Saturday, July 31, 2021

अप्रकाशित सत्य 23 , डा. आंबेडकर के बारे में वो तथ्य जो आप आज तक नहीं जानते होंगे


     बाबा साहब के बारे में अपने पिछले लेख में मैने उनके जीवन के बारे में बताया था जिससे ज्यादातर लोग परिचित होंगे लेकिन इस लेख में मै डॉक्टर भीमराव आंबेडकर से जुड़े ऐसे तथ्यों के बारे में बता रहा हूं जिसे कुछ चुनिंदा लोगों ही जानते हैं या वो लोग जान पाते हैं जो डा आंबेडकर को अपने अध्ययन का मुख्य हिस्सा बनाते हैं 

     हम सब बाबा साहब को संविधान के निर्माता के रुप में जानते हैं लेकिन बाबा साहब एक वकील होने के साथ साथ समाज सुधारक , पत्रकार , लेखक , संपादक , शिक्षाविद , विधिवेत्ता तथा अर्थशास्त्री भी थे | संविधान के अलावा बाबा साहब ने भारत के बैकिंग सिस्टम , इरिगेशन सिस्टम , इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम तथा रेवेन्यु सिस्टम पर भी महत्वपूर्ण योगदान दिया | यहां हम कुछ तथ्यों पर गौर करेंगे जो सामान्य जन मानस को नही पता |

1. किया था राज्यसभा में संविधान को जलाने का ऐलान 

   23 सितंबर सन् 1953 को राज्यसभा में कहा था कि इसकी यानी संविधान की हमें कोई जरुरत नहीं है क्योंकि ये किसी के लिए भी अच्छा नही है | देश को अल्पसंख्यक एवं बहुसंख्यक में नही बांट सकते |

19 मार्च 1955 डा अनूप सिंह ने डा अांबेडकर के बयान का मामला उठाया तो डॉक्टर अांबेडकर ने इसके जबाब में कहा था कि हमने संविधान बनाकर एक मंदिर बनाया था भगवान के रहने के लिए लेकिन इसमें अब राक्षस रहने लगे इसलिए इसे तोड़ने के अलावा हमारे पास कोई और चारा नही है |

2. मुस्लिम और ईसाई नही बल्कि बौद्ध पंथ अपनाया था 

   1935 में ही महाराष्ट्र में दिए अपने एक भाषण में बाबा साहब ने कह दिया था कि मै पैदा जरूर हिन्दू हुआ हूं लेकिन हिन्दू मरुंगा नही | इसके बाद बाबा साहब ने 20 वर्षों तक सनातन धर्म समेत सभी पंथों का अध्ययन किया इसके बाद बौद्ध पंथ अपनाने का निर्णय लिया | बाबा साहब का मानना था कि बौद्ध पंथ ही सबसे अधिक तर्क संगत है | 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर कि दीक्षाभूमि में विधिवत धर्म परिवर्तन किया तथा उनके साथ उनके समाज के 385000 लोगों ने भी धर्म परिवर्तन करके बौद्ध पंथ अपना लिया था |

3. डॉक्टर अांबेडकर ने अनुच्छेद 370 का ड्राफ्ट बनाने तक से इनकार कर दिया था 

   1949 में कश्मीरी नेता शेख अब्दुल्लाह डॉक्टर अांबेडकर से मिलने इसी के लिए गए थे कि संविधान में जम्मू कश्मीर को विशेष प्रावधान दिए जाएं जिसे बाद में अनुच्छेद 370 के रुप में लागू किया गया | मगर बाबा साहब ने इसका ड्राफ्ट बनाने तक से मना यह कह के कर दिया था कि यह भारत के हित के खिलाफ है और मै ये पाप नही करूंगा |

4. इस्लाम के बारे में ये कहा है डॉक्टर भीमराव अांबेडकर ने 

   बाबा साहब ने एक स्थान पर ये स्पष्ट शब्दों में कहा है कि 'इस्लाम एक सच्चे मुसलमान को कभी भी भारत को अपनी मातृभूमि तथा हिन्दू को अपने सगे के रुप में मान्यता नही दे सकता |

5. उर्दू को राष्ट्र भाषा बनाने कि मांग को खारिज करते हुए ये लिखा था 

   जब उर्दू को भारत की राष्ट्र भाषा बनाने कि मांग कि जा रही थी तो संप्रदायीक आक्रमण नामक किताब के ग्यारहवाँ अध्याय में बाबा साहब ने लिखा - उर्दू ना तो भारत में बोली जाती है और ना ही यह हिन्दुस्तान के सभी मुसलमानों कि भाषा है | 68 लाख मुसलमानों मे से केवल 28 लाख ही उर्दू बोलते हैं |

     उपर वर्णित बिन्दुओं से यह स्पष्ट होता है कि आज राजनीतिक स्वार्थ के लिए जिस तरह से खुद को दलित नेता कहने वाले लोग डॉक्टर बी आर अांबेडकर का चित्रण करने का प्रयास करते हैं वह सर्वथा गलत है और लोग भी इन तथाकथित नेताओं कि बात में इसलिए आ जाते हैं क्योंकि उनके पास सही जानकारी का आभाव है और ये नेता नही चाहते कि ये सत्य आम जनता तक पहुंचे | 

     अक्सर आपने सुना होगा हर टीवी डिबेट में या किसी न किसी राजनीतिक आंदोलन में या धरना प्रदर्शन में कोई ना कोई नेता यह कहता हुआ मिल जाएगा कि हम बाबा साहब के बनाए संविधान को बचाने के लिए लड़ रहे हैं या बचाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि क्या बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर का बनाया संविधान वैसा ही था जैसा आज का हमारा संविधान है |

वर्तमान जो हमारा भारतीय संविधान है इसमें 100 से अधिक संरोधन हो चुके हैं साथ ही निम्न बदलाव भी संविधान में किए जा चुके हैं 

A. जब संविधान लागू हुआ था तब संविधान कि प्रस्तावना में समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्द नही थे इन शब्दों को संविधान कि प्रस्तावना में 42वे संविधान संशोधन से 1976 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा जोड़ा गया |

B. 26 नवंबर 1949 को जब संविधान अंगीकृत किया गया था तब इसमें तिथि और वर्ष बताने के लिए विक्रम संवत का उपयोग किया गया था जिसे आज भी संविधान कि प्रस्तावना में स्पष्ट पढ़ा जा सकता है तब से लेकर 1957 तक यही पंचांग भारत में प्रचलन में रहा |

मगर 22 मार्च 1957 को कांग्रेस की जवाहर लाल नेहरु सरकार के द्वारा विक्रम संवत के स्थान पर शक संवत को राष्ट्रीय पंचांग के रुप में अपनाया गया |

C. बाबा साहब के बनाए संविधान के प्रारंभिक पन्नों पर बने भगवान प्रभु श्री राम और माता सीता समेत भारत की संस्कृति को प्रदर्शित करने वाले चित्रों को संसद भवन के अतिरिक्त प्रकाशित होने वाली संपूर्ण भारत में संविधान की प्रतियों के लिए गैर जरुरी बना दिया गया है जिससे आज आम जनता को वो चित्र देखने के लिए भी उपलब्ध नही हैं |



Wednesday, June 23, 2021

अप्रकाशित सत्य 22 , क्या कन्या भ्रूण हत्या , बाल विवाह , पर्दा प्रथा , सती प्रथा जैसी कुप्रथाएं वास्तव में प्राचीनकाल से भारतवर्ष में प्रचलित कुप्रथाएं थी या भारतीय स्त्रीयों को विदेशी आक्रमणकारीयों से बचाव का तरीका थी ? आइए विस्तार से जाने |


     जैसा कि हम सब ने अपनी प्राथमिक शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा के दौरान शीर्षक में वर्णित सभी कुप्रथाओं के बारे में पढ़ा है और यह भी पढ़ा है कि किस तरह से समय-समय पर कुछ समाज सुधारकों के द्वारा इनका अंत किया गया | मगर क्या यह कुप्रथाएं भारतवर्ष में हमेशा से विद्यमान थी ? मतलब क्या यह सभी कुप्रथाएं प्राचीन भारत में भी थी ? , तो इसका जबाब है , नही | कई शोधी इतिहासकारों ने इस बात को पूरे प्रमाण के साथ साबित किया है कि यह सभी कुप्रथाएं प्राचीन भारत में नही थी |

     अब यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि आखिर जब यह कुप्रथाएं प्राचीन भारत में नही थी तो फिर यह सभी कुप्रथाएं मध्यकालीन भारत में कैसे उत्पन्न हो गयी | इसे समझने के लिए आपको भारत पर हुए बर्बर इस्लामीक आक्रमणों को समझना पड़ेगा | भारत पर सबसे पहला सफल इस्लामीक हमला अरबों का था | 712 ईसवी में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला तब किया जब सिंध के राजा दाहिर सेन ने पैगम्बर मोहम्मद साहब के परिवारजनों को अपने राज्य में शरण दिया | मोहम्मद बिन कासिम ने 17वी बार में सिंध पर सफलता प्राप्त की और राजा दाहिर सेन को मार डाला तथा राजा के पूरे परिवार के मर्दों को भी मार डाला जिसमें बच्चे भी सम्मिलित थे मगर उसने राजा कि सभी रानीयों तथा उसकी बेटियों को अपना यौन गुलाम बना लिया | यही नही उसने राजा दाहिर की कुछ बेटियों को अमिर अरबों को बेच दिया | यह भी इतिहास है कि जब वह सिंध विजय करने के बाद वापस लौट रहा था तो बहुत अधिक संख्या में धन के साथ-साथ कई हजार सिंधी महिलाओं को भी अपना यौन गुलाम बनाकर ले जा रहा था | कुछ लेखों में इसकी संख्या चार हजार तो कुछ में चालिस हजार तक बताई जाती है |

     तब के बाद से आगे भारत में जितने भी अरब , मंगोल , तुर्क , अफगान या मुगल आक्रमणकारीयों ने आक्रमण किए सब में यही दोहराया जाता रहा जिसमें कि राजा के युद्ध में हार जाने के बाद ये बर्बर आक्रमणकारी न केवल राजा कि रानीयों बेटियों बल्कि युद्ध में मारे गए सैनिकों की पत्नीयों और बेटियों को भी अपना यौन गुलाम बना लेते थे | इतिहास में सैकड़ों बार आपको यह भी देखने को मिलेगा की यह बर्बर आक्रमणकारी पूरे गांव भर के मर्देों एवं दस वर्ष से बड़े लड़को को और बूढी महिलाओं को मार डालाते थे और बाकी सभी औरतों और लड़कीयों को अपना यौन गुलाम और दासीयां बना लेते थे | 

     जब हम बात करते हैं कन्या भ्रूण हत्या की तो यह सबसे पहले भारत के उन क्षेत्रों में प्रारंभ हुई मानी जा सकती है जिस पर इन बर्बर इस्लामीक आक्रांताों ने कब्जा कर लिया | इसकी पर्याप्त संभावना थी की आम जन ने यह सोचकर कन्या भ्रूण हत्या करना आरंभ कर दिया होगा कि ना तो बेटी पैदा होगी या बड़ी होगी और ना ही इसे किसी मलेच्छ की यौन गुलाम बनकर पुरा जीवन जीना पड़ेगा | और अधिक पढ़ने के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

     बाल विवाह भी इसी तरह का बेटियों की अस्मिता की रक्षा का एक प्रयास लगता है जिसमें बेटी को जल्द से जल्द विवाह करके ससुराल भेज दिया जाता था ताकि यदि गांव या नगर पर इन बर्बर आक्रमणकारीयों का हमला हो और यदि पिता को कुछ हो जाए या उसे मार डाला जाए तो कम से कम बेटियों को बचाने के लिए उनका पति और ससुराल पक् के लोग जिम्मेदार हो | भारत के कुछ क्षेत्रों में बहुत कम मात्रा में बाल विवाह आज भी होता है जिसमें बंगाल विहार झारखंड छत्तीसगढ़ समेत कई अन्य राज्य भी सम्मिलित हैं | और अधिक पढ़ने के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

     आप इसी प्रकार के बचाव की भावना सती प्रथा में भी देख सकते हैं जहां स्त्रीयां स्वेच्छा से पति की चिता के साथ जलकर भस्म हो जाती थी ताकि कोई मलेच्छ जीवन भर उनकी अस्मिता से ना खेल सके जो वास्तव में महारानी पद्मावती के जौहर से प्रचलित और प्रेरित मानी जा सकती है और महारानी पद्मावती ने जौहर क्यों किया था आप ये भली भाँति जानते हैं | हां इस बात से इंकार नही है कि शुरुआत में जो बचाव के तरीके थे बाद में वो प्रथा बन गए और फिर इन्होने एक कुरीति का रुप धर लिया |और अधिक पढ़ने के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

     राजस्थान के कुछ जिलों में आज भी घूँघट की परंपरा है यह पर्दा प्रथा का ही एक रुप समझा जा सकता है जिसका मक़सद अनजान पुरुषों से अपने मुख को छुपाना है | इसके मूल में भी यही कट्टर बर्बर इस्लामीक आक्रमणकारीयों से बचाव का उद्देश्य है | दरअसल ये बर्बर इस्लामीक आक्रमणकारी ये करते थे कि जिस क्षेत्र में यह अधिकार स्थापित कर लेते थे वहा अपने सैनिकों को आदेश देते थे की जाओ और पुरा नगर घुमों और जितनी भी सुन्दर स्त्रीयां मिलें उन्हें उठाकर हरम (जहां ये आक्रमणकारी बादशाह अपनी बेगमों और यौन गुलामों को रखते थे) में पहुंचा दो | मैने किसी पुराने लेख में पढ़ा था की मुगल बादशाह जहांगीर के हरम में उसकी 300 बेगमें 5000 यौन गुलाम बनाई गई महिलाएं (रखैलें) और 1000 से ज्यादा कमसिन लड़के रखें गए थे | यह आंकड़े यह बताने के लिए काफी है कि यह बर्बर मुगल आक्रमणकारी किस तरह से हारे हुए राज्य की महिलाओं और यौन गुलाम बनाई महिलाओं को रखते थे | और अधिक पढ़ने के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

     ऐसा ही एक कृत्य आपने सुना होगा जिसमें आक्रांता मुगलों का एक बादशाह अकबर दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में औरतों का अंतरंग मीना बाजार लगाया करता था जिसमें औरतों को यह कहा जाता था की वह अपना चेहरा बीना ढके आए | दरअसल मीना का मतलब सुराही होता है तो मीना बाजार का मतलब सुराहीयों का बाजार या सुराही जैसी महिलाओं का बाजार | कहा तो यह भी जाता है कि इस मीना बाजार में अकबर स्वयं महिला बनकर रहता था और अपने सैनिकों को कहकर अपने पसंद की महिलाओं को अपने हरम तक पहुंचवाता था | इतना जानने के बाद यह समझना बहुत कठिन नही होना चाहिए की आखिर क्यों पर्दा या घूँघट जैसी प्रथाएं प्रचलन में आयी होंगी | और अधिक पढ़ने के लिए आप गूगल सर्च कर सकते हैं |

     आज के आधुनिक समाज में इस तरह की प्रथाओं का कोई स्थान नही हेना चाहिए और यह बहुत सुखद बात है कि इन में से कुछ कुप्रथाएं पुर्ण रुप से समाप्त हो चुकी है और जो थोड़ी बहुत हैं भी वह भी समाप्ति कि ओर बढ़ रही हैं | मगर इन सभी प्रथाओं के हर पहलु को जाने बीना इसे किसी समाज के सम्पूर्ण अस्तित्व पर नही थोपा जाना चाहिए | 







Thursday, June 17, 2021

अप्रकाशित सत्य 21 , शेक्सपियर ने कहा था 'नाम में क्या रखा है', तो आइए चर्चा करते हैं कि नाम में क्या रखा है | आखिर शहरों के नाम बदले जाने पर क्यों होता है विरोध |

अप्रकाशित सत्य 21 , शेक्सपियर ने कहा था 'नाम में क्या रखा है', तो आइए चर्चा करते हैं कि नाम में क्या रखा है | आखिर शहरों के नाम बदले जाने पर क्यों होता है विरोध |


     अक्सर आपने लोगों को ये कहते हुए सुना होगा की शेक्सपियर ने कहा था नाम में क्या रखा है , जब उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद का नाम बदलकर उसका पुराना नाम प्रयागराज रखा था तब हमारे देश में तमाम लोगों ने उत्तर प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री का विरोध करते हुए यही बात कही थी की नाम क्यों बदल रहें हैं नाम में क्या रखा है , ये तो हिन्दूवादी सरकार है जो इतिहास को खत्म करना चाहती हैं आदी आदी |

     अब जो मुख्य बात है वो यह है कि क्या सच में नाम में कुछ नही रखा | हम सब ने बचपन में संज्ञा कि परिभाषा में यह पढ़ा है कि किसी व्यक्ति वस्तू या स्थान के नाम को संज्ञा कहा जाता है | इसे और अधिक विस्तार देने के लिए मैं आपसे एक प्रश्न पुछना चाहता हूं कि यह जो कोट है 'नाम में क्या रखा है' वो किसका है ? , मै जानता हूं के आप जबाब देंगे यह कोट मशहूर कवि लेखक एवं चिंतक शेक्सपियर का है | अब आप स्वयं सोचीए कि नाम में क्या रखा है आप यह बात उस व्यक्ति के नाम से जानते हैं जिसने इसे कहा है यानी यदि नाम में कुछ नही रखा होता तो शेक्सपियर ने ये कोट लिखने के बाद नीचे ऑथर के रुप में अपना नाम नही लिखा होता |

     एक बार इसी बात को लेकर मेरी एक मित्र के साथ चर्चा हो रही थी तभी उसने भी यही बात कही कि शेक्सपियर ने कहा था की 'नाम में क्या रखा है' तभी मैने तुरंत इसके जबाब में यह बात कहा की तुम्हारा नाम आदित्य है मगर अब से मै तुम्हें बेवकूफ कहूंगा | मेरे इतना कहते ही वह नाराज हो गया और मुझ पर झल्लाने लगा , तब मैने उसे शांति से ये बात कहा कि मेरे दोस्त अभी तुम ही तो कह रहे थे की नाम में क्या रखा है तो फिर मै तुम्हें आदित्य कहूं या बेवकूफ क्या रखा है दोनों नाम ही तो हैं | तब तुम आदित्य कि जगह बेवकूफ को अपना नाम स्वीकार करलो इसके बाद वह कहने लगा के ऐसा कैसे हो सकता है ऐसा हो ही नहीं सकता |

     जी बिलकुल सत्य है ऐसा नही हो सकता गधे को हाथी और हाथी को गधा नही कहा जा सकता जबकि दोनों ही जाति वाचक संज्ञा यानी की नाम ही हैं | यही तर्क है जिसकी वजह से इतिहास में हुई गलतियों को सुधार जा रहा है और सुधारा जाना भी चाहिए | अब तक फैजाबाद को अयोध्या 

इलाहाबाद को प्रयागराज 

गुड़गांव को गुरुग्राम और 

आदी स्थानों के नामों को उनके पुराने या प्रचीन नाम लौटाएं जा चूके है मगर अभी और बहुत कुछ बाकी है जिसे उसकी असली पहचान नही मिली है |

      हमारे देश में बहुत अधिक संख्या में शहरों और कस्बों के नाम बाहर से आए अरब , मंगोल , तुर्क , अफगानी और मुगल आक्रमणकारी के नाम पर हैं जो अब भी उनके किए नरसंहार , बलात्कार और अत्याचारों की अनुभूति कराते है मगर अब समय आ गया है कि हमें इन नामों को बदलना चाहिए और भारत की आजादी की लड़ाई में अपना जीवन बलिदान करने वाले लाखों महान क्रांतिकारीयों के नाम पर रखना चाहिए जिससे हमारे भारत देश की आने वाली पीढ़ीयां इनसे प्रेरणा ले सकें |