे आने वाली जिंदगी में उसके लिए कौन अच्छा रहेगा कौन नही | 


     अगर उपरी तौर पर देखा जाए तो यह हमारे उस बहुत बड़े आयु वर्ग और जनसंख्या वर्ग के लिए हैं जिन्होंने ज्योतिषशास्त्र के बारे में कभी सुना ही नहीं है जिसे केवल वैदिकशास्त्र जानने वाले कुछ ज्योतिषाचार्य ही जानते हैं | क्योंकि बॉलीवुड के मूल में सनातन विरोध रहा है जो अब साबित हो रहा है इसलिए वह बीना सच जाने या सामान्य जन मानस को इसकी सच्चाई बताए इसे नकार देता है और इसके विरुद्ध प्रचार करता है जो की बहुत ही तर्कहीन और सतही है | 


किसी भी बात को स्वीकारने या नकारने से पहले हमे ये जानना चाहिए कि आखिर ज्योतिषशास्त्र और वास्तुशास्त्र होता क्या है 


ज्योतिषशास्त्र क्या होता है? 


     जैसा की हम जानते हैं कि ज्योतिष शास्त्र एक बहुत ही वृहद ज्ञान है। सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों, नक्षत्रों , तारों आदि की गति, परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है।


     ज्योतिष शास्त्र की व्युत्पत्ति 'ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्‌' की गई है। हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का अंग है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति 'द्युत दीप्तों' धातु से हुई है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है।


वास्तुशास्त्र क्या होता है?


     वास्तु का शाब्दिक अर्थ निवासस्थान होता है। इसके सिद्धांत वातावरण में जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश तत्वों के बीच एक सामंजस्य स्थापित करने में मदद करते हैं। जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश इन पाँचों तत्वों का हमारे कार्य प्रदर्शन, स्वभाव, भाग्य एवं जीवन के अन्य पहलुओं पर पड़ता है। यह विद्या भारत की प्राचीनतम विद्याओं में से एक है जिसका संबंध दिशाओं और ऊर्जाओं से है। इसके अंतर्गत दिशाओं को आधार बनाकर आसपास मौजूद नकारात्मक ऊर्जाओं को कुछ इस तरह सकारात्मक किया जाता है, ताकि वह मानव जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव ना डाल सकें। 


     विश्व के प्रथम विद्वान वास्तुविद् विश्वकर्मा के अनुसार शास्त्र सम्मत निर्मित भवन विश्व को सम्पूर्ण सुख, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। जगत और वास्तु शिल्पज्ञान परस्पर पर्याय है।वास्तु एक प्राचीन विज्ञान है। हमारे ऋषि मनीषियो ने हमारे आसपास की सृष्टि मे व्याप्त अनिष्ट शक्तियो से हमारी रक्षा के उद्देश्य से इस विज्ञान का विकास किया। वास्तु का उद्भव स्थापत्य वेद से हुआ है, जो अथर्ववेद का अंग है। इस सृष्टि के साथ साथ मानव शरीर भी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है और वास्तु शास्त्र के अनुसार यही तत्व जीवन तथा जगत को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक है |


     इस तरह हम ये देख सकते हैं की ज्योतिषशास्त्र और वास्तुशास्त्र पुर्ण रुप से प्राचीन भारतीय ज्ञान और विज्ञान का हिस्सा हैं इसमें कुछ भी कल्पना या अंधविश्वास नही है | यह वैदिक ज्ञान की विरासत है और यह पुर्ण रुप से वैज्ञानिक है | 

बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

असंपादित सत्य 03 , मेरी नजर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बो बातें जो उन्हें अपने समय के बाकी सभी नेताओं से श्रेष्ठ बनाती हैं |


     हालही में भारत सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर कुछ अहम फैसले किए हैं जिससे नेताजी को लेकर पूरे देश में चर्चाएं हो रही हैं | जिनमें से पहला फैसला ये है कि अब से गणतंत्र दिवस की शुरुआत नेताजी की जन्म जयंती यानी की 23 जनवरी से होगी और दुसरा और सबसे बड़ा फैसला ये है कि इंडिया गेट के सामने की कनोपी जहां 1968 तक महाराजा जार्ज पंचम की मूर्ति लगी थी वहां अब ग्रेनाइट की नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगेगी अभी वहा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया गया है |


     नेताजी से जुड़े तथ्यों पर बात की जाय तो उनके कांग्रेस के अध्यक्ष पद त्यागने से लेकर फिर आईएनए (इंडिया नेशनल आर्मी) और फिर प्लेन क्रैश में उनके निधन तक सब जानते हैं और अब तो इस पर बहुत बातें हो भी रही हैं | यहां मै ये बताता चलूं की उनकी प्लेन क्रैश में निधन होने की सत्यता पर काफी विवाद हैं और बहुत बड़ी तादाद में लोग इसे नही मानते जिनमें से मै भी हूं और इस पर काफी किताबें भी लिखी जा चुकी हैं | मगर आधिकारिक तौर पर भारत सरकार अब तब प्लेन क्रैश में उनकी मौत हो जाने को ही मानती है तो हम भी अपनी बात वही तक सीमित रखते हैं |


     हमारे भारतीय समाज में त्याग करने वाले की सर्वथा स्वीकार्यता और सम्मान मिला है प्रभु श्री राम भी शायद इसी लिए पूजनीय हैं कि उन्होंने त्याग किया और जब अपनी पत्नी की सुरक्षा का प्रश्न आया तो सन्यासी होने के बावजूद भी युद्ध किया है और शक्तिशाली और अतातायी राक्षसों का अंत किया | ये गुण नेताजी में भी पल्लवित होते हैं | नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी कई त्याग किए जिसमें उनका आईसीएस जो आज के आईएएस के समान थी पास करने के बाद भी त्याग देना और देश सेवा में संलग्न होना या फिर कांग्रेस के अध्यक्ष पद का त्याग करना हो आदि और जब उन्हें लगा कि अपनी भारत माता की स्वतंत्रता अहिंसा के बल पर मिल पाना संभव नहीं है तो फिर युद्ध का मार्ग चुनते हुए अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लड़ने का निर्णय करना |


     सब को साथ लेकर परस्पर आपसी सहयोग की भावना का गुण और प्रेरणादायी विचारों के साथ जनसामान्य से संवाद स्थापित कर लेने का वो गुण ही था जिससे प्रवासी भारतीययों ने नेताजी की आईएनए को धन का दान दिया और 1944 के समय में भी उनकी आईएनए में रानी झींसी ब्रिगेड बनी | यह कुछ ऐसे गुण हैं जो शायद नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अलावा किसी समकालीन नेता में नही थे यह मै अपने अब तक के अध्ययन के आधार पर लिख रहा हूं यह हो सकता है कि मेरे अध्ययन का दायरा अभी बहुत छोटा हो या आप मुझसे सहमत ना हो मै आपकी असहमति को सहर्ष स्वीकार करता हूं |


रविवार, 16 जनवरी 2022

असंपादित सत्य 02 , क्या सनातनी मुसलमान या स्वदेशी मुसलमान जैसी कोई चीज होती है ? और ये अल्लाह का इस्लाम मुल्ला का इस्लाम क्या है ? आइए चर्चा करें |


     पिछले दो तीन साल से जब से मैने इसमें रुचि ली है मै टीवी डिबेट में या फिर सोशल मीडिया पर अक्सर कुछ शब्द पढ़ता एवं सुनता रहता हूं जैसे सनातनी मुसलमान ,  स्वदेशी मुसलमान या अल्लाह का इस्लाम मुल्ला का इस्लाम आदि | यह सारे शब्द या यह लेख पढ़कर शायद कुछ लोग असहज महसूस करें तो मेरी उनसे गुज़ारिश है कि वो ये लेख आगे न पढ़े और यदि आप भी इन शब्दों को लेकर स्पष्टता चाहते हैं तो आगे पढ़े | आपका स्वागत है |


     जब मैने इसके बारे में पढ़ना और रिसर्च करना प्रारंभ किया तो मुझे कुछ हैरान करने वाले तथ्य पता चले जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं क्योंकि मुझे लगता है कि आप को भी यह लगता होगा की शायद यह सारे शब्द वाकई इसलाम में या इसलामी दुनिया में अस्तित्व में होंगे मगर ऐसा कुछ भी नहीं है इन सारे शब्दों का वास्तविकता से दूर-दूर तक कोई संबंध नही है और ना ही इनकी कहीं कोई स्वीकार्यता है ये सारे शब्द कुछ लोगों ने अपने निजी स्वार्थ साधने के लिए बना रखें हैं और वो कौन लोग हैं मुझे लगता है कि आप भी ये जानते होंगे | इस लेख के माध्यम से मेरा मक़सद किसी के मन में किसी के लिए द्वेष पैदा करना नही है बल्कि सत्य को आगे लाना है |


     तो भगवान के लिए यह संशय अपने मन में मत रखिए , एक मुसलमान या तो मुसलमान है या नहीं है | अगर वह पैगम्बर साहब को पैगम्बर मानता है , अगर वह कुरान को पाक अल्ला की किताब मानता है तो वह मुसलमान है और अगर वह यह नही मानता तो वह मुसलमान नही है , इस्लाम और सारी इस्लामी दुनिया में यही स्वीकार्य है | और इसका कोई दुसरा विकल्प नहीं है |


     इस्लाम मे इंडोनेशियन मुसलमान , बांग्लादेशी मुसलमान , पाकिस्तानी मुसलमान जैसी कोई चीज नही होती और न ही इसाइ मुसलमान , यहूदी मुसलमान , सिख मुसलमान जैसी कोई चीज होती है तो ये सनातनी मुसलमान या स्वदेशी मुसलमान जैसी कोई चीज कैसे हो सकती है यह इस्लाम मे रहकर संभव ही नहीं है | और यदि आप इसकी सत्यता को स्वयं परखना चाहते हैं तो आप इसके लिए स्वतंत्र हैं |


     कृपया अल्लाह का इस्लाम मुल्ला का इस्लाम या फिर ये सनातनी मुसलमान या स्वदेशी मुसलमान इस तरह के भ्रम अपने मन एवं बुद्धि में न पाले | इस्लाम एक है और मुसलमान भी एक ही है जिसका सबसे बड़ा भुक्तभोगी हजार साल से भारत है | अब डिजिटल क्रांति की वजह से इस्लाम और मुसलमान को लेकर जो स्पष्टता भारत के सनातनीयों में आ रही है कृपया इसे फिर गुमराह ना करें | 


     सत्य को सत्य की तरह ही पढ़ना , लिखना , देखना , बोलना एवं समझना चाहिए और यदि हम ऐसा नही कर पा रहे हैं या किसी स्वार्थ के कारण ऐसा नही कर रहे हैं तो मुझे लगता है कि हम अपराध कर रहें हैं ना केवल अपने साथ अपितु अपने पूरे राष्ट्र के साथ |


गुरुवार, 13 जनवरी 2022

असंपादित सत्य 01 , भारत का नवीन नारीवाद और उसकी नारी |


     भारत एक ऐसा देश जो कृषि प्रधान तो है ही साथ ही साथ नारी प्रधान भी है | नारी प्रधान मै इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इस राष्ट्र के कोने-कोने में नारी के प्रभाव की छाप मिलती है , हिन्दू धर्म में नारी के हर रुप की पुजा की जाती है चाहे वह बेटी के रुप में हो या मां के रुप में | अगर यह अतिशयोक्ति न हो तो हर भारतीय के लिए भारत एक जमीन का टुकडा न होकर उसकी मातृभूमि है उसकी भारत माता है |


     जितना मेरा अध्ययन है महिलाओं को शोषण से बचाने और उनके सभी तरह के नागरिक और मानवीय अधिकारों की बात करना मूल रुप से नारीवाद माना जाता है | यू तो नारीवाद मूलत: पश्चिम की विचारधारा है क्योंकि उनके समाज में एक बहुत बड़े कालखण्ड में महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहा है और वह आज भी हो रहा है जैसे उदाहरण के लिए अनेक युरोपियम देशों में महिलाओं के साथ बलात्कार को सामान्य सी घटना समझा जाता है और इस पर आधुनिकीकरण का पर्दा डाले रखा गया है | 


     यदि हम भारत की बात करें तो प्राचीन भारत महिलाओं के अनेकों योगदानों से भरा पड़ा है जिसमें महिलाएं लेखन , शिक्षा , तपस्या , व्यापार , रक्षा , अनुसंधान , सेवा आदि हर क्षेत्र में उत्कर्ष पर रही हैं | मगर बीच के इसलामीक आक्रमण के कालखण्ड में महिलाओं के इस चेतना का हास हुआ जिसे आज के भारत में यह समझा जाने लगा है कि भारत सदैव से ऐसा ही था इसीलिए रेप इन देविस्तान जैसी बातें कही जाती हैं | आज के भारत में नारी की जो मूल समस्याए हैं वो है अच्छी शिक्षा , स्वास्थ्य , वित्तीय आत्मनिर्भरता , रोजगार के समान अवसर , जागरुकता आदि | मगर आज भारत की नारीवादी महिलाओं के लिए यह मुद्दे गौण हैं उनके लिए नारीवाद का मतलब हो गया है कपडे न पहनना या छोटे पहनना या बड़े पहनना , शादीशुदा होते हुए भी गैर मर्दों से संबंध बनाने की समाज में स्वीकार्यता लाना या चरमसुख की प्राप्ति के लिए अधिक से अधिक पुरुषों से संबंध बनाने की स्वीकार्यता पाना , पुरुषों की अंधी बराबरी करना आदि | 


     जिस देश की करोड़ों की आबादी गरीबी रेखा से नीचे हो जिनके पास दो वक्त का भोजन भी सरकार के अनुदान पर हो , महिलाओं में अशिक्षा , संवैधानिक और कानूनी जागरुकता का आभाव  , महिला आधारिक स्वास्थ्य सुविधाओं का आभाव हो उस देश की नारीवादी महिलाओं के ऐसे विषय न केवल हास्यास्पद हैं बल्कि भारतीय नारीवाद पर भी सवाल खड़े करते हैं | सबसे पहले तो यही की क्या भारत में नारीवाद सही पथ पर है? और क्या इसके विषय वास्तव में समस्त भारत की नारियों के लिए प्रासंगिक है? आदि |


     मुझे निजी तौर पर किसी भी नारीवादी महिला या पुरुष के किसी भी विचार से कोई आपत्ति नही है यह उनकी निजी प्राथमिकता हो सकती है और वह उन विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए स्वतंत्रत हैं | मेरा आशय समस्त भारतीय नारीवादी परिचर्चा से है जो स्वयं को नारी के बेहतरी के लिए सार्थक होना चाहता है | 


गुरुवार, 4 नवंबर 2021

'दीया' होने का एक अर्थ 'राम' होना भी है


     आज दीपावली है और हम अपने घरों में उल्लास के साथ यह पर्व मना रहे हैं और बड़े उत्साह के साथ रात को सारे घर में दीपक जलाने का इंतजार कर रहे हैं और यही तो दीपावली का सौंदर्य है जो जगमगाते दीपकों का प्रकाश प्रकृति के कण कण में भर देता है | आपको दीपावली के पावन पर्व पर अनेक अनेक शुभकामनाएं |

     दीयों को अगर खुशीयों का सबसे अच्छा प्रतीक कहा जाए तो कोई अतिशयोक्तिपूर्ण बात नही होगी | जब राम का जन्म कौशल्या के गर्भ से हुआ तब तक राम के पिता यानी राजा दशरथ को कोई संतान नही थी तो राम के जन्म को पूरे अयोध्या में बड़े धूमधाम से मनाया गया , अयोध्या वासियों ने अपने युवराज के जन्म को भी दीपावली की तरह से ही मनाया था | राम जब चौदह वर्ष के वनवास और लंका विजय कर वापस अयोध्या आए तब भी अयोध्या वासियों ने दीये जलाकर दीपावली मनाई |

     यदि हम दोनों अवसरों 'राम के जन्म' तथा 'राम के वापस अयोध्या आगमन' को देखें तो    दोनों ही समय राम निराशा के अंधेरे में उम्मीद की रोशनी बनकर आए और दोनों ही समय में उनका स्वागत अयोध्या वासियों ने दीये जलाकर खुशीयां मनाकर किया | पुजा से लेकर बाकी हमें खुशी देने वाले हर कार्य में दीये सम्मिलित होते हैं और राम तो जनमानस के रोम रोम में हैं तब यह सर्वथा सत्य हो जाता है कि 'दीया'' होने का एक अर्थ 'राम' होना भी है |

शनिवार, 31 जुलाई 2021

अप्रकाशित सत्य 23 , डा. आंबेडकर के बारे में वो तथ्य जो आप आज तक नहीं जानते होंगे


     बाबा साहब के बारे में अपने पिछले लेख में मैने उनके जीवन के बारे में बताया था जिससे ज्यादातर लोग परिचित होंगे लेकिन इस लेख में मै डॉक्टर भीमराव आंबेडकर से जुड़े ऐसे तथ्यों के बारे में बता रहा हूं जिसे कुछ चुनिंदा लोगों ही जानते हैं या वो लोग जान पाते हैं जो डा आंबेडकर को अपने अध्ययन का मुख्य हिस्सा बनाते हैं 

     हम सब बाबा साहब को संविधान के निर्माता के रुप में जानते हैं लेकिन बाबा साहब एक वकील होने के साथ साथ समाज सुधारक , पत्रकार , लेखक , संपादक , शिक्षाविद , विधिवेत्ता तथा अर्थशास्त्री भी थे | संविधान के अलावा बाबा साहब ने भारत के बैकिंग सिस्टम , इरिगेशन सिस्टम , इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम तथा रेवेन्यु सिस्टम पर भी महत्वपूर्ण योगदान दिया | यहां हम कुछ तथ्यों पर गौर करेंगे जो सामान्य जन मानस को नही पता |

1. किया था राज्यसभा में संविधान को जलाने का ऐलान 

   23 सितंबर सन् 1953 को राज्यसभा में कहा था कि इसकी यानी संविधान की हमें कोई जरुरत नहीं है क्योंकि ये किसी के लिए भी अच्छा नही है | देश को अल्पसंख्यक एवं बहुसंख्यक में नही बांट सकते |

19 मार्च 1955 डा अनूप सिंह ने डा अांबेडकर के बयान का मामला उठाया तो डॉक्टर अांबेडकर ने इसके जबाब में कहा था कि हमने संविधान बनाकर एक मंदिर बनाया था भगवान के रहने के लिए लेकिन इसमें अब राक्षस रहने लगे इसलिए इसे तोड़ने के अलावा हमारे पास कोई और चारा नही है |

2. मुस्लिम और ईसाई नही बल्कि बौद्ध पंथ अपनाया था 

   1935 में ही महाराष्ट्र में दिए अपने एक भाषण में बाबा साहब ने कह दिया था कि मै पैदा जरूर हिन्दू हुआ हूं लेकिन हिन्दू मरुंगा नही | इसके बाद बाबा साहब ने 20 वर्षों तक सनातन धर्म समेत सभी पंथों का अध्ययन किया इसके बाद बौद्ध पंथ अपनाने का निर्णय लिया | बाबा साहब का मानना था कि बौद्ध पंथ ही सबसे अधिक तर्क संगत है | 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर कि दीक्षाभूमि में विधिवत धर्म परिवर्तन किया तथा उनके साथ उनके समाज के 385000 लोगों ने भी धर्म परिवर्तन करके बौद्ध पंथ अपना लिया था |

3. डॉक्टर अांबेडकर ने अनुच्छेद 370 का ड्राफ्ट बनाने तक से इनकार कर दिया था 

   1949 में कश्मीरी नेता शेख अब्दुल्लाह डॉक्टर अांबेडकर से मिलने इसी के लिए गए थे कि संविधान में जम्मू कश्मीर को विशेष प्रावधान दिए जाएं जिसे बाद में अनुच्छेद 370 के रुप में लागू किया गया | मगर बाबा साहब ने इसका ड्राफ्ट बनाने तक से मना यह कह के कर दिया था कि यह भारत के हित के खिलाफ है और मै ये पाप नही करूंगा |

4. इस्लाम के बारे में ये कहा है डॉक्टर भीमराव अांबेडकर ने 

   बाबा साहब ने एक स्थान पर ये स्पष्ट शब्दों में कहा है कि 'इस्लाम एक सच्चे मुसलमान को कभी भी भारत को अपनी मातृभूमि तथा हिन्दू को अपने सगे के रुप में मान्यता नही दे सकता |

5. उर्दू को राष्ट्र भाषा बनाने कि मांग को खारिज करते हुए ये लिखा था 

   जब उर्दू को भारत की राष्ट्र भाषा बनाने कि मांग कि जा रही थी तो संप्रदायीक आक्रमण नामक किताब के ग्यारहवाँ अध्याय में बाबा साहब ने लिखा - उर्दू ना तो भारत में बोली जाती है और ना ही यह हिन्दुस्तान के सभी मुसलमानों कि भाषा है | 68 लाख मुसलमानों मे से केवल 28 लाख ही उर्दू बोलते हैं |

     उपर वर्णित बिन्दुओं से यह स्पष्ट होता है कि आज राजनीतिक स्वार्थ के लिए जिस तरह से खुद को दलित नेता कहने वाले लोग डॉक्टर बी आर अांबेडकर का चित्रण करने का प्रयास करते हैं वह सर्वथा गलत है और लोग भी इन तथाकथित नेताओं कि बात में इसलिए आ जाते हैं क्योंकि उनके पास सही जानकारी का आभाव है और ये नेता नही चाहते कि ये सत्य आम जनता तक पहुंचे | 

     अक्सर आपने सुना होगा हर टीवी डिबेट में या किसी न किसी राजनीतिक आंदोलन में या धरना प्रदर्शन में कोई ना कोई नेता यह कहता हुआ मिल जाएगा कि हम बाबा साहब के बनाए संविधान को बचाने के लिए लड़ रहे हैं या बचाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि क्या बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर का बनाया संविधान वैसा ही था जैसा आज का हमारा संविधान है |

वर्तमान जो हमारा भारतीय संविधान है इसमें 100 से अधिक संरोधन हो चुके हैं साथ ही निम्न बदलाव भी संविधान में किए जा चुके हैं 

A. जब संविधान लागू हुआ था तब संविधान कि प्रस्तावना में समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्द नही थे इन शब्दों को संविधान कि प्रस्तावना में 42वे संविधान संशोधन से 1976 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा जोड़ा गया |

B. 26 नवंबर 1949 को जब संविधान अंगीकृत किया गया था तब इसमें तिथि और वर्ष बताने के लिए विक्रम संवत का उपयोग किया गया था जिसे आज भी संविधान कि प्रस्तावना में स्पष्ट पढ़ा जा सकता है तब से लेकर 1957 तक यही पंचांग भारत में प्रचलन में रहा |

मगर 22 मार्च 1957 को कांग्रेस की जवाहर लाल नेहरु सरकार के द्वारा विक्रम संवत के स्थान पर शक संवत को राष्ट्रीय पंचांग के रुप में अपनाया गया |

C. बाबा साहब के बनाए संविधान के प्रारंभिक पन्नों पर बने भगवान प्रभु श्री राम और माता सीता समेत भारत की संस्कृति को प्रदर्शित करने वाले चित्रों को संसद भवन के अतिरिक्त प्रकाशित होने वाली संपूर्ण भारत में संविधान की प्रतियों के लिए गैर जरुरी बना दिया गया है जिससे आज आम जनता को वो चित्र देखने के लिए भी उपलब्ध नही हैं |



बुधवार, 23 जून 2021

अप्रकाशित सत्य 22 , क्या कन्या भ्रूण हत्या , बाल विवाह , पर्दा प्रथा , सती प्रथा जैसी कुप्रथाएं वास्तव में प्राचीनकाल से भारतवर्ष में प्रचलित कुप्रथाएं थी या भारतीय स्त्रीयों को विदेशी आक्रमणकारीयों से बचाव का तरीका थी ? आइए विस्तार से जाने |


     जैसा कि हम सब ने अपनी प्राथमिक शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा के दौरान शीर्षक में वर्णित सभी कुप्रथाओं के बारे में पढ़ा है और यह भी पढ़ा है कि किस तरह से समय-समय पर कुछ समाज सुधारकों के द्वारा इनका अंत किया गया | मगर क्या यह कुप्रथाएं भारतवर्ष में हमेशा से विद्यमान थी ? मतलब क्या यह सभी कुप्रथाएं प्राचीन भारत में भी थी ? , तो इसका जबाब है , नही | कई शोधी इतिहासकारों ने इस बात को पूरे प्रमाण के साथ साबित किया है कि यह सभी कुप्रथाएं प्राचीन भारत में नही थी |

     अब यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि आखिर जब यह कुप्रथाएं प्राचीन भारत में नही थी तो फिर यह सभी कुप्रथाएं मध्यकालीन भारत में कैसे उत्पन्न हो गयी | इसे समझने के लिए आपको भारत पर हुए बर्बर इस्लामीक आक्रमणों को समझना पड़ेगा | भारत पर सबसे पहला सफल इस्लामीक हमला अरबों का था | 712 ईसवी में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला तब किया जब सिंध के राजा दाहिर सेन ने पैगम्बर मोहम्मद साहब के परिवारजनों को अपने राज्य में शरण दिया | मोहम्मद बिन कासिम ने 17वी बार में सिंध पर सफलता प्राप्त की और राजा दाहिर सेन को मार डाला तथा राजा के पूरे परिवार के मर्दों को भी मार डाला जिसमें बच्चे भी सम्मिलित थे मगर उसने राजा कि सभी रानीयों तथा उसकी बेटियों को अपना यौन गुलाम बना लिया | यही नही उसने राजा दाहिर की कुछ बेटियों को अमिर अरबों को बेच दिया | यह भी इतिहास है कि जब वह सिंध विजय करने के बाद वापस लौट रहा था तो बहुत अधिक संख्या में धन के साथ-साथ कई हजार सिंधी महिलाओं को भी अपना यौन गुलाम बनाकर ले जा रहा था | कुछ लेखों में इसकी संख्या चार हजार तो कुछ में चालिस हजार तक बताई जाती है |

     तब के बाद से आगे भारत में जितने भी अरब , मंगोल , तुर्क , अफगान या मुगल आक्रमणकारीयों ने आक्रमण किए सब में यही दोहराया जाता रहा जिसमें कि राजा के युद्ध में हार जाने के बाद ये बर्बर आक्रमणकारी न केवल राजा कि रानीयों बेटियों बल्कि युद्ध में मारे गए सैनिकों की पत्नीयों और बेटियों को भी अपना यौन गुलाम बना लेते थे | इतिहास में सैकड़ों बार आपको यह भी देखने को मिलेगा की यह बर्बर आक्रमणकारी पूरे गांव भर के मर्देों एवं दस वर्ष से बड़े लड़को को और बूढी महिलाओं को मार डालाते थे और बाकी सभी औरतों और लड़कीयों को अपना यौन गुलाम और दासीयां बना लेते थे | 

     जब हम बात करते हैं कन्या भ्रूण हत्या की तो यह सबसे पहले भारत के उन क्षेत्रों में प्रारंभ हुई मानी जा सकती है जिस पर इन बर्बर इस्लामीक आक्रांताों ने कब्जा कर लिया | इसकी पर्याप्त संभावना थी की आम जन ने यह सोचकर कन्या भ्रूण हत्या करना आरंभ कर दिया होगा कि ना तो बेटी पैदा होगी या बड़ी होगी और ना ही इसे किसी मलेच्छ की यौन गुलाम बनकर पुरा जीवन जीना पड़ेगा | और अधिक पढ़ने के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

     बाल विवाह भी इसी तरह का बेटियों की अस्मिता की रक्षा का एक प्रयास लगता है जिसमें बेटी को जल्द से जल्द विवाह करके ससुराल भेज दिया जाता था ताकि यदि गांव या नगर पर इन बर्बर आक्रमणकारीयों का हमला हो और यदि पिता को कुछ हो जाए या उसे मार डाला जाए तो कम से कम बेटियों को बचाने के लिए उनका पति और ससुराल पक् के लोग जिम्मेदार हो | भारत के कुछ क्षेत्रों में बहुत कम मात्रा में बाल विवाह आज भी होता है जिसमें बंगाल विहार झारखंड छत्तीसगढ़ समेत कई अन्य राज्य भी सम्मिलित हैं | और अधिक पढ़ने के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

     आप इसी प्रकार के बचाव की भावना सती प्रथा में भी देख सकते हैं जहां स्त्रीयां स्वेच्छा से पति की चिता के साथ जलकर भस्म हो जाती थी ताकि कोई मलेच्छ जीवन भर उनकी अस्मिता से ना खेल सके जो वास्तव में महारानी पद्मावती के जौहर से प्रचलित और प्रेरित मानी जा सकती है और महारानी पद्मावती ने जौहर क्यों किया था आप ये भली भाँति जानते हैं | हां इस बात से इंकार नही है कि शुरुआत में जो बचाव के तरीके थे बाद में वो प्रथा बन गए और फिर इन्होने एक कुरीति का रुप धर लिया |और अधिक पढ़ने के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

     राजस्थान के कुछ जिलों में आज भी घूँघट की परंपरा है यह पर्दा प्रथा का ही एक रुप समझा जा सकता है जिसका मक़सद अनजान पुरुषों से अपने मुख को छुपाना है | इसके मूल में भी यही कट्टर बर्बर इस्लामीक आक्रमणकारीयों से बचाव का उद्देश्य है | दरअसल ये बर्बर इस्लामीक आक्रमणकारी ये करते थे कि जिस क्षेत्र में यह अधिकार स्थापित कर लेते थे वहा अपने सैनिकों को आदेश देते थे की जाओ और पुरा नगर घुमों और जितनी भी सुन्दर स्त्रीयां मिलें उन्हें उठाकर हरम (जहां ये आक्रमणकारी बादशाह अपनी बेगमों और यौन गुलामों को रखते थे) में पहुंचा दो | मैने किसी पुराने लेख में पढ़ा था की मुगल बादशाह जहांगीर के हरम में उसकी 300 बेगमें 5000 यौन गुलाम बनाई गई महिलाएं (रखैलें) और 1000 से ज्यादा कमसिन लड़के रखें गए थे | यह आंकड़े यह बताने के लिए काफी है कि यह बर्बर मुगल आक्रमणकारी किस तरह से हारे हुए राज्य की महिलाओं और यौन गुलाम बनाई महिलाओं को रखते थे | और अधिक पढ़ने के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

     ऐसा ही एक कृत्य आपने सुना होगा जिसमें आक्रांता मुगलों का एक बादशाह अकबर दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में औरतों का अंतरंग मीना बाजार लगाया करता था जिसमें औरतों को यह कहा जाता था की वह अपना चेहरा बीना ढके आए | दरअसल मीना का मतलब सुराही होता है तो मीना बाजार का मतलब सुराहीयों का बाजार या सुराही जैसी महिलाओं का बाजार | कहा तो यह भी जाता है कि इस मीना बाजार में अकबर स्वयं महिला बनकर रहता था और अपने सैनिकों को कहकर अपने पसंद की महिलाओं को अपने हरम तक पहुंचवाता था | इतना जानने के बाद यह समझना बहुत कठिन नही होना चाहिए की आखिर क्यों पर्दा या घूँघट जैसी प्रथाएं प्रचलन में आयी होंगी | और अधिक पढ़ने के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

     आज के आधुनिक समाज में इस तरह की प्रथाओं का कोई स्थान नही हेना चाहिए और यह बहुत सुखद बात है कि इन में से कुछ कुप्रथाएं पुर्ण रुप से समाप्त हो चुकी है और जो थोड़ी बहुत हैं भी वह भी समाप्ति कि ओर बढ़ रही हैं | मगर इन सभी प्रथाओं के हर पहलु को जाने बीना इसे किसी समाज के सम्पूर्ण अस्तित्व पर नही थोपा जाना चाहिए | 







गुरुवार, 17 जून 2021

अप्रकाशित सत्य 21 , शेक्सपियर ने कहा था 'नाम में क्या रखा है', तो आइए चर्चा करते हैं कि नाम में क्या रखा है | आखिर शहरों के नाम बदले जाने पर क्यों होता है विरोध |

अप्रकाशित सत्य 21 , शेक्सपियर ने कहा था 'नाम में क्या रखा है', तो आइए चर्चा करते हैं कि नाम में क्या रखा है | आखिर शहरों के नाम बदले जाने पर क्यों होता है विरोध |


     अक्सर आपने लोगों को ये कहते हुए सुना होगा की शेक्सपियर ने कहा था नाम में क्या रखा है , जब उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद का नाम बदलकर उसका पुराना नाम प्रयागराज रखा था तब हमारे देश में तमाम लोगों ने उत्तर प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री का विरोध करते हुए यही बात कही थी की नाम क्यों बदल रहें हैं नाम में क्या रखा है , ये तो हिन्दूवादी सरकार है जो इतिहास को खत्म करना चाहती हैं आदी आदी |

     अब जो मुख्य बात है वो यह है कि क्या सच में नाम में कुछ नही रखा | हम सब ने बचपन में संज्ञा कि परिभाषा में यह पढ़ा है कि किसी व्यक्ति वस्तू या स्थान के नाम को संज्ञा कहा जाता है | इसे और अधिक विस्तार देने के लिए मैं आपसे एक प्रश्न पुछना चाहता हूं कि यह जो कोट है 'नाम में क्या रखा है' वो किसका है ? , मै जानता हूं के आप जबाब देंगे यह कोट मशहूर कवि लेखक एवं चिंतक शेक्सपियर का है | अब आप स्वयं सोचीए कि नाम में क्या रखा है आप यह बात उस व्यक्ति के नाम से जानते हैं जिसने इसे कहा है यानी यदि नाम में कुछ नही रखा होता तो शेक्सपियर ने ये कोट लिखने के बाद नीचे ऑथर के रुप में अपना नाम नही लिखा होता |

     एक बार इसी बात को लेकर मेरी एक मित्र के साथ चर्चा हो रही थी तभी उसने भी यही बात कही कि शेक्सपियर ने कहा था की 'नाम में क्या रखा है' तभी मैने तुरंत इसके जबाब में यह बात कहा की तुम्हारा नाम आदित्य है मगर अब से मै तुम्हें बेवकूफ कहूंगा | मेरे इतना कहते ही वह नाराज हो गया और मुझ पर झल्लाने लगा , तब मैने उसे शांति से ये बात कहा कि मेरे दोस्त अभी तुम ही तो कह रहे थे की नाम में क्या रखा है तो फिर मै तुम्हें आदित्य कहूं या बेवकूफ क्या रखा है दोनों नाम ही तो हैं | तब तुम आदित्य कि जगह बेवकूफ को अपना नाम स्वीकार करलो इसके बाद वह कहने लगा के ऐसा कैसे हो सकता है ऐसा हो ही नहीं सकता |

     जी बिलकुल सत्य है ऐसा नही हो सकता गधे को हाथी और हाथी को गधा नही कहा जा सकता जबकि दोनों ही जाति वाचक संज्ञा यानी की नाम ही हैं | यही तर्क है जिसकी वजह से इतिहास में हुई गलतियों को सुधार जा रहा है और सुधारा जाना भी चाहिए | अब तक फैजाबाद को अयोध्या 

इलाहाबाद को प्रयागराज 

गुड़गांव को गुरुग्राम और 

आदी स्थानों के नामों को उनके पुराने या प्रचीन नाम लौटाएं जा चूके है मगर अभी और बहुत कुछ बाकी है जिसे उसकी असली पहचान नही मिली है |

      हमारे देश में बहुत अधिक संख्या में शहरों और कस्बों के नाम बाहर से आए अरब , मंगोल , तुर्क , अफगानी और मुगल आक्रमणकारी के नाम पर हैं जो अब भी उनके किए नरसंहार , बलात्कार और अत्याचारों की अनुभूति कराते है मगर अब समय आ गया है कि हमें इन नामों को बदलना चाहिए और भारत की आजादी की लड़ाई में अपना जीवन बलिदान करने वाले लाखों महान क्रांतिकारीयों के नाम पर रखना चाहिए जिससे हमारे भारत देश की आने वाली पीढ़ीयां इनसे प्रेरणा ले सकें |



शनिवार, 27 मार्च 2021

अप्रकाशित सत्य 20 , लव जेहाद या जिहाद क्या है? इस पर कितने राज्यों में कानून हैं? क्या Bollywood भी प्रोत्साहित करता है लव जिहाद को ? आइए विस्तार से चर्चा करते हैं |

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नोट - 

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     यह लेख समसामयिक घटनाओं एवं इंटरनेट पर उपलब्ध तथ्यों पर आधारित है | मेरा इस लेख को लिखने का मक़सद किसी की धार्मिक , सामाजिक या मानसिक भावनाओं को आहत पहुंचाना नही है बल्कि जानकारीयों को साझा करना एवं स्वच्छ विमर्श करना है | लेख के शीर्षक या किसी भी अन्य भाग को पढ़कर यदि आप असहज महसूस करें तो मैं आपसे आग्रह करूंगा के आप इस लेख को ना पढ़े इसके बाद भी यदि आप लेख पढ़ रहे हैं तो आपका स्वागत है | इस लेख के बारे में अपनी कोई भी राय बनाने से पहले कृपया लेख पुरा अवश्य ही पढ़े | नमस्कार |

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     लव जेहाद या जिहाद को लेकर हाल ही के कुछ महीनों मे मेन स्ट्रीम मीडिया में काफी चर्चा हुई और इस पर कुछ राज्यों में कानून भी बनाए गए हैं इसी वजह से मेरी दिलचस्पी इसे जानने के लिए बढ़ती गई और मैने इस पर एक विस्तार से चर्चा करने का मन बनाया है | लव जेहाद या जिहाद को समझने के लिए सबसे पहले आपको जेहाद या जिहाद को समझना होगा |

जेहाद या जिहाद क्या है ?

     यदि आप इस शब्द को गूगल पर सर्च करेंगें तो कई परिभाषाएं मिलेगी मगर उन सब का सारांश यह है कि जेहाद या जिहाद वह पाक युद्ध है जिसे इस्लाम को मानने वाले मोमिन (मुसलमान) गैर मुसलमानों (काफ़िरों) से लड़ते हैं ताकि उन्हें भी मोमिन (मुसलमान) बना सकें , जेहाद या जिहाद के लिए क़ुरान पाक में आयतें हैं जिनमें से 26 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की गई है और इसे लेकर मीडिया में चर्चाएं हो रही हैं (इसकी पुष्टि के लिए आपको स्वयं कुरान पाक पढ़कर देखना चाहिए , आजकल इंटरनेट पर हर भाषा में कुरान पाक का तर्जुमा उपलब्ध है या तो आप फ्री में उपलब्ध वाले वर्जन डाउनलोड करके पढ़ सकते हैं या किंडल एडीशन खरीद सकते हैं सत्यापित अनुवाद पढ़ने के लिए खरीद कर पढ़ना ज्यादा उचित होगा ) | यह जेहाद या जिहाद कई तरह से किया जा सकता है और किया जा भी रहा है | एक रास्ता तो सीधा है जिसमें एक कट्टर मुसलमान हथियार लेता है और काफ़िरों को मारता हैं इन्हें ही आपने तमाम खबरों में पढ़ा एवं सूना होगा जेहादी या जिहादी कहा जाता है आम तौर पर इन्हें आतंकवादी भी कहा जात है |

     जिस तरह से उपर लिखी तमाम बातें सत्य हैं उसी तरह से यह भी सत्य है कि हर मुसलमान यह नही करता या इस सोच को नही मानता और बहुत कम संख्या ऐसे मुसलमानों की भी है जो इसका विरोध कर रहे हैं मगर अब भी बहुत अधिक संख्या ऐसे मुसलमानों की है जो इस पर कुछ नही बोलते | जो जेहादी या जिहादी हैं वो बहुत कम संख्या में हैं परन्तु उनके आतंक से वह हमेशा दहसत बरकरार रखने में कामयाब हो रहे हैं |

लव जेहाद या जिहाद क्या है? 

     लव जेहाद या जिहाद केरल की हाई कोर्ट के द्वारा प्रतिपादित किया गया शब्द है | जब एक मुस्लिम लड़का अपनी पहचान छिपाकर , झूठ बोलकर एक हिन्दू या किसी अन्य धर्म की लड़की से प्रेम का नाटक करके उसके साथ बलात्कार करता है , विवाह करता है या उसका धर्म परिवर्तन कराने का प्रयास करता है या करवा लेता है तो इसे ही लव जेहाद या जिहाद कहा जाता है | कई बार तो खबरों में यहां तक आया है कि लड़की जब लड़के की सच्चाई जान जाती है या धर्म बदलने से इनकार कर देती है तो ऐसे जेहादी लड़के उन लड़कीयों कों जान से मार डालते है और ये कोई अपवाद नही है आप पता कर सकते हैं हजारों की तादाद में ऐसी खबरें आए दिन छपती हैं और गुमनाम हो जाती है और जरा ये सोचिए उन खबरों का क्या जो कहीं किसी अखबार में छप ही नही पाती या किसी टीवी चैनल की हेडलाइन में नही आ पाती | लव जेहाद या जिहाद एक मज़हबी सोज है जो बहुत बड़ी समस्या है यदि यह बड़ी समस्या न होती तो इस पर राज्य सरकारों को कानून नही बनाना पड़ता |

और कितने तरह के जेहाद या जिहाद की अवधारणा है?  

लव जेहाद या जिहाद के अलावा भी निम्न तरह के जिहाद किए जा रहे हैं -

1. ज़मीन जिहाद 

     सरकारी या किसी की नीजी जमीन पर मस्जिद , मदरसा , दरगाह या घर आदी बना देना | जिससे वहा किसी अन्य की मौजुदगी को घटाया जा सके | यह भी उसी श्रेणी में आता है | अतिरिक्त जानकारी के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

2. जनसंख्या जिहाद 

     घर की आर्थिक हालत खराब होने तथा एक दो बच्चों का उचित लालन पालन करने में सक्षम ना होने के बावजूद भी समुदाय विशेष की दम्पति के द्वारा दर्जन भर बच्चे पैदा करना ताकि किसी क्षेत्र विशेष में मुसलमानों की आबादी को बढ़ाया जा सके यह भी एक अवधारणा है | अतिरिक्त जानकारी के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

3. रेप जिहाद 

     हिन्दू या किसी अन्य धर्म की लड़कियों का बलात्कार समुदाय विशेष के युवकों या पुरुषों के द्वारा करना | यह भी एक चिन्हित किया गया पैटर्न है | यहां किसी भी तरह के बलात्कार को सही नही ठहराया जा रहा है बस विषय का विवरण दिया जा रहा है | अतिरिक्त जानकारी के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

4. हलाल जिहाद 

     हलाल भी इस्लाम की एक विचारधारा है जिसके अनुसार कोई भी मुस्लिम उन्हीं समानों या खाद्य उत्पादों का प्रयोग कर सकता है जो उसके लिए है यानी हलाल है | और कोई समान या उत्पाद तभी हलाल माना जाता है जब उसके उत्पादन के आरंभ चरण से लेकर अंतिम चरण तक यानी उसके उत्पाद बनने तक केवल और केवल मुसलमानों ने ही कार्य किया हो | भारत में एक संस्था है जो सामानों एवं उत्पादों को हलाल प्रमाण पत्र देती है | तभी यदि आप किसी ऑनलाइन खाना डिलीवरी एप से खाना मंगाते है तो आपको हलाल का भी एक ऑप्शन दिया जाता है | यह एक बलाक चेन टाइप की व्यवस्था है जिसका मक़सद मुसलमानों के लिए एक अलग अर्थव्यवस्था का निर्माण करना बताया जाता है | 

     इसे भी सभी मुस्लिम नही मानते मगर मानने वालों का प्रतिशत बहुत अधिक है जिससे यह फैल रहा है | अगर आपको याद हो तो कुछ महीने पहले यह खबर आई थी कि अब भारत में हलाल निर्यात की बाध्यता को खत्म कर दिया गया है | विस्तार से जानने के लिए आप गूगल सर्च करें, इसे हलाल इकोनॉमी या हलालोनॉमिक्स के नाम से भी परिभाषित किया जाता है |

5. UPSC जिहाद 

     यह भी सोशल मीडिया एवं टीवी मीडिया में काफी चर्चा का कारण रहा है | इसके अनुसार कहा जा रहा है था कि संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की पिछले एक दशक या उससे कम ज्यादा की भर्तीयों में समुदाय विशेष के उम्मीदवार को कोटा एवं आरक्षण से अधिक तथा कम योग्यता होने के बावजूद भी चयनित किए जा रहा हैं और इसमें उसी समुदाय विशेष से आने वाले चयनकर्ताओं की भागीदारी पर भी सवाल किए गए थे | अतिरिक्त जानकारी के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

क्या Bollywood भी प्रोत्साहित करता है लव जिहाद को ? 

     मुझे नीजी तौर पर लगता है कि यह प्रश्न ही उल्टा है | Bollywood भी नही Bollywood ही प्रोत्साहित करता है लव जिहाद को | हम सब ने बचपन से लेकर आज तक Bollywood की हजारों फिल्में देखी होंगी और इन सब की कहानी एक ही तरह की होती है जिसमें आमिर,  सलमान,  सैफ,  इमरान , शाहरुख आदी नामों के हीरो सूरज,  राहुल,  प्रेम, राज,  विजय आदी बनकर मधु, संजना,  अराधना,  सोनिया,  आशा,  पार्वती,  सरस्वती आदी नामों वाली हीरोइनों से प्यार करते हैं, शादी करते हैं और इन्ही तरह के दृश्यों से भरी होती हैं | और जब इस तरह की फिल्म एक मुस्लिम युवक देखता है तो उसे यह फिल्म प्रेरक लगती है बाकी का कार्य गैर मुसलमानों के लिए उसकी विचारधारा कर देती है जो उसे विरासत में प्रदान की जाती है नतिजा लव जेहाद या जिहाद के रुप में प्राप्त होता है | आपको याद होगा की अभी कुछ महीनों के पहले एक ज्वैलरी ब्रांड तनिस्क के एक टीवी प्रचार को लेकर खूब विरोध हुआ था जिसके बाद ब्रांड ने वह प्रचार हटाया और माफी भी मांगी उस प्रचार में भी इसी तरह का प्रयास किया गया था | इस तरह की फिल्मों या वेब शोज का असल जीवन से कोई वास्ता नही होता और झूठ कभी अच्छा जीवन नही दे सकता | 

कितने राज्यों में है लव जिहाद पर कानून? 

     उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने सर्व प्रथम लव जेहाद को मध्य मे रखकर 'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्मपरिवर्तन प्रतिरोध अध्यादेश 2020' नामक एक कानून बनाया है जिसके मुताबिक यदि कोई व्यक्ति झूठ बोलकर , प्रलोभन देकर अथवा किसी कपट माध्यम से किसी का धर्म परिवर्तन करवाता है तो यह एक गैर जमानती अपराध होगा तथा उस व्यक्ति को अधिकतम 10 साल तक की जेल तथा 50 हजार रुपये तक का अर्थदंड लगाया जा सकता है |

     मध्य प्रदेश में 'मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्र्य विधेयक 2020' भी कानून बन चुका है जिसके अनुसार यदि किसी व्यक्ति को अपना धर्म छिपाकर , झूठ बोलकर , प्रलोभन देकर अथवा किसी अन्य कपटपूर्ण माध्यम से धर्म परिवर्तन कराया जाता है या करने के लिए विवश किया जाता है तो करवाने वाले व्यक्ति को अधिकतम 5 साल की जेल तथा 25 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है | खबरों की माने तो हरियाणा में भी जल्द ही इसे लेकर कानून बनाया जा सकता है और भी कुछ राज्य हैं जहां इस तरह की चर्चाएं जोर पकड़ रही हैं |

लव जेहाद या जिहाद पर मेरी राय |

     मुझे लगता है कि यदि आप किसी को यह कहते हैं कि आप उससे प्यार करते हैं तो आपको स्वयं से और उससे जिससे आप कह रहे हैं की आप प्यार करते हैं आपको बहुत ईमानदार रहना चाहिए और यही सलाह मेरी हमउम्र या मुझसे छोटी युवतीयों के लिए भी है कि आपको किसी पर आंख बंद करके विश्वास नही करना चाहिए किसी के नाम अपना जीवन करने से पहले उस शख्स के बारे में हर संभव जानकारी पता कर लेनी चाहिए ताकि किसी तरह का धोखा होने की संभावना कम हो जाए | अपने प्रेमी पर यदि किसी बात को लेकर शक है तो उसका निराकरण करें याद रखें शक करना गलत बात नही है शक ही है जो यकीन को ज़िंदा रखता है | 

     मैं किसी भी तरह से विपरीत धर्म के लोगों से प्रेम या प्यार जो भी कहें करने के खिलाफ नही हूं मैं प्यार के नाम पर दिए जा रहे धोखे के खिलाफ हूं | मेरा निजी रुप से मानना है की यदि आप किसी से सच में खुद के प्रति ईमानदार होकर प्यार करते हैं तो फिर आपको अपनी प्रेमिका या प्रेमी को बदलने का प्रयास नही करना चाहिए वो जैसे भी हैं जिस भी धर्म को मानते हैं उन्हें वैसा ही स्वीकार करना चाहिए | और यदि आप ऐसा नही कर रहे हैं और उनके धार्मिक भावनाओं को बदलने का प्रयास कर रहे हैं तो मुझे आपको लव जेहादी या जिहादी कहने में कोई संकोच नही है | 




मंगलवार, 23 मार्च 2021

अप्रकाशित सत्य 19 ,धर्म , विधर्म , अधर्म , मजहब , सेक्युलर (Secular) का मतलब क्या है ? राष्ट , देश , राज्य में अन्तर क्या है? तथा राष्ट्रीयता एवं नागरीकता में फर्क क्या है ?


     मानव की विकास यात्रा में जितना योगदान भाषाओं का रहा है शायद ही किसी अन्य का हो तभी तो आज विश्व भर में हजारों की तादाद में भाषाएं बोली जाती हैं | कहा जाता है के अकेले भारत में सैकड़ों की संख्या में भाषाएं एवं हजारों की तादाद में बोलीयां हैं इन बोलीयों की गिनती 1400 से भी अधिक है | मगर भाषा जहां विकास करती है वही दूरीयां भी उत्पन्न करती है क्योंकि एक भाषा का व्यक्ति दूसरे की भाषा को नही समझता और यही से जन्म होता है अनुवाद का | आज जो मानव का विकास इस उंचाई तक पहुंचा है इसकी सबसे बडी वजह यह है कि हमने एक दूसरे की भाषा यानी अभिव्यक्ति को समझ लिया और अनुवाद इसका प्रमुख माध्यम है चाहे वह मौखिक हो या लिखित | 

     आमतौर पर अनुवाद के साथ यह समस्या होती है कि वह हूबहू वैसा नही हो पाता जैसा वह अपनी मूल भाषा में होता है कारण मूल भाषा की तरह अनुवाद की भाषा में शब्दों का या उच्चारणों का न होना आदि | ऐसा ही कुछ हुआ है हिन्दी , उर्दू और अंग्रेजी के इन शब्दों के साथ , आइए चर्चा करें | 

धर्म 

     धर्म का हिन्दी अर्थ है वह नैतिक कर्तव्य जो मानव परिस्थितियों के अनुसार स्व विवेक से स्वयं के लिए घारण करता है | मगर अंग्रेजी में इसका अनुवाद रेलिजन (Religion) है | यही नही एक और शब्द है उर्दू का 'मजहब' जिसका अंग्रेजी अनुवाद रेलिजन (Religion) ही है | जबकि इन दोनों शब्दों के अर्थ अलग हैं | 'मजहब' धर्म से भिन्न कैसे हैं मैं आगे लेख में चर्चा करता हूँ |

विधर्म 

     विधर्म का हिन्दी अर्थ है स्व विवेक से ऐसे नैतिक कर्तव्य का पालन करना जो किसी विशेष परिस्थितियों में या सामान्य जीवन में जो किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के द्वारा न अपनाया जा रहा हो | विधर्म के लिए अंग्रेजी में कई शब्द हैं जैसे हेट्रोडाक्सी (Heterodoxy) , हेरेसी (Heresy) आदि | यहां यह भी बताना आवश्यक है कि विधर्म का मतलब अधर्म नही होता या यू कहे तो विधर्मी , अधर्मी नही होता |

अधर्म 

     अधर्म का हिन्दी में अर्थ है किसी विशेष परिस्थितियों में या सामान्य जीवन में स्व विवेक से ऐसे कर्तव्य का पालन करना जो नैतिक एवं मौलिक नही है | एक उदाहरण देकर बात करें तो यदि एक भूखा छोटा बच्चा आपसे कुछ भोजन मांगता है तो आप क्या करेंगें? मेरी नजर में धर्म यह है कि मैं पहले उसके लिए अपनी क्षमता अनुसार भोजन का प्रबंध करुं यदि मैं ऐसा नही कर पा रहा हूँ तो उसे ऐसे स्थान पर लेकर जाउँ या ऐसे लोगों से भेंट करावाउँ जो उसके लिए भोजन का प्रबंध कर सके | यदि मैं इसके विपरीत व्यवहार करता हूँ उसके भोजन मांगने पर उसे गालीयॉ देता हूँ मारता पीटता हूँ तो मेरी समझ में मैं अधर्म कर रहा हूँ | अधर्म के लिए भी अंग्रेजी में कई शब्द हैं जैसे इरेलिजन (Irreligion) , इनइक्वीटी (Iniquity) आदि |

मजहब 

     जैसा कि मैने उपर लेख में बताया था की मजहब के लिए भी अंग्रेजी में वही शब्द है जो धर्म के लिए है रेलिजन (Religion) | जबकि मजहब का हिन्दी अर्थ धर्म नही है | मजहब का एक प्रवर्तक होता है एक किताब होती है कुछ प्रचारक होते हैं इसके शुरु होने की कोई तारीख या वर्ष होता है इसके खत्म होने का भी एक वर्ष होता है इत्यादि मगर धर्म तो अनंत होता है | धर्म ना तो कभी शुरु होता है और ना ही कभी अंत होता है | यहां यह भी बताता चलुं की दुविधा का पर्यायवाची शब्द धर्म संकट है मजहब नही है | 

सेक्युलर (Secular)

     यह अंग्रेजी का वह शब्द है जो 1976 में 42वे संविधान संशोधन से भारतीय संविधान की प्रस्तावना में डाले जाने के बाद से किसी न किसी वजह से हमेशा ही चर्चा मे रहता है | सेक्युलर शब्द का हिन्दी अनुवाद अगर आप खोजेंगे तो पाएंगे की इसका हिन्दी अनुवाद 'धर्म निरपेक्ष' मिलता है मगर यदि आप भारतीय संविधान का हिन्दी अनुवाद पढ़ेंगे तो पाएंगे कि इसी शब्द के लिए 'पंथ निरपेक्ष' शब्द का उपयोग किया गया है | मतलब भारतीय संविधान पंथ निरपेक्ष है धर्म निरपेक्ष नही है | 

   सामान्य जीवन में जब कोई व्यक्ति अपने आप को सेक्युलर कहता है तो वह अपने आप को यह प्रदर्शित करने का प्रयास कर रहा होता है की वह अपने पंथ या धर्म को लेकर बहुत कट्टर नही है या इसका एक मतलब यह भी निकाला जाता है कि वह आधुनिक सोच का है मगर हमें यहां यह समझना चाहिए की 'एक व्यक्ति कभी सेक्युलर हो ही नही सकता' | अब सामान्य सवाल यह है कि क्यों एक व्यक्ति सेक्युलर नही हो सकता? तो जबाब यह है कि एक व्यक्ति सेक्युलर इसलिए नही हो सकता क्योंकि वह राज्य या देश नही है ना ही वह सरकार है बल्कि वह तो राज्य या देश का निवासी है या हो सकता है कि सरकार का हिस्सा भी हो | 

राज्य 

     राज्य देश का एक हिस्सा होता है या वह कभी-कभी एक स्वतंत्रता देश भी हो सकता है | राज्य कि एक सीमा होती है एक सैनिक व्यवस्था होती है एक प्रशासक होता है | सामान्यत: राज्य देश का एक हिस्सा ही होता है वह देश नही होता | अंग्रेजी में आप सब जानते हैं स्टेट (State) कहा जाता है |

देश 

     देश कई राज्यों का एक समूह है जिसकी एक निर्धारित सीमा होती है सीमा सुरक्षा के लिए सेना होती है राजतन्त्र हो तो राजा एवं उसके प्रशासक देश पर शासन करते हैं या लोकतंत्र हो तो एक संविधान होता है जनता के द्वारा चयनित एक सरकार होती है जो प्रशासन का कार्यभार संभालती है | देश को अंग्रेजी में कन्ट्री (Country) कहा जाता है | यहां यह भी नोट करना चाहिए कि देश राष्ट्र नही होता |

राष्ट्र 

     राष्ट्र , ना तो राज्य है और ना ही देश है | राष्ट्र को किसी सीमा से नही बांधा जा सकता ना तो राष्ट्र का कोई प्रशासक होता है और ना ही कोई सेना | राष्ट्र किसी संविधान से नही चलता बल्कि राष्ट्र चलता है तो अपनी आस्था पर परम्पराओं पर संस्कारों पर अपने नैतिक , मौलिक और सामाजिक मूल्यों पर | किसी राष्ट्र को एक महान राष्ट्र उस राष्ट्र की राष्ट्रीयता को धारण करने वाले राष्ट्रीय बनाते हैं | एक देश में कई सारे राष्ट्र रह सकते हैं मगर एक राष्ट्र में कई सारे देश नही रह सकते | संपूर्ण विश्व में भारत ही एक  मात्र ऐसा देश है जहां कई सारे राष्ट्र एक साथ मिलकर रहते हैं जिनकी कोई सीमा नही है | अंग्रेजी में राष्ट्र को नेशन (Nation) कहते हैं | 

नागरिकता

     नागरिकता किसी राज्य या देश का पहचान होती है | नागरिकता को अंग्रेजी में सिटीज़नशिप (Citizenship) या स्टेटहूड (Statehood) कहा जाता है | किसी व्यक्ति की नागरिकता इस बात का प्रमाण है कि वह किस देश या राज्य का निवासी है |

राष्ट्रीयता 

     राष्ट्रीयता किसी राष्ट्र का पहचान होती है | राष्ट्रीयता को अंग्रेजी में नेशनलटी (Nationality) कहा जाता है | राष्ट्रीयता आमतौर पर किसी व्यक्ति के सामाजिक पक्ष की पहचान कराती है | इसे मैं इस तरह से कहना चाहूंगा की नागरिकता , राष्ट्रीयता नही होती |


बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

अप्रकाशित सत्य 18 , खालिस्तान क्या है ? सिख विरोधी दंगा या नरसंहार 1984 पर विस्तार पुर्वक चर्चा एवं विश्लेषण |

 

     कुछ दिनों से मिडिया में एक शब्द लगातार सुनाई दे रहा है तथा 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों की ट्रेक्टर रैली के नाम पर हुई हिंसा में भी इसके समर्थकों का होना कहा जा रहा है वो शब्द है 'खालिस्तान' | तो आइए जानते हैं की ये खालिस्तान क्या है ?|

     जैसा की मैं ने अपने पिछले लेख में बताया था कि सिख पंथ का उदय हिन्दुओ(स्नातनियों) की विदेशी आक्रांताओं से सुरक्षा के लिए हुआ था |मगर 1947 में जब भारत का विभाजन पंथ के आधार पर हुआ तो सिख पंथ के कुछ लोगों में भी दबे स्वरों में अलग देश की मांग उठने लगी थी और यह तब से लेकर 1980 तक दबे हुए स्वरों में ही थी |

     अकाली दल ने पंजाब राज्य की मांग की थी इसी के परिणामस्वरुप 1966 में भाषा के आधार पर दो राज्य पंजाब एवं हरियाणा तथा एक केन्द्रशासित प्रदेश चंडीगढ का गठन हुआ था |

खालिस्तान क्या है ?

     खालिस्तान आंदोलन एक सिख अलगाववादी आंदोलन था जो पंजाब क्षेत्र में 'खालिस्तान (खालसा की भुमि)' नामक अलग संप्रभु देश बनाना चाहता था | 

     कहा जाता है कि खालिस्तान की मांग 1980 से जोर पकड़ने लगी थी परन्तु इसके उलट कुछ किताबों , मिडिया रिपोर्ट्स , तत्कालिन सरकारी अफसरों के विडियों इंटरव्युस के आधार पर कहा जाए तो खालिस्तान कांग्रेस पार्टी के कुछ मुख्य नेताओं के द्वारा शुरु किया गया मसला था ताकि इसका फायदा पंजाब के आने वाले चुनाव में उठाया जा सके | इसी कडी़ में कहा जाता है कि कांग्रेस पार्टी के इन्हीं कुछ मुख्य नेताओं के द्वारा दमदमी टकसाल के 'जनरैल सिंह भिंडरावाला' को बढावा दिया गया था | 

     वर्तमान समय में भारत में खालिस्तान आंदोलन का कोई अस्तीत्व नही है | परन्तु खबरों के अनुसार कुछ विदेशों जैसे कनाडा , UK , संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में रहने वाले कुछ सिखों में इसका प्रभाव दिखता है और इसके पिछे भी भारत देश के दुश्मनों का हाथ माना जाता है | 

ऑपरेशन ब्लूस्टार क्या है ?

     साल 1984 में 1 जुन से लेकर 8 जुन के बीच स्वर्ण मंदिर मे छिपे भारी हथियारों से लैस आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए तत्कालीन केन्द्र सरकार के आदेश पर चलाया गया सैन्य अभियान था | 

     6 जुन 1984 को स्वर्ण मंदिर के भीतर भारतीय सेना द्वारा एक व्यापक अभियान चलाया गया और अलगाववादी आतंकी जनरैल सिंह भिंडरावाला तथा उसके समर्थकों को मार गिराया गया | 7 जुन 1984 को स्वर्ण मंदिर भारतीय सेना के नियंत्रण में आ गया | 

     ऑपरेशन ब्लूस्टार में भारतीय सेना के कुल 83 जवान वीरगती को प्राप्त हूए तथा कुल 493 खालिस्तानी समर्थक एवं आमजन मारे गए | 

सिख विरोधी दंगा या नरसंहार 1984 ?

     इसी ऑपरेशन के कारण उत्पन्न हुई सरकार विरोधी एवं भारत विरोधी भावनाओं का परिणाम था की 4 महीने बाद 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन कांग्रेसी केन्द्र सरकार की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को उनके ही 2 सिख सुरक्षा गार्डों ने गोली मारकर हत्या कर दी | 

     तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली समेत पुरे भारत में सिखों के विरुद्ध व्यापक दंगे हूए या यू कहे तो नरसंहार हुआ | इस नरसंहार में सरकारी आंकडो़ के अनुसार 4 हजार से ज्यादा सिख और हिन्दु मारे गए जबकि तत्कालीन कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि यह संख्या 15 हजार से लेकर 26 हजार के बीच थी | 

      भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली समेत पुरे भारत में सिखों के विरुद्ध जो व्यापक दंगे हूए कुछ किताबों , मिडिया रिपोर्ट्स , तत्कालिन सरकारी अफसरों के विडियों इंटरव्युस के अनुसार कहें तो इसे भी कांग्रेस समर्थीत बताते हैं | यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है |

 परन्तु परिस्थितियां चाहे जो रही हो राजनीतिक महत्वाकांक्षाए या मजबूरी मगर सत्य तो यह है की 1984 का सिखों तथा हिन्दुओं का सामूहिक नरसंहार मानवता के माथे पर एक काला धब्बा है जिसे शायद समय ही भर पाए | मानवता को ही किसी देश की सफलता का आधार होना चाहिए और हमें गर्व होना चाहिए की भारत सदा से ही साझा मानव संस्कृतियों का पोषक रहा है |


 

मंगलवार, 12 जनवरी 2021

अप्रकाशित सत्य 17 , स्वामी विवेकानन्द का स्नातनी नजरिया


     कक्षा पांचवी से लेकर दसवी तक मैने जिस स्कूल में पढा़ है उसका नाम है स्वामी विवेकानन्द स्कूल कुछ तो यह भी वजह है कि मेरे मन में तभी से स्वामी विवेकानन्द को जानने की इच्छा होती थी धीरे धीरे , जैसे जैसे में स्वामी विवेकानन्द को पढ़ता गया मेरी इन्हे और जानने की इच्छा बढ़ती गई |

     स्वामी विवेकानन्द को इतना पढ़ने के बाद मैने जाना के स्वामी विवेकानन्द का पुरा जीवन ही स्नातन धर्म का वह नजरिया है जो कहीं न कहीं अभी तक छुपा है बावजूद इसके की स्वयं स्वामी विवेकानन्द ने अपने जीवन काल में इसी का प्रचार प्रसार किया और आम जन तक स्नातक का दर्शन पहुचाया |

      शिकांगों के विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द का दिया वो ऐतिहासिक भाषण सबने पढा़ एवं सुना होगा स्नातन का प्रमुख विचार है जो सर्व धर्म समभाव का परिचायक है जो अपनी जन्मभूमि को मां मानता है | स्नातन धर्म जीवन के हर क्षण में प्रकृति से प्रेम की सिख देता है |

      आज के आधुनिक समय और समाज में जीवन के कई संघर्षों में हमारी युवा पीढी़ के सामने खडी़ कई चुनौतीयों में एक चुनैती अपना आदर्श चुनने की भी है यदि सही आदर्श चुनना चुनैती नही होती तो देश के एक बडे़ शिक्षा संस्थान में वहा के छात्रों द्वारा स्वामी विवेकानन्द की प्रतिमा नही तोडी़ जाती | विचारधारा कि विभिन्नता के कारण कुछ लोगों को लगने लगा है कि स्वामी विवेकानन्द केवल स्नातनियों या हिन्दूओं के हैं जबकि यह विचार सर्वथा गलत है स्वामी विवेकानन्द सम्पुर्ण भारत ही नही सारी मानवता के हैं |


शनिवार, 26 दिसंबर 2020

अप्रकाशित सत्य 16 , श्री गुरु गोविंद सिंह के दो छोटे साहिबजादों को मुगलों ने क्यों चुनवाया था दीवार में ?

 

     अभी तक आपने सलिम आनारकली की कहानी सुनी होगी जिसके अनुसार सलिम मुगल शाहंशाह अकबर का बेटा है और वह अनारकली नाम की रक्काशा ( नृत्यांगना ) से प्यार करता है शाहंशाह अकबर को सलिम का एक नृत्यांगना से प्यार करना पसंद नही आता और शाहंशाह अकबर अनारकली को पहले कैदखाने में कैद कराता है फिर दीवार में चुनवा देता है | यह कहानी सच्ची है या फिल्मी ये तो खुदा ही जानते हैं मगर मैं ये दावे के साथ कह सकता हुं की दीवार में चुनवा देने की जो सच्ची कहनी मैं आपको बता रहा हूं वो अपने अभी तक न कहीं पढी़ होगी न सुनी होगी |

      सिख संप्रदाय की स्थापना का मुल और मुख्य उद्देश्य विदेशी आक्रांताओ से हिन्दुओ कि रक्षा करना था | खालसा पंथ के संस्थापक सिखों के दशमें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी को एक महान स्वतंत्रता सेनानी , कवि तथा न्याय और वीरता की मुर्ति माना जाता है | श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने ही 1699 में खालसा यानि खालिस (शुद्ध) पंथ की स्थापना की |

      श्री गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म पौष सुदी 7वी सन् 1666 को पटना में माता गुजरी जी तथा पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के घर में हुआ था | श्री गुरु गोविंद सिंह जी की मृत्यु 7 अक्टूबर सन् 1708 ई में नांदेड महाराष्ट्र में हुई थी | 

      इन्हीं श्री गुरु गोविंद सिंह जी के चार साहिबजादों मे से दो बडे़ साहिबजादे साहिबजादा अजीत सिंह व जुझार सिंह चमकोर साहिब की लडा़ई में शहिद हुए | वहीं दो छोटे साहिबजादे 7 साल के साहिबजादा फतेह सिंह और 9 साल के साहिबजादा जोराबर सिंह को सुबा सरहिंद में माता गुजरी के साथ ठंडे बुर्ज पर 1705 में 3 दिन तथा 2 रातों के लिए मुगलों ने रखा था | जब इस यातना के बाद भी दोनों छोटे साहिबजादों ने अपना धर्म परिवर्तन करने से कडे़ शब्दों में मना कर दिया तो उन्हें मुगलों ने जिंदा दीवार में चुनवा दिया | इस तरह निर्दयता पुर्वक दोनों छोटे मासुम पोतों की हत्या के बाद उनकी दादी माता गुजरी जी का भी देहांत हो गया |

       इसी वीरता को नमन करने के लिए 25 , 26 और 27 तारिखों कों शहीदी जोड मेले का आयोजन किया जाता है | अपना धर्म परिवर्तन करने के लिए बल प्रयोग करने का मुगलों का यह तो मात्र कुछ हिस्सा है जिसे आज हम चर्चा कर रहें है और भी न जाने कितनी तरह की यातनाएं सिखों और हिन्दुओं ने सहकर और अपना बलिदान देकर अपना धर्म बचाया है |

      इन दो छोटे बालकों की वीरता भारत के हर बच्चे के लिए उदाहरण होना चाहिए था मगर सबसे शर्म की बात यह है कि स्वयं मेरी उम्र 22 वर्ष से ज्यादा है जब मैं ये लेख लिख रहा हूं पर मुझे अभी तक इस सत्य के बारे में पता ही नही था | 

      और मैं ये पुरे यकीन के साथ कह सकता हूं की यदि मैं संघ लोक सेवा आयोग के परीक्षा के तैयारी के लिए इतिहास को इतनी गहनता से नही पढ़ता और सुनता तो मुझे इस सत्य का शायद कुछ और वर्षों तक पता ही नही चलता | और मैं ये पुरे विश्वास के साथ कह सकता हूं की आज भी ये सत्य भारत की 95% मेरी समकक्ष युवा पीढी को पता नही होगा | क्योंकि हमें हमारी स्कुल की किताबों में इसे और इस तरह के अन्य इतिहास को नही पढाया गया है और अब यह कर्तव्य है इस सत्य को जानने वालों का है की हम इस सत्य को किसी न किसी तरिके से अपनी वर्तमान व भावी युवा पीढी तक पहुंचाए |


बुधवार, 16 दिसंबर 2020

अप्रकाशित सत्य 15 , अनुच्छेद 48 क्या है ? क्या अनुच्छेद 48 गो हत्या पर प्रतिबंध लगाने की बात कहता है ? किन किन राज्यों में है गो हत्या पर पुर्ण प्रतिबंध और किन किन राज्यों में हो रही है गो हत्या ? आइए विस्तारपुर्वक चर्चा करें |

अनुच्छेद 48 क्या है ?

     भारत का संविधान भारत के लोकतंत्र का आधार स्तंभ है | अनुच्छेद 48 हमारे संविधान के भाग 4 राज्य की नीति के निर्देशक तत्व में वर्णित कई अनुच्छेदों मे से एक है | भारत के संविधान में उल्लेखित यह निर्देशक तत्व भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकार नही हैं इसका मतलब यह है कि कोई भी भारतीय नागरिक इनकी सुरक्षा के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा नही खटखटा सकता है | संविधान के अनुसार राज्य , राज्य की नीति के निर्देशक तत्व में वर्णित अनुच्छेदों को लागु करने के लिए बाध्य नही हैं |

क्या अनुच्छेद 48 गो हत्या पर प्रतिबंध लगाने की बात कहता है ?

     अनुच्छेद 48 के अनुसार 'कृषि और पशुपालन का संगठन-राज्य , कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करने का प्रयास करेगा और विशिष्टतया गायों और बछडो़ तथा अन्य दुधारु और वाहक पशुओं की नस्लों के परिरक्षण और सुधार के लिए और उनके वध का प्रतिषेध करने के लिए कदम उठाएगा' |

     यदि आप इस अनुच्छेद को ध्यान पुर्वक पढे़गे तो पाएंगे कि यह अनुच्छेद भारत के सभी राज्यों को यह निर्देशित करता है कि सभी राज्य गायों और बछडो़ तथा अन्य दुधारु और वाहक पशुओं की नस्लों के परिरक्षण और सुधार के लिए और उनके वध का प्रतिषेध करने के लिए कदम उठाए |

भारतीय संस्कृति में गाय की महत्ता :-

     बैदिक काल से लेकर आज तक स्नातनी हिन्दू गाय की पुजा करते आ रहे हैं और शिर्फ हिन्दू ही क्यों बौद्ध , जैन और सिख भी गाय की पुजा करते हैं सम्मान करते हैं और गाय को मां का दर्जा प्रदान करते हैं | गाय को धन , शांति और सुख समृद्धि का प्रतिक माना जाता है और इसके दुध को अमृत माना जाता है | आज भी भारत में करोडो़ परिवार ऐसे हैं जिनकी आय गाय अथवा भैस का दुध बेचकर या दुध से बनने वाले उत्पादों को बेचकर प्राप्त होती है | हममे से कई लोग बचपन में अपनी मां के दुध के साथ साथ गाय का निर्मल दुध पीकर बडे़ हुए हैं या हो सकता है कि आज भी आप दुध खाते हो या पीते हो |

भारत के किन किन राज्यों में है गो हत्या पर पुर्ण प्रतिबंध ?

     भारत के इन 10 राज्यों हिमाचल प्रदेश , पंजाब , हरियाणा , उत्तराखंण्ड , उत्तर प्रदेश , राजस्थान , गुजरात , मध्य प्रदेश , महाराष्ट्र तथा छत्तीसगढ में गो हत्या पर पुर्ण प्रतिबंध लागु है | भारत में इन चार केन्द्र शासित प्रदेशों दिल्ली , चंडीगढ , जम्मु कश्मीर तथा लद्दख में भी गो हत्या पर पुर्ण प्रतिबंध लागु है |

भारत के इन 8 राज्यों बिहार , झारखंड , ओडिशा , तेलंगाना , आंध्रप्रदेश , तमिलनाडु , कर्नाटक तथा गोवा में गो हत्या पर आंशिक प्रतिबंध लागु है | इन 8 राज्यों के साथ साथ 3 केन्द्र शासित प्रदेशों दादर और नगर हवेली दमन और दीव , पांडिचेरी तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समुह में भी आंशिक रुप से गो हत्या पर प्रतिबंध लागु है |

भारत कें किन किन राज्यों में हो रही है गो हत्या ? 

     भारत में इन 10 राज्यों असोम , केरल , बंगाल , अरुणाचल प्रदेश , मणिपुर , मेघालय , मिजोरम , नागालैंड , त्रिपुरा तथा सिक्किम में गो हत्या पर कोई प्रतिबंध लागु नही है | यानि इन राज्यों में गो हत्या करने , बीफ खाने तथा बेचने पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नही है ना राज्य में इसे प्रतिबंधीत करने को लेकर कोई कानून है | इसी तरह का एक मात्र केन्द्र शासित प्रदेश लक्षदीप है जहा गो हत्या पर कोई प्रतिबंध लागु नही है ना तो बीफ खाने और बेचने पर है |

     यदि आप गौर करेंगे तो पाएंगे की जिन राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों में गो हत्या तथा बीफ खाने एवं क्रय विक्रय करने पर कोई प्रतिबंध नही है 2011 कि जनगणना के अनुसार इन राज्यों की बहुसंख्यक आबादी या तो ईसाई है या तो मुस्लिम है | ऐसा नही है कि इन राज्यों में केवल बीफ ही आहार का एक मुख्य जरिया हो इसके उलट यहा गायों के अलावा सुअर , भैस , कुत्ते , टर्की , बतख , सांप , भेंड़ , बकरी आदि का मांस भी काफी मात्रा में खाया जाता है |

     कई वैज्ञानिक शोधों से ज्ञात हुआ है कि गाय का दुध बहुत ही पौष्टीक आहार है जो मानवों को कई जानलेवा बिमारीयों से बचाने की शक्ति शरीर को प्रदान करता है | और केवल दुध ही नही गाय के दुध से बनने वाले अनेक भोज्य पदार्थ जैसे घी , माखन , दही , छाछ , खोया , योगट , पनीर आदि मानव शरीर के विकास तथा स्वास्थ के लिए बहुत लाभदायक हैं | यह सारे भोज्य पदार्थ इतने स्वादीष्ठ तथा लाभदायक हैं कि इनके सम्मुख बीफ खाने से मिलने वाला स्वाद तथा पोषण ना के बराबर है |