Sunday, November 15, 2020

अप्रकाशित सत्य 11 , क्या आप डॉक्टर भीमराव रामजी अंबेडकर के बारे में ये तथ्य जानते हैं ?


     क्या आप डॉ बी आर अंबेडकर का पुरा नाम डॉक्टर भीमराव रामजी अंबेडकर जानते हैं ? यदि हां तो आपको ये बात भी पता होगी की डॉ बी आर अंबेडकर को भारत रत्न 1990 में मरणोप्रांत दिया गया था जबकी भारत रत्न देने कि शुरुआत भारत सरकार ने 1954 में ही कर दी थी , है तो बहोत आश्चर्यजनक बात पर क्या कीजिएगा सियासत है |

     डॉ बी आर अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को जन्म स्थान महु , मध्यप्रदेश जो (Central Province , CP) के नाम से जाना जाता था गुलाम भारत में हुआ था | डॉ साहब का निधन 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में हुआ | पिता का नाम रामजी सकपाल तथा माता का नाम भीमा सकपाल था | परिवार रत्नागिरी के महार जाती का रहनेवाला था | डॉ बी आर अंबेडकर ने लगभग 32 डिग्रीयां धारण कीं , अंबेडकर साहब 14 भाई बहनों में सबसे छोटे थे | डॉ अंबेडकर के गुरु ब्राम्हण कृष्ण केशव अंबेडकर थे | गांव का नाम अंम्बदाबेकर था | डॉ अंबेडकर साब को 9 भाषाओं का ज्ञान था | 

      डॉ बी आर अंबेडकर की दो शादीयां हुई थी | पहली पत्नी का नाम रामाबाई 1906-1935 (निधन) तथा दुसरी पत्नी का नाम डॉ सविता अंबेडकर 1948 था | 1956 में डॉ अंबेडकर साहब ने बौद्ध धर्म अपना लिया था तथा इनके साथ साथ 5 लाख इनके समुदाय या दलित समुदाय के लोगों ने भी बौद्ध धर्म अपना लिया था | 1920 में कोल्हापुर के साहू महाराजा की सहायता से डॉ अंबेडकर साहब ने 'मुकनायक' नाम से साप्ताहीक अखबार प्रकाशित करना आरंभ किया | 1920 में ही बहिष्कृत हितकराणी सभा नाम के संगठन की स्थापना की | डॉ साहब ने अपनी आत्मकथा लिखी है 'वेटिंग फार अ विजा' नाम से , इसके अलावा भी कई अन्य किताबें लिखी हैं |

     डॉ अंबेडकर साहब ने 1946 में एक किताब लिखी जिसका नाम था 'ह्यु वर द शुद्रा' | के वी राव जी ने कहा था डॉ साहब संविधान के जनक एवं जननी दोनों हैं | 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा की प्रारुप समिति जिसमें 7 सदस्य थे के अध्यक् बनाए गए | थाट्स ऑन पाकिस्तान और रिडल्स ऑफ हिन्दूइज्म डॉ साहब की दो मशहूर किताबें हैं | डॉ अंबेडकर साहब ने तीनो गोलमेज सम्मेलनों में हिस्सा लिया था | 25 सितंबर 1932 को पुणे की यरवदा जेल में दलित आरक्षण को लेकर हॉ अंबेडकर साहब और गॉधीजी के बीच में पुना समझौता हुआ था जिस पर डॉ अंबेडकर और मदन मोहन मालविय के हस्ताक्षर हुए थे | डॉ अंबेडकर साहब भारत के पहले कानुन एवं न्याय मंत्री भी थे |

डॉ बी आर अंबेडकर ने भारत के बंटवारे भारत और पाकिस्तान उसमें मुस्लिमों तथा कॉग्रेस की भुमिका को लेकर कई कठोर सत्य लिखे है यही नही डॉ अंबेडकर ने गांधीजी को लेकर भी खुलकर बात की है जो उनकी किताबों साक्षात्कारों तथा लेखों में पढ़ने को मिलती है | डॉ बी आर अंबेडकर ने दर्जनभर से ज्यादा किताबें लिखी हैं | भारत में जाती प्रथा तथा हिन्दुत्व के विषय में भी अपनी कई किताबों में विस्तारपुर्वक चर्चा की है | मगर अाज के समय में भारत में डॉ बी आर अंबेडकर कि वह सच्ची बाते चर्चाओं तथा पठन पाठन में नही हैं जो उन्होने अपनी किताबों में कही हैं इसी का परिणाम है की कई राजनीतिक दलों ने उनके नाम को राजनीतिक स्वार्थ के लिए ध्रुवीकरण का जरिया बना रखा है |


 

Wednesday, October 14, 2020

अप्रकाशित सत्य 10 , हमें क्यों नही पढा़या जाता 8वी तथा 9वी शताब्दी का इतिहास ? , क्या आप जानते हैं भारत में 8वी तथा 9वी शताब्दी में क्या हुआ था ? , 8वी तथा 9वी शताब्दी का इतिहास क्या है ?


     अपनी मध्य प्रदेस लोक सेवा आयोग प्रारंभिक परिक्षा 2019 तथा केन्द्रीय लोक सेवा आयोग प्रारंभिक परिक्षा 2020 की तैयरी करने के दौरान मैने जब इतिहास विष्य को गहन रुप से पढ़ना आरंभ किया तो यह पया कि हमारे इतिहास कि किताबों में से करीब 270 सालों का इतिहास नदारद है वह भी मुल रुप से उत्तर भारत का इतिहास , यह भारत का वही कालखंण्ड है जब अरबों ने उत्तर भारत पर एक सफल आक्रमण कर लिया था | तो आखिर ऐसा क्या हुआ है इन 270 वर्षों में जिसे हम भारतीयों से पुरी तरह से छुपाया गया है इतिहासकारों के द्वारा और क्यों ?

     भारत पर प्रथम सफल अरब आक्रमण 712 ई में मोहम्मद बीन कासिम ने भारत के सिंध राज्य पर किया था | इस समय यहां के राजा , राजा दाहीरसेन थे इन्होने इससे पुर्व मोहम्मद बीन कासिम के तीन आक्रमणों को बिफल किया था | वर्तमान में सिंध प्रात पाकिस्तान का हिस्सा है | 712 ई का सिंध प्रात वर्तमान सम्पुर्ण सिंध तथा बलूचिस्तान के कुछ हिस्से एवं अफगानिस्तान के कुछ हिस्से तक फैला था | राजा दाहीरसेन ने ही ईस्लाम मजहब के आखरी पैगम्बर मोहम्मद साहब के बचे हुए परिवार को अपने राज्य में शरण दिया था तथा उनकी सुरक्षा करने का भरोसा दिलाया था और जब मोहम्मद बीन कासिम ने सिंध पर चौथी बार अत्याधिक सेना बल के साथ आक्रमण किया तो वह अपने राज्य और शरणार्थीयों को बचाते हुए बीरगती को प्राप्त हुए | मोहम्मद बीन कासिम ने राजा के पुरे परिवार को मार डाला और उनकी बेटियों को अरब लेजाकर वेश्यालयों में बेच दिया पुरे राज्य में लाखों की तादाद में हत्याए , बलात्कार , जबरन धर्म परिवर्तन कराए गए | मगर इससे भी दुख की बात ये है कि आज के इतिहास में इस महान राजा के बारे में ये लिखा गया है कि यह एक कमजोर राजा था जो आपसी मदभेदों से उबर नही पा रहा था और हमले को नाकाम करने में बहुत निर्बल था | बस कुछ पंक्तियों में वर्णित इस एक घटना के अलावा भारत में अरब आक्रमण से संबंधित कोई अन्य घटना एवं जानकारी ढुढ़ने पर भी नही मिलती , इतिहास कि किताबों में सिधे इसके बाद 920-21 ई के तुर्क आक्रमण का उल्लेख मिलता है जिसमे गजनी के शासक सुबुक्तगीन ने हिन्दूशाही राज्य पर आक्रमण करके काबुल पर अधिकार कर लिया था | ऐसा मैं तीन से चार इतिहास कि किताबों कों पढने के बाद तथा कई घंटों तक गुगल पर रिसर्च करने के बाद लिख रहा हूँ | 

      यहां मेरा सबाल ये है कि क्या 712 ई से लेकर 920 ई के मध्य में उत्तर भारत में कोई आक्रमण नही हुए ?  , कोई बडी़ घटना नही घटी ? और यदि ऐसा है , तो ऐसा कैसे हो सकता है ? क्योंकि 270 से भी अघिक वर्षों में ये संभव नही है | इन सवालों के मेरे मन में उठने के पिछे कि वजह ये है की 712 ई में अरब से आए मोहम्मद बीन कासिम ने सफलता पुर्वक सिंध पर आक्रमण कर लिया था तो वह केवल सिंध तक ही रुका हो यह बहुत मुस्किल है और उसकी सफलता पुर्वक आक्रमण से प्रोतसाहीत होकर कोई अन्य अरब आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण करने न आया हो यह भी नामुकिंन है क्योंकि इतिहास में ऐसा कभी नही हुआ | 

      हमारे इतिहास कि किताबों से 270 सालों से भी अधिक के अरब आक्रमण के इतिहास को सामिल न करने की क्या वजह है इसका सवाल तो हमारी सरकारों से पुछा जाना चाहिए जो किताबों की विषयवस्तु निर्धारित करतें हैं खास तौर पर विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में पढा़ई जाने वाली इतिहास कि किताबें का या उन इतिहासकारों से पुछा जाना चाहिए जिन्हेनें ये इतिहास कि किताबे लिखीं हैं | मगर मुझे लगता है की जल्द से जल्द इस कालखंण्ड के इतिहास को इतिहास कि किताबों में जोडा़ जाना चाहिए क्योंकि यह पुरे देश के साथ एक तरह का बौद्धिक धोखा है छल है | अपने देश के समपुर्ण इतिहास को जानना हर देशवासी का हक है चाहे वह इतिहास अच्छा हो या बुरा | एक निवेदन करना चाहूँगा के यदि आपको इस कालखंण्ड के इतिहास के संबंध में कोई जानकारी है तो मुझसे साझा करने की कृपा करें | 


Thursday, October 8, 2020

अप्रकाशित सत्य 9 , आजाद बलूचिस्तान पर किया है पाकिस्तान ने सैनिक कब्जा , बलूचिस्तान नही है पाकिस्तान का हिस्सा , बलोच चाहते हैं पाकिस्तान से आजादी , क्या है बलूचिस्तान का इतिहास आइए जानते हैं ?


    बलूचिस्तान , पाकिस्तान में सबसे बडा़ क्षेत्र है यहां के रहने वाले लोगों को बलूचि या बलोच कहते हैं तथा यहां कि भाषा बलोची है | बलूचिस्तान का एक पुराना नाम कलात भी है तथा पाकिस्तान में यह सबसे बडी़ समुद्री सीमा वाला प्रांत भी है इसकी लगभग 760 किलोमीटर की समुद्री सीमा है | बलूचिस्तान कुल पाकिस्तान का लगभग 44% हिस्सा है यह खनिज सम्पदा से बहुत धनी प्रांत है मगर पाकिस्तान के कब्जे के बाद लगातार संघर्ष एवं पाकिस्तान सरकार की उपेक्षा कि बजह से यह पाकिस्तान में सबसे गरीब एवं अशिक्षित प्रात है | बलूचिस्तान की कुल जनसंख्या लगभग 1.3 से 1.5 करोड़ है |

     15 हजार वर्ष पुर्व जब सम्पुर्ण भारत अस्तित्व में आया तब से बलूचिस्तान भारत का क्षेत्र था | अखंण्ड भारत कहने का अर्थ आज का अफगानिस्तान , बलूचिस्तान , पाकिस्तान , भारत , बांग्लादेश , नेपाल एवं वर्मा (मयानमार) को एक साथ संबोधित करना है | बलूचिस्तान भारत (अखंड) के 16 महाजनपदों में से एक गांधार का हिस्सा था तथा इसका अस्तित्व महाभारत काल में जब 200 जनपद थे तब भी था तथा यह 30 उन जनपदों में सम्मिलित था जिन्होने महाभारत के युद्ध में हिस्सा लिया था | बलूचिस्तान का इतिहास कई हजारों वर्ष पुराना है यहां माता सती के 51 शक्तिपीठो में से एक हिंगलाज का मंदिर है मान्यता है की यहां माता सती का सिर गिरा था | बलूचिस्तान में सैकडो़ कि तादाद में भगवान बुद्ध की प्रतिमा भी पाई गई हैं | कहा जाता है की किसी जमाने में यहां बौद्ध धर्म भी अपने उत्कर्ष पर था | 

     बलूचिस्तान में स्थित मेहरगढ़ कि सभ्यता को हडप्पा सभ्यता से भी पुरानी सभ्यता कहा जाता है इसका कालखंण्ड 7 हजार ईपु से लेकर 2500 ईपु तक था | हडप्पा सभ्यता के भी समय में बलूचिस्तान से हडप्पा सभ्यता के बीच तांबे एवं सोने का व्यापार होता था | महान चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन भी 321 ईपु में अफगानिस्तान से लेकर बलूचिस्तान तक था तथा बलूचिस्तान मौर्य  सामराज्य का हिस्सा था | यही नही मुगल बादशाह अकबर तथा उसके उत्तराधिकारियों ने भी किया था बलूचिस्तान पर राज्य , मुगल सामराज्य के पतन के बाद यहां के खानों ने स्वयं को आजाद घोषित किया तथा कुछ वर्षों तक वे स्वतंत्र शासक रहें | 

     साल 1877 में कलात (बलूचिस्तान) के खान आजाद थे उनपर अंग्रेजों का कोई नियंत्रण नही था मगर साल 1887 तक आते आते यह अंग्रेजों के कब्जे में आ गया | अंग्रेजों ने कलात (बलूचिस्तान) को चार भागों कलात , मकरान , खरान तथा लेसबुरा में बांट दिया था | 4 अगस्त 1947 को लार्ड लुई माउंटबेटन और मोहम्मद अली जिन्ना जो बसूचिस्तान का वकील था ने एक घोषणा कि जिसके मुताबिक 11अगस्त 1947 से कलात एक आजाद देश होगा | 

      11 अगस्त 1947 को कलात और मुस्लिम लीग के बीच एक समझौता हुआ था जिसके अनुसार मुस्लिम लीग कलात कि आजादी का सम्मान करेगी मगर फितरत के अनुसार पाकिस्तान के बनते ही मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तानी सेना भेजकर 27 मार्च 1948 को कलात पर कब्जा कर लिया | तब से लेकर आजतक पाकिस्तानी सेना यहां के निवासीयों पर जुल्म कर रही है , महिलाओं के साथ बलात्कार और पाकिस्तानी सेना के खिलाफ बोलने वाले लोगों को गायब कर देना आम बात होगयी है | बलोची लोग अपनी आजादी कि जंग 60-70 के  दसक से लड़ रहे हैं | कुछ प्रकाशित खबरों के मुताबिक पाकिस्तानी सरकार और पाकिस्तानी सेना ने मिलकर 5-8 हजार बलूचिस्तान के नागरिकों को गायब कर रखा है जिनके बारे में उनके परिवारजनों को कोई जानकारी नही है मगर फिर भी बलोची अपनी आजादी की जंग दिन रात लड़ रहे हैं |