Saturday, October 29, 2022

असंपादित सत्य 06 , धर्म ग्रंथों के भिन्नतापूर्ण अनुवादों से उत्पन्न हुई भ्रम की स्थिति पर एक परिचर्चा |


    कुछ दिनों पहले मैने पुरी श्रीमद्भगवत् गीता पढ़ी और अब भागवत पुराण पढ़ रहा हूं | पढ़ने के दौरान कुछ श्लोकों का हिन्दी अनुवाद मैं ने इंटरनेट पर देखा तो कुछ अनुवाद मैं जो पुस्तक पढ़ रहा था उससे थोड़े अलग मिले और जब मैने विडियोज देखे तो उनमें भी कुछ हद तक यही मिला | यही वजह है कि कहीं-कहीं भ्रम की सी स्थिति उत्पन्न हो गयी | पर ज्यादा ढूढ़ने पर स्थिति साफ हो गयी | फिर तो बस एक सिलसिले की तरह युट्युब पर डिबेट देखने लगा तब जाकर पता चला कि इस स्थिति ने तो भयावह रुप ले लिया है और ये स्थिति केवल विधर्मीयों की ही नही है समधर्मीयों की भी है | जिस पर मुझे लगता है कि एक विस्तृत परिचर्चा की जरुरत है | इसके लिए मेरे मत में इन तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए |


     हमारे कुछ धार्मिक ग्रंथों के बारे में कहा जाता है की वो लगभग 6000 BCE से भी ज्यादा पुराने हैं और इस बात पर गौर करें के ऐसा कहा जाता है इसकी असली डेट क्या है ये किसी को पता नहीं है और ये डेट्स भी संवतों के अनुसार अलग-अलग मानी जाती है | जैसे युधिष्ठिर संवत के अनुसार लगभग 8000 BCE विक्रम संवत के अनुसार 6000 BCE शक संवत के अनुसार 5000 से 4000 BCE शकांत संवत के अनुसार 3000 से 2500 BCE | वर्तमान की हमारी जो इतिहास की किताबें हैं उनमें ऐतिहासिक घटनाओं की जो डेटींग यानी की कालक्रम है वह शकांत संवत के अनुसार हैं जिसे शक संवत समझा जाता है ऐसा कुछ इतिहासकारों का मत हैं | इससे भी कालक्रम में बहुत सी अनियमितताए उत्पन्न हुई होंगी माना जा सकता है |


     अब हम यदि सबसे आखिर का संवत ले तो भी ये ग्रंथ आज के हिसाब से 5000 से लेकर 4500 साल पुराने हैं | अब हम अगर इनके अनुवाद की बात करें तो हमे समझना चाहिए कि इनका इन 4-5 हजार सालों में अब तक हजारों बार ट्रांसलेशन यानी की अनुवाद हुआ होगा और हमे इस तथ्य पर भी ध्यान देना चाहिए की किसी भाषा को जैसी वो आज हमारे समय में हैं वैसी होने में हजारों वर्ष का समय लगा है | जैसे मैं अपनी बात हिन्दी भाषा का उदाहरण देकर ही समझाना चाहूंगा | प्रारंभ में जो हिन्दी थी करीब 1000 वर्ष पूर्व वो प्राकृत के नाम से जानी जाती है आज इतिहास में , फिर यही आगे चलकर देशभाषा हुई , पिंगल हुई , सधुक्कडी़ हुई तब कही जाकर आज इस स्वरुप में हम तक पहुच पाई है | तो बदलाव के 1000 वर्षों में भी इन सभी परिवर्तित भाषा कालखण्डो में भी अनुवाद आदी कार्य होते रहें हैं | तो यह सब बदलाब भी आज सम्मिलित हो गए हैं | 


     जैसा की हम सब जानते हैं कि भारतवर्ष पर पिछले 2-3 हजार वर्ष से बाहरी आक्रमण होते रहे हैं और हमारे बहुत से मंदिर एवं विश्वविद्यालय बर्बर आक्रांताओं द्वारा तोड़ दिए गए हैं आग के हवाले कर दिए गए हैं जिसमें सहेज कर रखा गया हमारे पूर्वजों का हजारों साल का ज्ञान नष्ट कर दिया गया है | जिसमें नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास हम सब को पता है जिसे जब आक्रांता बख्तियार खिलजी ने आग लगा कर जलाया तो उसमें 30 लाख फस्ट हैड बुक यानी की जिनकी प्रतिलिपि नही है थी जिन्हें पुरा जलने में तीन माह का समय लगा था | तो इन सब में भी हमने अपमे बहुत से अनमोल ग्रंथ खोए हैं या आज जिनके कुछ भाग मिले हैं उनके कुछ भाग खो दिए हैं , हमें यह भी ध्यान में रखना होगा | 


     पर सबसे महत्वपूर्ण ये बात है जिसे अनदेखा नही करना चाहिए कि आज कल ही किसी एक ग्रंथ की ही किसी एक भाषा में सैकड़ों अनुवादकों का कार्य उपलब्ध है | तो किसी एक अनुवादक का अनुवाद लेकर फिर इस तरह की डिबेट करना मुझे तो पानी में लाठी पीटने जैसा ही लगता है |

Tuesday, June 21, 2022

असंपादित सत्य 05 , बॉलीवुड का अंधा गोरी प्रेम और भारतीय समाज पर इसके घातक परिणाम |


     गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा मै तो गया मारा आके यहा रे , गोरे रंग पे इतना गुमान कर गोरा रंग दो दिन में ढल जाएगा , गोरे गोरे मुखडे पे काला काला चश्मा , गोरिया चुराना मेरा जिया गोरिया , तैनु काला चश्मा जंचता है जंचता हैं गोरे मुखडे पे , गोरी हैं कलाईया तू लादे मुझे हरी हरी चूड़ीयां अपना बनाले मुझे बालमा और ऐसे अनगिनत गाने हैं जिसमें गोरे रंग का भाव भर भर कर प्रकट हो रहा है और यही नही ये तो हम सब ने बॉलीवुड की फिल्मों में देखा ही है की हीरोइन का रंग गोरा होना कितना आवश्यक है | अगर मैं आपसे पूछू कि किसी ऐसी फिल्म का नाम बताइए जो आपने देखी हो जिसमें हीरोइन का रंग काला या सांवला हो तो आप नही बता पाएंगे क्योंकि ऐसी कोई फिल्म तलाश कर पाना लगभग असंभव है | बॉलीवुड का ये अंधा गोरा प्रेम या गोरी प्रेम यू ही नही है इसके पीछे सौंदर्य प्रसाधन सामग्री बनाने बाली कंपनियों का मोटा पैसा है | बॉलीवुड की लगभग हर फिल्म में इन कंपनियों का पैसा लगा होता है और ये बॉलीवुड सितारों को प्रचार करने का पैसा अलग से देते हैं | और इसमें टीवी सीरियल बाले और आजकल ओटीटी बाले भी कोई पीछे नहीं हैं | संक्षेप में कहे तो बॉलीवुड ने ये जो गोरी शब्द को लड़की का पर्यायवाची बना दिया है इसके पीछे केवल और केवल पैसा है | 


     इससे पहले कि आप ये कहे कि केवल बॉलीवुड ही इस गोरे रंग के प्रति अंधे प्रेम की एकमात्र वजह नही है तो मै भी मानता हूं कि केवल बॉलीवुड ही इस अंधे प्रेम की एकमात्र वजह नही है इसका कुछ भाग हमारी गोरों की गुलामी से भी प्रभावित है मगर सबसे बड़ी वजह बॉलीवुड ही है क्योंकि फिल्में और टीवी सीरियल ये बहुत बड़े माध्यम हैं | अगर बॉलीवुड पैसों का भक्त न होकर देशहित और समाजहित में कार्य करता तो आज हम ये काले गोरे रंग से उपजे भेदभाव को भरने में कामयाब हो गए होते मगर बॉलीवुड ने तो अपने लालच में काले गोरे रंग के भेदभाव को एवं गोरे रंग के प्रति अंधे प्रेम को और परवान चढा दिया | अब गोरे रंग के प्रति लोगों की दीवानगी इस हद तक हो गयी है कि वो अपना चेहरा या शरीर गोरा करने के लिए कितना भी पैसा खर्च करने के लिए तैयार हैं कोई भी दर्द सहने के लिए तैयार हैं कोई भी प्रयोग करने के लिए तैयार हैं |


     आज ये गोरे रंग के प्रति अंधा प्रेम ही हमारे वर्तमान समाज को कहा तक ले आया है कि विडंबना देखिए हम अपने घर की मंदिर में श्याम श्री कृष्ण की पुजा करते हैं मगर हमें न अपना बेटा श्याम वर्ण में चाहिए ना दामाद | हम भले ही अपने घर की मंदिर में मां काली की पुजा करते हो मगर हमे न अपनी बेटी काली चाहिए ना बहू | किसी काले व्यक्ति या महिला को देखते ही हम ये अंदाजा लगाना शुरू कर देते हैं कि ये फला जाती से होगा ये देहाती होगा ये फला काम करता होगा ये कम पढ़ा लिखा या अनपढ़ होगा और फिर हम उससे व्यवहार भी उसके प्रति बनाई गई अपनी धारणा के अनुसार ही करते हैं |


     अगर हम ये गर्व करते हैं की हम दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है जो अब भी कायम हैं तो हमें ये समझना पड़ेगा की वो क्या मूल्य थे जो हमारे पूर्वजों ने पालन किए और उन्हें हम तक पहुँचाया तो मुझे लगता है कि वो सबसे बड़ा मूल्य है किसी व्यक्ति को उसके रंग या शरीर की बनावट के आधार पर न देखकर उसके गुणों के आधार पर उसके कर्मों के आधार पर देखना यही वजह है कि हम आज भी अपने घर की मंदिर में श्याम योगेश्वर श्री कृष्ण और मां काली की पुजा करते हैं जब की ये भी काले रंग के हैं |

Friday, February 11, 2022

असंपादित सत्य 04 , क्या आप ज्योतिषशास्त्र और वास्तुशास्त्र के बारे में जानते हैं ? , इससे भी बड़ा सवाल ये की क्या आप इनमें विश्वास करते हैं ? , हां या नही , अगर नही' , बॉलीवुड नही करता इसीलिए ना |

      'क्या मां दुनियां चांद पर जा रही है और आप हैं कि कुण्डली में अटकी हुई हैं' इस डायलौग को हम सब ने टीवी और फ़िल्मों में सुना है , जब भी किसी टीवी सीरियल या फिल्म में विवाह के लिए मां लड़की की कुण्डली मिलाने को कहती है तो हीरो की तरफ से बोला गया सबसे पहला संवाद यही होता है | इस संवाद को कहकर हीरो यह दिखाने की कोशिश करता है कि वह आधुनिक युग का है और वह इस पुराने अंधविश्वास को नही मानता उसके हिसाब से कोई पंडित यह कैसे बता सकता है कि आगे आने वाली जिंदगी में उसके लिए कौन अच्छा रहेगा कौन नही | 


     अगर उपरी तौर पर देखा जाए तो यह हमारे उस बहुत बड़े आयु वर्ग और जनसंख्या वर्ग के लिए हैं जिन्होंने ज्योतिषशास्त्र के बारे में कभी सुना ही नहीं है जिसे केवल वैदिकशास्त्र जानने वाले कुछ ज्योतिषाचार्य ही जानते हैं | क्योंकि बॉलीवुड के मूल में सनातन विरोध रहा है जो अब साबित हो रहा है इसलिए वह बीना सच जाने या सामान्य जन मानस को इसकी सच्चाई बताए इसे नकार देता है और इसके विरुद्ध प्रचार करता है जो की बहुत ही तर्कहीन और सतही है | 


किसी भी बात को स्वीकारने या नकारने से पहले हमे ये जानना चाहिए कि आखिर ज्योतिषशास्त्र और वास्तुशास्त्र होता क्या है 


ज्योतिषशास्त्र क्या होता है? 


     जैसा की हम जानते हैं कि ज्योतिष शास्त्र एक बहुत ही वृहद ज्ञान है। सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों, नक्षत्रों , तारों आदि की गति, परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है।


     ज्योतिष शास्त्र की व्युत्पत्ति 'ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्‌' की गई है। हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का अंग है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति 'द्युत दीप्तों' धातु से हुई है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है।


वास्तुशास्त्र क्या होता है?


     वास्तु का शाब्दिक अर्थ निवासस्थान होता है। इसके सिद्धांत वातावरण में जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश तत्वों के बीच एक सामंजस्य स्थापित करने में मदद करते हैं। जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश इन पाँचों तत्वों का हमारे कार्य प्रदर्शन, स्वभाव, भाग्य एवं जीवन के अन्य पहलुओं पर पड़ता है। यह विद्या भारत की प्राचीनतम विद्याओं में से एक है जिसका संबंध दिशाओं और ऊर्जाओं से है। इसके अंतर्गत दिशाओं को आधार बनाकर आसपास मौजूद नकारात्मक ऊर्जाओं को कुछ इस तरह सकारात्मक किया जाता है, ताकि वह मानव जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव ना डाल सकें। 


     विश्व के प्रथम विद्वान वास्तुविद् विश्वकर्मा के अनुसार शास्त्र सम्मत निर्मित भवन विश्व को सम्पूर्ण सुख, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। जगत और वास्तु शिल्पज्ञान परस्पर पर्याय है।वास्तु एक प्राचीन विज्ञान है। हमारे ऋषि मनीषियो ने हमारे आसपास की सृष्टि मे व्याप्त अनिष्ट शक्तियो से हमारी रक्षा के उद्देश्य से इस विज्ञान का विकास किया। वास्तु का उद्भव स्थापत्य वेद से हुआ है, जो अथर्ववेद का अंग है। इस सृष्टि के साथ साथ मानव शरीर भी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है और वास्तु शास्त्र के अनुसार यही तत्व जीवन तथा जगत को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक है |


     इस तरह हम ये देख सकते हैं की ज्योतिषशास्त्र और वास्तुशास्त्र पुर्ण रुप से प्राचीन भारतीय ज्ञान और विज्ञान का हिस्सा हैं इसमें कुछ भी कल्पना या अंधविश्वास नही है | यह वैदिक ज्ञान की विरासत है और यह पुर्ण रुप से वैज्ञानिक है |