Thursday, June 17, 2021

अप्रकाशित सत्य 21 , शेक्सपियर ने कहा था 'नाम में क्या रखा है', तो आइए चर्चा करते हैं कि नाम में क्या रखा है | आखिर शहरों के नाम बदले जाने पर क्यों होता है विरोध |

अप्रकाशित सत्य 21 , शेक्सपियर ने कहा था 'नाम में क्या रखा है', तो आइए चर्चा करते हैं कि नाम में क्या रखा है | आखिर शहरों के नाम बदले जाने पर क्यों होता है विरोध |


     अक्सर आपने लोगों को ये कहते हुए सुना होगा की शेक्सपियर ने कहा था नाम में क्या रखा है , जब उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद का नाम बदलकर उसका पुराना नाम प्रयागराज रखा था तब हमारे देश में तमाम लोगों ने उत्तर प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री का विरोध करते हुए यही बात कही थी की नाम क्यों बदल रहें हैं नाम में क्या रखा है , ये तो हिन्दूवादी सरकार है जो इतिहास को खत्म करना चाहती हैं आदी आदी |

     अब जो मुख्य बात है वो यह है कि क्या सच में नाम में कुछ नही रखा | हम सब ने बचपन में संज्ञा कि परिभाषा में यह पढ़ा है कि किसी व्यक्ति वस्तू या स्थान के नाम को संज्ञा कहा जाता है | इसे और अधिक विस्तार देने के लिए मैं आपसे एक प्रश्न पुछना चाहता हूं कि यह जो कोट है 'नाम में क्या रखा है' वो किसका है ? , मै जानता हूं के आप जबाब देंगे यह कोट मशहूर कवि लेखक एवं चिंतक शेक्सपियर का है | अब आप स्वयं सोचीए कि नाम में क्या रखा है आप यह बात उस व्यक्ति के नाम से जानते हैं जिसने इसे कहा है यानी यदि नाम में कुछ नही रखा होता तो शेक्सपियर ने ये कोट लिखने के बाद नीचे ऑथर के रुप में अपना नाम नही लिखा होता |

     एक बार इसी बात को लेकर मेरी एक मित्र के साथ चर्चा हो रही थी तभी उसने भी यही बात कही कि शेक्सपियर ने कहा था की 'नाम में क्या रखा है' तभी मैने तुरंत इसके जबाब में यह बात कहा की तुम्हारा नाम आदित्य है मगर अब से मै तुम्हें बेवकूफ कहूंगा | मेरे इतना कहते ही वह नाराज हो गया और मुझ पर झल्लाने लगा , तब मैने उसे शांति से ये बात कहा कि मेरे दोस्त अभी तुम ही तो कह रहे थे की नाम में क्या रखा है तो फिर मै तुम्हें आदित्य कहूं या बेवकूफ क्या रखा है दोनों नाम ही तो हैं | तब तुम आदित्य कि जगह बेवकूफ को अपना नाम स्वीकार करलो इसके बाद वह कहने लगा के ऐसा कैसे हो सकता है ऐसा हो ही नहीं सकता |

     जी बिलकुल सत्य है ऐसा नही हो सकता गधे को हाथी और हाथी को गधा नही कहा जा सकता जबकि दोनों ही जाति वाचक संज्ञा यानी की नाम ही हैं | यही तर्क है जिसकी वजह से इतिहास में हुई गलतियों को सुधार जा रहा है और सुधारा जाना भी चाहिए | अब तक फैजाबाद को अयोध्या 

इलाहाबाद को प्रयागराज 

गुड़गांव को गुरुग्राम और 

आदी स्थानों के नामों को उनके पुराने या प्रचीन नाम लौटाएं जा चूके है मगर अभी और बहुत कुछ बाकी है जिसे उसकी असली पहचान नही मिली है |

      हमारे देश में बहुत अधिक संख्या में शहरों और कस्बों के नाम बाहर से आए अरब , मंगोल , तुर्क , अफगानी और मुगल आक्रमणकारी के नाम पर हैं जो अब भी उनके किए नरसंहार , बलात्कार और अत्याचारों की अनुभूति कराते है मगर अब समय आ गया है कि हमें इन नामों को बदलना चाहिए और भारत की आजादी की लड़ाई में अपना जीवन बलिदान करने वाले लाखों महान क्रांतिकारीयों के नाम पर रखना चाहिए जिससे हमारे भारत देश की आने वाली पीढ़ीयां इनसे प्रेरणा ले सकें |



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