शनिवार, 18 अक्टूबर 2025

लेख - स्वयं सम्पादकीय 05, आधुनिक स्त्री विमर्श और स्त्री धन।

     जब से स्त्री विमर्श प्रारंभ हुआ है तब से हर स्त्री विमर्श चिंतक ने यही प्रयास किया है कि किस तरह से समाज में चली आ रही रुढ़िवादी सोच को बदला जाए और नारी को सम्मान तथा समानता के महत्व को स्थापित किया जाए एवं नारी जाति को उसका अधिकार दिलाया जाए और वर्तमान में देश में केन्द्र तथा राज्यों कि सरकारों द्वारा प्रदत्त महिला आरक्षण इसी का फल है और कई तरह के कानूनी अधिकार जैसे तलाक के बाद पति से भरण पोषण का अधिकार इसी का हिस्सा है मगर अब ये आधुनिक स्त्री विमर्ष में किस तरह का पागलपन है माफ करिएगा मेरे पास इससे उपयुक्त कोई शब्द नहीं है इसे लिखने के लिए की एक स्त्री अगर कमाती है तो उस पर पुरा हक मात्र उस स्त्री का होना चाहिए क्या आज तक किसी पुरुष ने ये कहा है कि मैं जो कमाता हूं वो तो पुरुष धन है वो सब का सब मेरा होना चाहिए?, नही उसकी कमाई पर तो पत्नी का हक है, बच्चों का हक है, मां बाप का हक है, तो धर में यदि कोई स्त्री कमाती है तब भी पुरे परिवार का हक क्यों नहीं होना चाहिए। 


     अब मैं जानता हूं कि इस पर कुछ लोग तर्क देंगे कि ये तो समाज हमेशा पुरुषवादी रहा स्त्रियां उपेक्षित रहीं शोषित रही तो स्त्री धन होना चाहिए और परिवार चलाना पुरुष की जिम्मेदारी है ,तो इस पर मेरा एक सीधा सा प्रश्न है कि क्या परिवार केवल पुरुष का ही होता है स्त्री की उसमें कोई जिम्मेदारी नहीं?, क्या वो अपने बच्चों की मां नहीं है?, क्या पति के मां बाप उसके लिए कोई नही?, जब परिवार दोनों का है तो जिम्मेदारियां भी दोनों की होनी चाहिए। स्त्री पुरुष एक समान हैं समाज मे इसी को स्थापित करने कि आवयश्कता है ना।


     पति-पत्नी को गाड़ी के दो पहियों की संज्ञा दी जाती है और दोनों संतुलित रहकर ही परिवार की गाड़ी को चलाते हैं तो फिर एक पहिया एक तरफा अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त कैसे हो सकता है क्या इससे जीवन रुपी गाड़ी चल पाएगी, एकदम नहीं। मेरा मानना है कि आधुनिक स्त्री विमर्श को संशोधित करते हुए स्त्री धन के लक्ष्यों को पुरी तरह से समावेशी और जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए ताकि समाज और परिवार में समानता के मुल्कों को स्थापित किया जा सके। 


     स्त्री धन समाज में एक नए तरह की असमानता है जो परिवार को बनाएं रखने का सारा बोझ अकेले पुरुष के कंधे पर लाद देता है। स्त्री विमर्श पर बात करने वाली हर एक स्त्री को ये ध्यान रखना चाहिए कि यदि आप समाज में समानता चाहती हैं तो आपको अपने समानान्तर एक असमानता का विचार लेकर नही चलना चाहिए।


     स्त्री धन का पुरा विचार ही मुलरुप से असमानता का पर्याय है और यही कारण है कि जब भी कोई पारिवारिक स्त्री चाहे वो कितनी भी शिक्षित हो और चाहे उसका जीवनसाथी कितना भी अधिक धन अर्जित करता हो या कितने भी प्रगतिशील विचारों वाला हो वो स्त्री धन के एकाधिकार से जनित असमानता को सह नही पाता और फिर वो परिवार बिखर जाता है। स्त्रियां को ये स्वीकार करना चाहिए कि स्त्री धन उनका एकाधिकार नही हो सकता जिस तरह से पुरुष धन जैसा कोई विचार समाज में नही है। स्त्री विमर्श को आगे लेकर चलने वाले सभी को यह स्वीकार करना होगा कि समानता कि बात असमानता का पक्षधर होकर नही की जा सकती।

सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

लेख - स्वयं सम्पादकीय 04, सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की चाहत और डॉ भीमराव अम्बेडकर के नाम का दुरुपयोग और भारतीय राजनीति पर एक आलोचना।

 

        डॉ अंबेडकर साहब ने खुद एक जगह कहा है कि संविधान बनाने का पुरा श्रेय मेरा नही है इसमे बीएन राव की महत्वपूर्ण भूमिका है और जब संविधान बनकर तैयार हो गया था तब संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने डॉ अम्बेडकर का विशेष धन्यवाद किया था संविधान निर्माण मे उनके अहम योगदान के लिए यह भी तध्य है जिसे कोई नकार नहीं सकता। बाबा साहब डॉ अंबेडकर के नाम की राजनीति करने वालों ने इनका स्तर इतना नीचे गिरा दिया है कि हर ऐरा गैरा उनकी आलोचना करने लगा या स्पष्ट कहें तो अपशब्द कहने लगा है सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए। 


     बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर जितना खुला और बेबाक सच बोलने वाला व्यक्ति आधुनिक भारत के इतिहास में उनके अलावा दुसरा नहीं मिलेगा ये बात मैं पुरे विश्वास से कह सकता हूं। बाबा साहब डॉ अंबेडकर ने जो भी सोचा उसे लिखा और बोला चाहे वो गांधी को लेकर हो, दलितों को लेकर हो,मुसलमानों को लेकर हो, हिन्दू धर्म छोड़ने और बौद्ध धर्म अपनाने को लेकर हो या भारत के विभाजन को लेकर हो। 


     हर बार जब भी कोई हिन्दू धर्म को लेकर विवाद होता है तो तुरंत ये कहा जाता है कि डॉ भीमराव अंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई थी लेकिन कोई ये नहीं बताता की जब 1953-54 में हिन्दू कोड बिल लाया गया था तो इसके विरोध में बाबा साहब अंबेडकर ने कैबिनेट छोड़ दिया था क्योंकि उनका मानना था कि सुधारों की जरुरत हर समाज में है मुसलमानों में भी, लेकिन हिन्दू कोड बिल केवल हिन्दुओं के लिए लाया जा रहा है और इसे पारित भी नही करवाया जा सका। यही नहीं बाबा साहब अंबेडकर ने एक जगह यह भी कहा है कि उन्हें संस्कृत पढ़ने में महारत नही है लेकिन वह पढ़ सकते हैं उन्होंने जो अपनी किताबें लिखी है या जितना हिन्दू धर्म को समझा है वो अंग्रेजी के अनुवादों के अनुसार भी समझा है और इसके बारे मे लिखा और पढ़ा जा सकता है। 


     संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़ने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था बाबा साहब ने। कुछ ही दिनों के बाद जो संविधान बना था उससे बाबा साहब स्वयं नाखुश हो गए थे और इसकी आलोचना की थी। 32 डिग्रियां हासिल करने वाला और 12 से अधिक किताबों की रचना करने वाला विलक्षण और बहुमुखी प्रतिभा का धनी वो भारत रत्न महापुरुष कुछ राजनैतिक स्वार्थों के लालची नेताओं के कारण इन अनायास आलोचना का शिकार हो रहा है। 


     जो भी लोग डॉ भीमराव अंबेडकर को लेकर कोई धारणा बना रहे हैं या कोई आलोचना कर रहे हैं या फिर उन्हें समझना चाहते हैं तो मेरा उनसे विनम्रता से आग्रह है कि पहले अच्छी तरह से डॉ भीमराव अंबेडकर को पढ़िए और फिर कोई धारणा बनाइये अब तो उनका पुरा कलेक्टिव वर्क हिन्दी अंग्रेजी समेत कई भाषाओं में उपलब्ध है और वो भी नहीं कर पा रहे हैं तो चैटजीपीटी से पुछ लिजिए।

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025

लेख - स्वयं सम्पादकीय 03, मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण को बढ़ाने का मुद्दा बिहार चुनाव और सवर्ण वोटबैंक की नाराज़गी का डर के हर पहलू पर एक चर्चा।


क्या मध्यप्रदेश की मोहन यादव सरकार के द्वारा ओबीसी आरक्षण के लिए उच्चतम न्यायालय में पैरवी करने से भाजपा को बिहार के विधानसभा चुनाव में कोई बड़ा नुक्सान हो सकता है या फिर इसका कोई लाभ हो सकता है इस पर चर्चा होनी चाहिए। कुछ सवर्ण बुद्धजीवी ऐसा कह रहे हैं कि इसका नुकसान होगा भाजपा को और दुसरे पक्ष यानी ओबीसी समाज के चिंतक लाभ होना बता रहे हैं मेरा मानना है इसका प्रभाव बहुत सीमित होगा चाहे भाजपा के पक्ष मे हो या खिलाफ हो। 


मैं इन बुद्धिजीवियों से असहमत होते हुए ये कहता हूं कि बिहार का चुनाव समीप है तो आप ऐसा कह सकतें हैं लेकिन बाकि और कहीं अगर फायदा नहीं होगा तो नुकसान नहीं होगा। 


2026 की जनगणना और 2027 का परिसीमन ध्यान में हैं बीजेपी के शायद और कहीं न कहीं संघ को भी होगा ही। 2024 के लोकसभा चुनावा परिणामों से विशेष समुदाय के वोट बैक का भ्रम टूट गया है। भाजपा को यह यकिन हो गया है लगता कि 2029 का लोकसभा चुनाव सवर्ण वोटबैंक का भ्रम भी तोड़ देगा और तब तो 33% महिला आरक्षण भी होगा और सभी वर्गों की महिलाओं के लिए होगा। परिसीमन के बाद लोकसभा और विधानसभा साथ ही राज्यसभा कि सदस्य संख्या बढ़ना तय है और यह एससी एसटी वर्ग में तो बढ़ेगी ही साथ ही ओबीसी प्रभावित क्षेत्रों में भी बढ़ेगी तो जो भी दल इन क्षैत्रो कि जनसंख्या को साध पाएगा वही सत्ता पर काबिज होगा और अगर ऐसे मे यदि भाजपा अब भी सवर्ण वोटबैंक के दबाव मे आकर ओबीसी समाज के मांगों और भावनाओं कि उपेक्षा करती है तो यह राजनीतिक रुप से आत्मघाती हो सकता है और यह भी ध्यान मे रखना चाहिए कि केंद्र सरकार ने स्वयं जाती जनगणना कराने को स्वीकार किया है। 


मोहन यादव कैबिनेट तीन बच्चों को स्वीकार्यता देने वाली है मध्यप्रदेश में और यही बात संघ प्रमुख ने पिछले दिनों कही थी तो ये तालमेल कैसे बन रहा है ये भी पुछा जाना चाहिए। ताली एक ही हाथ से बज रही हैं या दोनों हाथों से ये भी पुछा जाना चाहिए। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा खुद को और अपने वोटबैंक को विविधता प्रदान करने का प्रयास कर रही है और मेरा मानना है कि यह बहुत ही उत्तम है हर लिहाज से चाहे राजनीतिक रुप से हो या सामाजिक रुप से यदि आप लगातार सत्ता में बने रहना चाहते हैं तो।