Wednesday, February 3, 2021

अप्रकाशित सत्य 18 , खालिस्तान क्या है ? सिख विरोधी दंगा या नरसंहार 1984 पर विस्तार पुर्वक चर्चा एवं विश्लेषण |

 

     कुछ दिनों से मिडिया में एक शब्द लगातार सुनाई दे रहा है तथा 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों की ट्रेक्टर रैली के नाम पर हुई हिंसा में भी इसके समर्थकों का होना कहा जा रहा है वो शब्द है 'खालिस्तान' | तो आइए जानते हैं की ये खालिस्तान क्या है ?|

     जैसा की मैं ने अपने पिछले लेख में बताया था कि सिख पंथ का उदय हिन्दुओ(स्नातनियों) की विदेशी आक्रांताओं से सुरक्षा के लिए हुआ था |मगर 1947 में जब भारत का विभाजन पंथ के आधार पर हुआ तो सिख पंथ के कुछ लोगों में भी दबे स्वरों में अलग देश की मांग उठने लगी थी और यह तब से लेकर 1980 तक दबे हुए स्वरों में ही थी |

     अकाली दल ने पंजाब राज्य की मांग की थी इसी के परिणामस्वरुप 1966 में भाषा के आधार पर दो राज्य पंजाब एवं हरियाणा तथा एक केन्द्रशासित प्रदेश चंडीगढ का गठन हुआ था |

खालिस्तान क्या है ?

     खालिस्तान आंदोलन एक सिख अलगाववादी आंदोलन था जो पंजाब क्षेत्र में 'खालिस्तान (खालसा की भुमि)' नामक अलग संप्रभु देश बनाना चाहता था | 

     कहा जाता है कि खालिस्तान की मांग 1980 से जोर पकड़ने लगी थी परन्तु इसके उलट कुछ किताबों , मिडिया रिपोर्ट्स , तत्कालिन सरकारी अफसरों के विडियों इंटरव्युस के आधार पर कहा जाए तो खालिस्तान कांग्रेस पार्टी के कुछ मुख्य नेताओं के द्वारा शुरु किया गया मसला था ताकि इसका फायदा पंजाब के आने वाले चुनाव में उठाया जा सके | इसी कडी़ में कहा जाता है कि कांग्रेस पार्टी के इन्हीं कुछ मुख्य नेताओं के द्वारा दमदमी टकसाल के 'जनरैल सिंह भिंडरावाला' को बढावा दिया गया था | 

     वर्तमान समय में भारत में खालिस्तान आंदोलन का कोई अस्तीत्व नही है | परन्तु खबरों के अनुसार कुछ विदेशों जैसे कनाडा , UK , संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में रहने वाले कुछ सिखों में इसका प्रभाव दिखता है और इसके पिछे भी भारत देश के दुश्मनों का हाथ माना जाता है | 

ऑपरेशन ब्लूस्टार क्या है ?

     साल 1984 में 1 जुन से लेकर 8 जुन के बीच स्वर्ण मंदिर मे छिपे भारी हथियारों से लैस आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए तत्कालीन केन्द्र सरकार के आदेश पर चलाया गया सैन्य अभियान था | 

     6 जुन 1984 को स्वर्ण मंदिर के भीतर भारतीय सेना द्वारा एक व्यापक अभियान चलाया गया और अलगाववादी आतंकी जनरैल सिंह भिंडरावाला तथा उसके समर्थकों को मार गिराया गया | 7 जुन 1984 को स्वर्ण मंदिर भारतीय सेना के नियंत्रण में आ गया | 

     ऑपरेशन ब्लूस्टार में भारतीय सेना के कुल 83 जवान वीरगती को प्राप्त हूए तथा कुल 493 खालिस्तानी समर्थक एवं आमजन मारे गए | 

सिख विरोधी दंगा या नरसंहार 1984 ?

     इसी ऑपरेशन के कारण उत्पन्न हुई सरकार विरोधी एवं भारत विरोधी भावनाओं का परिणाम था की 4 महीने बाद 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन कांग्रेसी केन्द्र सरकार की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को उनके ही 2 सिख सुरक्षा गार्डों ने गोली मारकर हत्या कर दी | 

     तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली समेत पुरे भारत में सिखों के विरुद्ध व्यापक दंगे हूए या यू कहे तो नरसंहार हुआ | इस नरसंहार में सरकारी आंकडो़ के अनुसार 4 हजार से ज्यादा सिख और हिन्दु मारे गए जबकि तत्कालीन कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि यह संख्या 15 हजार से लेकर 26 हजार के बीच थी | 

      भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली समेत पुरे भारत में सिखों के विरुद्ध जो व्यापक दंगे हूए कुछ किताबों , मिडिया रिपोर्ट्स , तत्कालिन सरकारी अफसरों के विडियों इंटरव्युस के अनुसार कहें तो इसे भी कांग्रेस समर्थीत बताते हैं | यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है |

 परन्तु परिस्थितियां चाहे जो रही हो राजनीतिक महत्वाकांक्षाए या मजबूरी मगर सत्य तो यह है की 1984 का सिखों तथा हिन्दुओं का सामूहिक नरसंहार मानवता के माथे पर एक काला धब्बा है जिसे शायद समय ही भर पाए | मानवता को ही किसी देश की सफलता का आधार होना चाहिए और हमें गर्व होना चाहिए की भारत सदा से ही साझा मानव संस्कृतियों का पोषक रहा है |


 

Tuesday, January 12, 2021

अप्रकाशित सत्य 17 , स्वामी विवेकानन्द का स्नातनी नजरिया


     कक्षा पांचवी से लेकर दसवी तक मैने जिस स्कूल में पढा़ है उसका नाम है स्वामी विवेकानन्द स्कूल कुछ तो यह भी वजह है कि मेरे मन में तभी से स्वामी विवेकानन्द को जानने की इच्छा होती थी धीरे धीरे , जैसे जैसे में स्वामी विवेकानन्द को पढ़ता गया मेरी इन्हे और जानने की इच्छा बढ़ती गई |

     स्वामी विवेकानन्द को इतना पढ़ने के बाद मैने जाना के स्वामी विवेकानन्द का पुरा जीवन ही स्नातन धर्म का वह नजरिया है जो कहीं न कहीं अभी तक छुपा है बावजूद इसके की स्वयं स्वामी विवेकानन्द ने अपने जीवन काल में इसी का प्रचार प्रसार किया और आम जन तक स्नातक का दर्शन पहुचाया |

      शिकांगों के विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द का दिया वो ऐतिहासिक भाषण सबने पढा़ एवं सुना होगा स्नातन का प्रमुख विचार है जो सर्व धर्म समभाव का परिचायक है जो अपनी जन्मभूमि को मां मानता है | स्नातन धर्म जीवन के हर क्षण में प्रकृति से प्रेम की सिख देता है |

      आज के आधुनिक समय और समाज में जीवन के कई संघर्षों में हमारी युवा पीढी़ के सामने खडी़ कई चुनौतीयों में एक चुनैती अपना आदर्श चुनने की भी है यदि सही आदर्श चुनना चुनैती नही होती तो देश के एक बडे़ शिक्षा संस्थान में वहा के छात्रों द्वारा स्वामी विवेकानन्द की प्रतिमा नही तोडी़ जाती | विचारधारा कि विभिन्नता के कारण कुछ लोगों को लगने लगा है कि स्वामी विवेकानन्द केवल स्नातनियों या हिन्दूओं के हैं जबकि यह विचार सर्वथा गलत है स्वामी विवेकानन्द सम्पुर्ण भारत ही नही सारी मानवता के हैं |


Saturday, December 26, 2020

अप्रकाशित सत्य 16 , श्री गुरु गोविंद सिंह के दो छोटे साहिबजादों को मुगलों ने क्यों चुनवाया था दीवार में ?

 

     अभी तक आपने सलिम आनारकली की कहानी सुनी होगी जिसके अनुसार सलिम मुगल शाहंशाह अकबर का बेटा है और वह अनारकली नाम की रक्काशा ( नृत्यांगना ) से प्यार करता है शाहंशाह अकबर को सलिम का एक नृत्यांगना से प्यार करना पसंद नही आता और शाहंशाह अकबर अनारकली को पहले कैदखाने में कैद कराता है फिर दीवार में चुनवा देता है | यह कहानी सच्ची है या फिल्मी ये तो खुदा ही जानते हैं मगर मैं ये दावे के साथ कह सकता हुं की दीवार में चुनवा देने की जो सच्ची कहनी मैं आपको बता रहा हूं वो अपने अभी तक न कहीं पढी़ होगी न सुनी होगी |

      सिख संप्रदाय की स्थापना का मुल और मुख्य उद्देश्य विदेशी आक्रांताओ से हिन्दुओ कि रक्षा करना था | खालसा पंथ के संस्थापक सिखों के दशमें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी को एक महान स्वतंत्रता सेनानी , कवि तथा न्याय और वीरता की मुर्ति माना जाता है | श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने ही 1699 में खालसा यानि खालिस (शुद्ध) पंथ की स्थापना की |

      श्री गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म पौष सुदी 7वी सन् 1666 को पटना में माता गुजरी जी तथा पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के घर में हुआ था | श्री गुरु गोविंद सिंह जी की मृत्यु 7 अक्टूबर सन् 1708 ई में नांदेड महाराष्ट्र में हुई थी | 

      इन्हीं श्री गुरु गोविंद सिंह जी के चार साहिबजादों मे से दो बडे़ साहिबजादे साहिबजादा अजीत सिंह व जुझार सिंह चमकोर साहिब की लडा़ई में शहिद हुए | वहीं दो छोटे साहिबजादे 7 साल के साहिबजादा फतेह सिंह और 9 साल के साहिबजादा जोराबर सिंह को सुबा सरहिंद में माता गुजरी के साथ ठंडे बुर्ज पर 1705 में 3 दिन तथा 2 रातों के लिए मुगलों ने रखा था | जब इस यातना के बाद भी दोनों छोटे साहिबजादों ने अपना धर्म परिवर्तन करने से कडे़ शब्दों में मना कर दिया तो उन्हें मुगलों ने जिंदा दीवार में चुनवा दिया | इस तरह निर्दयता पुर्वक दोनों छोटे मासुम पोतों की हत्या के बाद उनकी दादी माता गुजरी जी का भी देहांत हो गया |

       इसी वीरता को नमन करने के लिए 25 , 26 और 27 तारिखों कों शहीदी जोड मेले का आयोजन किया जाता है | अपना धर्म परिवर्तन करने के लिए बल प्रयोग करने का मुगलों का यह तो मात्र कुछ हिस्सा है जिसे आज हम चर्चा कर रहें है और भी न जाने कितनी तरह की यातनाएं सिखों और हिन्दुओं ने सहकर और अपना बलिदान देकर अपना धर्म बचाया है |

      इन दो छोटे बालकों की वीरता भारत के हर बच्चे के लिए उदाहरण होना चाहिए था मगर सबसे शर्म की बात यह है कि स्वयं मेरी उम्र 22 वर्ष से ज्यादा है जब मैं ये लेख लिख रहा हूं पर मुझे अभी तक इस सत्य के बारे में पता ही नही था | 

      और मैं ये पुरे यकीन के साथ कह सकता हूं की यदि मैं संघ लोक सेवा आयोग के परीक्षा के तैयारी के लिए इतिहास को इतनी गहनता से नही पढ़ता और सुनता तो मुझे इस सत्य का शायद कुछ और वर्षों तक पता ही नही चलता | और मैं ये पुरे विश्वास के साथ कह सकता हूं की आज भी ये सत्य भारत की 95% मेरी समकक्ष युवा पीढी को पता नही होगा | क्योंकि हमें हमारी स्कुल की किताबों में इसे और इस तरह के अन्य इतिहास को नही पढाया गया है और अब यह कर्तव्य है इस सत्य को जानने वालों का है की हम इस सत्य को किसी न किसी तरिके से अपनी वर्तमान व भावी युवा पीढी तक पहुंचाए |